पञ्चमहायज्ञोंका वर्णन
सुमन्तु मुनिने कहा -
राजन्, इस प्रकार स्त्रियोंके लक्षण और सदाचारका वर्णन करके ब्रह्माजी ा[अपने लोक तथा ऋषिगण भी अपने अपने आश्रमोंकी ओर चले गये |
अब गृहस्थोंको कैसा आचरण करना चाहिये, उसे मैं बताता हूँ,
आप ध्यानपूर्वक सुनें,
गृहस्थोंको वैवाहिक अग्निमें विधिपूर्वक गृह्यकर्मोंको करना चाहिये तथा
पञ्चमहायज्ञोंको भी सम्पादन करना चाहिये |
गृहस्थोंके\यहाँ जीव हिंसा होनेके पाँच स्थान हैं |
ओखली, चक्की, चूल्हा, झाड़ू तथा जल रखनेके स्थान |
इस हिंसा दोषसे मुक्ति पानेके लिये गृहस्थोंको पञ्चमहायज्ञों
१. ब्रह्मयज्ञ
२. पितृयज्ञ
३. दैवयज्ञ
४. भूतयज्ञ तथा
५. अतिथियज्ञको
नित्य अवश्य करना चाहिये | अध्ययन करना तथा अध्यापन करना यह ब्रह्मयज्ञ है,
तर्पणादि कर्म पितृयज्ञ है |
देवताओंके लिये हवनादि कर्म दैवयज्ञ है |
बलिवैश्वदेव कर्म भूतयज्ञ है तथा अतिथि एवं अभ्यागतोंका स्वागत सत्कार करना अतिथियज्ञ है |
अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञश्च तर्पणम् |
होमो दैवो बलिर्भौतस्तऽन्योऽतिथिपूजनम् ||
इन पाँच नियमोंका पालन करनेवाला गृहस्थी घरमें रहता हुआ भी पञ्चसूना दोषोंसे लिप्त नहीं होता | यदि समर्थ होते हुए भी वह इन पाँच यज्ञोंको नहीं करता है
तो उसका जीवन ही व्यर्थ है |
राजा शतानीकने पूछा -
जिस ब्राह्मणके घरमें अग्निहोत्र नहीं होता, वह मृतकके समान होता है,
यह आपने कहा है, परंतु फिर वह देवपूजा आदि कार्योंको क्यों करे ?
और यदि ऐसी बात है तो देवता, पितर उससे कैसे संतुष्ट होंगे,
इसका आप निराकरण करें |
सुमन्तु मुनि बोले -
राजन्, जिन ब्राह्मणोंके घरमें अग्निहोत्र न हो उनका उद्धार व्रत, उपवास, नियम, दान तथा देवताकी स्तुति, भक्ति आदिसे होता है |
जिस देवताकी जो तिथि हो,
उसमें उपवास करनेसे वे देवता उसपर विशेष्रुपसे प्रसन्न होते हैं |
व्रतोंपवासनियमैर्नानादानैस्तथा नृप |
देवादयो भवन्त्येव प्रीतास्तेषां न संशयः ||
विशेषादुववासेन तिर्थौ किल महीपते |
प्रीता देवादयस्तेषां भवन्ति कुरुनन्दन ||
राजाने फिर कहा -
महाराज, अब आप अलग अलग तिथियोंमें किये जानेवाले व्रतों, तिथि व्रतोंमें किये जानेवाले भोजनों तथा उपवासकी विधियोंका वर्णन करें, जिनके श्रवणसे तथा
जिनका आचरण कर संसारसागरसे मैं मुक्त हो जाऊँ तथा
मेरे सभी पाप दूर हो जायँ |
साथ ही संसारके जीवोंका भी कल्याण हो जाय |
सुमन्तु मुनि बोले -
मैं तिथियोंमें विहित कृत्योंका वर्णन करता हूँ, जिनके सुननेसे पाप कट जाते हैं
और उपवासके फलोंकी प्राप्ति हो जाती है |
प्रतिपदा तिथिको दूध तथा द्वितियाको लवणरहित भोजन करे |
तृतीयाके दिन तिलान्न भक्षण करे |
इसी प्रकार चतुर्थीको दूध, पञ्चमीको फल, षष्ठीको शाक,
