शुक्र पूजन
शुक्र सुख सुविधाओं तथा वीर्य और रज का कारक है |
यह केवल आठ माह में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेता है |
सौरमंडल में शुक्र सूर्य के पूर्व में स्थापित है |
जन्मकुंडली में शुभ स्थान पर शुक्र के स्थित होने से जातक को
भौतिक सुख मिलता है |
अशुभ स्थान पर होने से जातक में कामुकता आती है |
शुक्र की अनुकूलता के लिए शुक्र पूजन के साथ श्री लक्ष्मी की आराधना
का भी विधान है | इसके लिए साधक प्रातःकाल शुक्र का पूजन करें |
दोपहर बाद दही अथवा खीर का भोजन खाएं |
|| आह्वान मंत्र ||
हाथ में श्वेत पुष्प और अक्षत लेकर अग्रलिखित मंत्र द्वारा शुक्रदेव का
आह्वान करें,
ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं आवाहयाम्यहम् ||
|| स्थापना मंत्र ||
तत्पश्चात निम्नवत मंत्र द्वारा शुक्रदेव की स्थापना करें,
ॐ भूर्भुवः स्वः शुक्रः इहागच्छ इहतिष्ट |
ॐ शुक्राय नमः |
मंत्र पाठ के बाद श्वेत पुष्प और अक्षत को नवग्रह मंडल में
शुक्र के स्थान पर छोड़ दें |
|| ध्यान मंत्र ||
अब निम्नवत मंत्र द्वारा शुक्रदेव का ध्यान करें,
श्वेताम्बरहः श्वेत वपुः किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरु प्रशांतः |
एकाक्षसूत्रं च कमण्डलुं च दण्डं च विभ्रद्वरदोस्तुमह्यम् ||
|| शुक्र मंत्र ||
शुक्रदेव के बीज मंत्र और तांत्रिक मंत्र निम्नलिखित हैं,
जिनकी जप संख्या 16,000 है |
ॐ शुं शुक्राय नमः |
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः |
|| शुक्र यंत्र ||
शुक्र के यंत्र में किसी भी ओर से जोड़ने पर योगफल 30 ही आता है |
इसे किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को शुभ चौघड़िये में
भोजपत्र पर चंदन की कलम एवं अष्टगंध की स्याही द्वारा लिखें |
फिर धूप, दीप एवं सुगंधित सफेद पुष्प चढ़ाकर
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः |
मंत्र का जप करके स्वर्ण की तावीज या
श्वेत वस्त्र में धारण करें |
शुक्र की दान सामग्री है, श्वेत चंदन, चावल, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प,
देशी घी, दही, शक्कर, सफेद गाय और हीरा |
यह दान शुक्रवार को दक्षिणा सहित देना चाहिए |
|| अस्तु ||
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Jyotish