विष्णु कृत तुलसी स्तोत्र
तुलसीं पुष्पसारां च सतीं पूज्यां मनोहराम् |
कृत्स्त्रपापेध्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम् ||
पुष्पेषु तुलनाप्यस्या नासीद् देवेषु वा मुने |
पवित्ररुपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिता ||
शिरोधार्यां च सर्वेषामीप्सितां विश्वपावनीम् |
जीवन्मुक्तां मुक्तिदां च भजे तां हरिभक्त्तिदाम् ||
परम साध्वी तुलसी पुष्पोंमें सार हैं |
ये पूजनीया तथा मनोहारिणी हैं |
सम्पूर्ण पापरुपी इधनको भस्म करनेके लिये ये प्रज्वलित अग्निकी लपटके समान हैं |
पुष्पोंमें अथवा देवियोंमें किसीसे भी इनका तुलना नहीं हो सकी |
इसीलिये उन सबमें पवित्ररुपा इन देवीको तुलसी कहा गया |
ये सबके द्वारा अपने मस्तकपर धारण करने योग्य हैं |
सभीको इन्हें पानेकी इच्छा रहती है |
विश्वको पवित्र करनेवाली ये देवी जीवन्मुक्त हैं |
|| विष्णु कृत तुलसी स्तोत्र सम्पूर्णम ||
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