सप्तमीको बिल्वाहार करे |
अष्टमीको पिष्ट, नवमीको अनग्निपाक, दशमी और एकादशीको
घृताहार करे | द्वादशीको खीर, त्रयोदशीको गोमूत्र, चतुर्दशीको यवान्न भक्षण करे |
पूर्णिमाको कुशाका जल पिये तथा अमावस्याको हविष्य भोजन करे |
यह सब तिथियोंके भोजनकी विधि है |
इस विधिसे जो पुरे एक पक्ष भोजन करता है, वह दस अश्वमेध
यज्ञोंका फल प्राप्त करता है, वह दस अश्वमेध यज्ञोंका फल प्राप्त करता है
और मन्वन्तरतक स्वर्गमें आनन्द भोगता है |
यदि तीन चार मासतक इस विधिसे भोजन करे तो वह सौ अश्वमेध और
सौ राजसूय यज्ञोंका फल प्राप्त करता है तथा स्वर्गमें अपने मन्वन्तरोंतक सुख भोग करता है |
पूरे आठ महीने इस विधिसे भोजन करे तो हजार यज्ञोंका फल पाता हो और
चौदह मन्वन्तरपर्यन्त स्वर्गमें वहाँके सुखोंका उपभोग करता है |
इसी प्रकार यदि एक वर्षपर्यन्त नियमपूर्वक इस भोजन विधिका पालन करता है
तो वह सूर्यलोकमें कई मन्वन्तरोंतक आनन्दपूर्वक निवास करता है |
इस उपवास विधिमें चारों वर्णों तथा स्त्री पुरुषों सभीका अधिकार है |
जो इस तिथि व्रतोंका आरम्भ आश्विनकी नवमी, माघकी सप्तमी, वैशाखकी तृतीया तथा कार्तिककी पूर्णिमासे करता है,
वह लम्बी आयु प्राप्त कर अन्तमें सूर्यलोकको प्राप्त होता है |
पूर्वजन्ममें जिन पुरुषोंने व्रत, उपवास आदि किया, दान दिया, अनेक प्रकारसे ब्राह्मणों, साधु संतों एवं तपस्वियोंको संतुष्ट किया, माता पिता और गुरुकी सेवा शुश्रुषा की, विधिपूर्वक तीर्थयात्रा की, वे पुरुष स्वर्गमें दीर्घ कालतक रहकर जब पृथ्वीपर जन्म लेते हैं, तब उनके चिह्न पुण्य फल प्रत्यक्ष ही दिखलायी पड़ते हैं |
यहाँ उन्हें हाथी, घोड़े, पालकी, रथ, सुवर्ण, रत्न, कंकण, केयूर, हार, कुण्डल, मुकुट, उत्तम वस्त्र, श्रेष्ठ सुन्दर स्त्री तथा अच्छे सेवक प्राप्त होते हैं |
वे आधि व्याधिसे मुक्त होकर दीर्घायु होते हैं |
पुत्र पौत्रादिका सुख देखते हैं और वन्दीजनोंके स्तुति पाठद्वारा जगाये जाते हैं |
इसके विपरीत जिसने व्रत, दान, उपवास आदि सत्कर्म नहीं किया वह काना,
अंधा, लूला, लँगड़ा, गूँगा, कुबड़ा तथा रोग और दरिद्रतासे पीड़ित रहता है |
संसारमें आज भी इन दोनों प्रकारके पुरुष प्रत्यक्ष दिखायी देते हैं |
यही पुण्य और पापकी प्रत्यक्ष परीक्षा है |
राजाने कहा -
प्रभो, आपने अभी संक्षेपमें तिथियोंको बताया है |
अब यह विस्तारसे बतलानेकी कृपा करें कि किस देवताकी किस तिथिमें पूजा करनी चाहिये और व्रत आदि किस विधिसे करने चाहिये
जिनके करनेसे मैं पवित्र हो जाऊँ और
द्वन्द्वरहित होकर यज्ञके फलोंको प्राप्त कर सकूँ |
सुमन्तु मुनि बोले -
राजन्, तिथियोंका रहस्य, पूजाका विधान, फल, नियम, देवता तथा
