शनि पूजन
शनि सूर्य के पुत्र कहे गए हैं परंतु इसमें परस्पर मैत्री नहीं है |
शनि सूर्य की परिक्रमा करता है|
जन्मकुंडली में शुभ स्थान का शनि यश, ऐश्वर्य, दीर्घायु और चिंतन शक्ति का
कारक है लेकिन अशुभ स्थान का शनि अनाचार को बढ़ावा देता है |
जातक की जन्मकुंडली के अनुसार शनि की दशा ढाई वर्ष और
साढ़े सात वर्ष रहती है | सौरमंडल में शनि का स्थान पश्चिम में है |
शनि की प्रसन्नता के लिए भैरव की साधना उपयुक्त होती है |
उपवास करने वाले को दोपहर बाद नमक रहित भोजन करना चाहिए |
|| आह्वान मंत्र ||
काले पुष्प और काले रंग के अक्षत हाथ में लेकर निम्नवत मंत्र द्वारा शनिदेव का आह्वान करें,
नीलांबुजसमाभासं रविपुत्र यमाग्रजम् |
छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ||
|| स्थापना मंत्र ||
तत्पश्चात निम्नवत मंत्र द्वारा शनिदेव की स्थापना करें,
ॐ भूर्भुवः स्वः शनैश्चर इहागच्छ इहतिष्ठ |
ओके शनैश्चराय नमः |
मंत्र पाठ के बाद काले पुष्प और काले रंग के अक्षत को नवग्रह मंडल में शनि के स्थान पर छोड़ दें |
|| ध्यान मंत्र ||
फिर नीचे दिए गए मंत्र द्वारा शनिदेव का ध्यान करें,
ओम सूर्यपुत्रो दीर्घदही विशालाक्षः शिवप्रियः |
मन्दाचारः प्रसन्नत्मा पीडां हरतु ते शनिः ||
|| शनि मंत्र ||
शनिदेव के बीज मंत्र एवं तांत्रिक मंत्र निम्नलिखित हैं,
जिनकी जप संख्या 23,000 है,
ॐ शं शनैश्चराय नमः |
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः |
|| शनि यंत्र ||
शनि के यंत्र में सभी ओर से जोड़ने पर इसका योगफल 33 ही आता है |
इसे किसी भी मास में शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार के दिन सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व भोजपत्र पर अनार या काले घोड़े के नाल से बनी कलम द्वारा अष्टगंध की स्याही से लिखें |
फिर धूप, दीप तथा काले पुष्प चढ़ाकर
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः |
मंत्र का जप करके लोहे की तावीज अथवा काले या नीले वस्त्र धारण करें |
|| शनि दान ||
शनिदेव की दान सामग्री है,
काले तिल, उड़द, तेल, काले वस्त्र, लोहा, काली गाय,
इंद्रनील, महिषी एवं फुलेल |
इस दान को शनिवार के दिन दक्षिणा सहित देना चाहिए |
|| अस्तु ||
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Jyotish