सर्वरोग नाशक मन्त्र
भगवान् शंकरजी पार्वतीजीसे बोले -
समुद्र मन्थनमे सबसे पहले कालकूट नामक महाभयंकर विष प्रकट हुआ |
उसे देखकर सम्पूर्ण देवता और दानव भयभीत होकर भागने लगे |
तब मैंने हृदयमें भगवान् नारायणका ध्यान करके उनके तीन नामरुपी मन्त्रका भक्तिपूर्वक जप करते हुए उस विषको पी लिया तथा उन तीन नामोंके प्रभावसे
उस विषको अनायास ही पचा लिया |
फिर भगवान् शङ्करजी बोले -
अच्युतानन्तगोविन्द इति नामत्रयं हरेः |
यो जपेत्प्रयतो भक्त्या प्रणवाद्यं नमोऽन्तकम् ||
तस्य मृत्युभयं नास्ति विषरोगाग्निजं महम् |
नामत्रयमहामन्त्रं जपेद् यः प्रयतात्मवान् ||
कालमृत्युभयं चापि तस्य नास्ति किमन्यतः ||
अच्युत, अनन्त, गोविन्द ये हरिके तीन नाम हैं |
जो एकाग्रचित्त होकर इनके आदिमें ॐ और अन्तमें नमः लगाकर इनका ॐ अच्युताय नमः, ॐ अनन्ताय नमः, ॐ गोविन्दाय नमः, इस प्रकार
भक्तिपूर्वक जप करता है,
उसे विष, रोग और अग्निसे होनेवाली मृत्युका भय नहीं होता |
जो इस तीन नामरुपी महामन्त्रका एकाग्रतापूर्वक जप करता है, उसे काल और मृत्युसे भी भय नहीं होता, फिर दूसरोंसे भय होनेकी तो बात ही क्या है |
|| अस्तु ||
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