अधिकारी आदिके विषयमें मैं बताता हूँ, यह सब आजतक मैंने किसीको नहीं बतलाया, इसे आप सुनें -
सबसे पहले मैं संक्षेपमें सृष्टिका वर्णन करता हूँ |
प्रथम परमात्मने जल उत्पन्नकर उसमें तेज प्रविष्ट किया, उससे एक अण्ड उत्पन्न हुआ, उससे ब्रह्मा उत्पन्न हुए |
उनहोंने सृष्टिकी इच्छासे उस अण्डके एक कपालसे भूमि और दूसरेसे आकाशकी रचना की | तदनन्तर दिशा, उपदिशा, देवता, दानव आदि रचे और जिस दिन यह सब काम किया उसका नाम प्रतिपदा तिथि रखा |
ब्रह्माजीने इसे सर्वोत्तम माना और
सभी तिथियोंके प्रारम्भमें इसका प्रतिपादन किया इसलिये इसका नाम
प्रतिपदा हुआ | इसीके बाद सभी तिथियाँ उत्पन्न हुईं |
अब मैं इसके उपवास विधि और नियमोंका वर्णन करता हूँ |
कार्तिक पूर्णिमा, माघ सप्तमी तथा वैशाख शुक्ल तृतीयासे इस प्रतिपदा तिथिके नियम एवं उपवासोंको विधिपूर्वक प्रारम्भ करना चाहिये |
यदि प्रतिपदा तिथिसे नियम ग्रहण करना है तो प्रतिपदासे पूर्व चतुर्दशी तिथिको भोजनके अनन्तर व्रतका संकल्प लेना चाहिये |
अमावस्याको त्रिकाल स्नान करे, भोजन न करे और गायत्रीका जप करता रहे |
प्रतिपदाके दिन प्रातःकाल गन्ध माल्य आदि उपचारोंसे श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी पूजा करे और उन्हें यथाशक्त्ति दूध दे तथा बादमें ब्रह्माजी मुझपर प्रसन्न हो,
ऐसा कहे स्वयं भी बादमें गायका दूध पिये |
इस विधिसे एक वर्षतक व्रत कर अन्तमें गायत्रीसहित ब्रह्माजीका पूजन कर व्रत समाप्त करे |
इस विधानसे व्रत करनेपर व्रतके सब पाप दूर हो जाते हैं और
उसकी आत्मा शुद्ध हो जाती है |
वह दिव्य शरीर धारणकर विमानमें बैठकर देवलोकमें देवताओंके साथ आनन्द प्राप्त करता है और जब इस पृथ्वीपर सत्ययुगमें जन्म लेता है तो दस जन्मतक वेदविद्याका पारगामी विद्वान्, धनवान्, दीर्घ आयुष्य, आरोग्यवान्,
अनेक भोगोंसे सम्पन्न, यज्ञ करनेवाला, महादानी ब्राह्मण होता है |
विश्वामित्रमुनिने ब्राह्मण होनेके लिये बहुत समयतक घोर तपस्या की,
किंतु उन्हें ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं हो सका |
अतः उन्होंने नियमसे इसी प्रतिपदाका व्रत किया |
इससे थोड़ेसे समयमें ब्रह्माजीने उन्हें ब्राह्मण बना दिया |
क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि कोई इस तिथिका व्रत करे तो वह सब पापोंसे मुक्त
होकर दूसरे जन्ममें ब्राह्मण होता है |
हैहय, तालजंघ, तुरुष्क, यवन, शक आदि म्लेच्छ जातिवाले भी इस व्रतके
प्रभावसे ब्राह्मण हो सकते हैं |
यह तिथि परम पुण्य और कल्याण करनेवाली है |
जो इसके महात्म्यको पढ़ता अथवा सुनता है वह ऋद्धि, वृद्धि और
सत्कीर्ति पाकर अन्तमें सद्गति प्राप्त करता है |
|| अस्तु ||
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