पाप प्रशमन स्तोत्र | Paap prashaman stotra |

 

पाप प्रशमन स्तोत्र

पाप प्रशमन स्तोत्र


मुनीशर्मा उवाच
विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे विष्णवे नमः |
नमामि विष्णुं चित्तस्थमहङ्कारगतं हरिम् ||
चित्तस्थमीशमव्यंक्तमनन्तमपराजितम् |
विष्णुमीड्यमशेषाणामनादिनिधनं हरिम् ||

भूपाल, अब तुम पापप्रशमन नामक स्तोत्र सुनो |
इसका भक्तिपूर्वक श्रवण करके भी मनुष्य पापराशिसे मुक्त हो जाता है |
इसके चिन्तन मात्रसे बहुतेरे पापी शुद्ध हो चुके हैं |
इसके सिवा और भी बहुत से मनुष्य इस स्तोत्रका सहारा लेकर
अज्ञानजनित पापसे मुक्त हो गये हैं |
जब मनुष्योंका चित्त परायी स्त्री, पराये धन तथा जीव हिंसा आदिकी ओर जाता है तो इस प्रायश्चित्तरुपा स्तुतिकी शरण लेनी चाहिये |
यह स्तुति इस प्रकार है -

सम्पूर्ण विश्वमें व्यापक भगवान् श्री विष्णुको सर्वदा नमस्कार है |
विष्णुलो बारम्बार प्रणाम है | मैं अपने चित्तमें विराजमान विष्णुको नमस्कार करात हूँ |
अपने अहङ्कारमें व्याप्त श्रीहरिको मस्तक झुकाता हूँ |
श्री विष्णु चित्तमें विराजमान ईश्वर, अव्यक्त्त, अनन्त, अपराजित, सबके द्वारा स्तवन करनेयोग्य तथा आदि अन्तसे रहित हैं,
ऐसे श्रीहरिको मैं नित्य निरन्तर प्रणाम करता हूँ |


विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धिगतश्च यत् |
योऽहङ्कारगतो विष्णुर्यो विष्णुर्मयि संस्थितः ||
करोति कर्तृभूतोऽसौ स्थावरस्य चरस्य च |
तत्पापं नाशमायाति तस्मिन् विष्णौ विचिन्तिते ||

जो विष्णु मेरे चित्तमें विराजमान हैं, जो विष्णु मेरी बुद्धिमें स्थित हैं,
जो विष्णु मेरे अहङ्कारमें व्याप्त हैं तथा जो विष्णु सदा मेरे स्वरुपमें स्थित हैं,
वे ही कर्ता होकर सब कुछ करते हैं |
उन विष्णुभगवान् का चिन्तन करनेपर चराचर प्राणियोंका सारा पाप नष्ट हो जाता है |


ध्यातो हरति यः पापं स्वप्ने दृष्टश्च पापिनाम् |
तमुपेन्द्रमहं विष्णुं नमामि प्रणतप्रियम् ||

जो ध्यान करने और स्वप्नमें दीख जानेपर भी पापियोंके पाप हर लेते हैं तथा
चरणोंमें पड़े हुए शरणागत भक्त्त जिन्हें अत्यन्त प्रिय हैं,
उन वामनरुपधारी भगवान् श्री विष्णुको नमस्कार करता हूँ |


जगत्यस्मिन्निरालम्बे ह्यजमक्षरमव्ययम् |
हस्तावलम्बनं स्तोत्रं विष्णुं वन्दे सनातनम् ||

जो अजन्मा, अक्षर और अविनाशी हैं तथा
इस अवलम्बशून्य संसारमें हाथका सहारा देनेवाले हैं,
स्तोत्रोंद्वारा जिनकी स्तुति की जाती है, उन सनातन श्री विष्णुको मैं प्रणाम करता हूँ |


सर्वेश्वरेश्वर विभो परमात्मन्नधोक्षज |
हृषीकेश हृषीकेश हृषीकेश नमोऽस्तु ते ||

हे सर्वेश्वर, हे ईश्वर, हे व्यापक परमात्मन्, हे अधोक्षज, हे इन्द्रियोंका ज्ञासन करनेवाले अन्तर्यामी हृषिकेश, आपको बारम्बार नमस्कार है |


नृसिंहानन्त गोविन्द भूतभावन केशव |
दुरुक्तं दुष्कृतं ध्यातं शमयाशु जनार्दन ||

हे नृसिंह, हे अनन्त, हे गोविन्द, हे भूतभावन, हे केशव, हे जनार्दन, मेरे दुर्वचन, सुष्कर्म और दुश्चिन्तनको शीघ्र नष्ट कीजिये |


यन्मया चिन्तितं दुष्टं स्वचित्तवशवर्तिना |
आकर्णय महाबाहो तच्छमं नय केशव ||

महाबाहो, मेरी प्रार्थना सुनिये,
अपने चित्तके वशमें होकर मैंने जो कुछ बुरा चिन्तन
किया हो, उसको शान्त कर दीजिये |


ब्रह्मण्यदेव गोविन्द परमार्थपरायण |
जगन्नाथ जगद्धातः पापं शमय मेऽच्युत ||

ब्राह्मणोंका हित साधन करनेवाले देवता गोविन्द।
परमार्थमें तत्पर रहनेवाले जगन्नाथ, जगत् को धारण करनेवाले अच्युत, मेरे पापोंका नाश कीजिये |


यच्चापराह्णे सायाह्ने मध्याह्ने च तथा निशि |
कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता ||
जानता च हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव |
नामत्रयोच्चारणतः सर्वं यातु मम क्षयम् ||

मैंने पूर्वाह्ण, सायाह्न, मध्याह्न तथा रात्रिके समय शरीर, मन और वाणीके द्वारा, जानकर या अनजानमें जो कुछ पाप किया हो, वह सब हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष और माधव, इन तीन नामोंके उच्चारणसे नष्ट हो जाय |


शारीरं मे हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष मानसम् |
पापं प्रशममायातु वाक़्कृतं मम माधव ||

हृषीकेश, आपके नामोच्चारणसे मेरा शारीरिक पाप नष्ट हो जाय,
पुण्डरीकाक्ष, आपके स्मरणसे मेरा मानस पाप शान्त हो जाय तथा माधव, आपके नाम कीर्तनसे मेरे वाचिक पापका नाश हो जाय |


यद् भूञ्जान: पिबंस्तिष्ठन् स्वपञ्जाग्रद् यदा स्थितः |
अकार्षं पापमर्थार्थं कायेन मनसा गिरा ||
महदल्पं च यत्पापं दुर्योनिनरकावहम् |
तत्सर्वं विलयं यातु वासुदेवस्य कीर्तनात् ||

मैंने कहते, पीते, खड़े होते, सोते, जागते तथा ठहरते समय मन, वाणी और शरीरसे, स्वार्थ या धनके लिये जो कुत्सित योनियों और
नरकोंकी प्राप्ति करनेवाला महान् या थोड़ा पाप किया है,
वह सब भगवान् वासुदेवका नमोच्चारण करनेसे नष्ट हो जाय |


परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं च यत् |
अस्मिन् सङ्कीर्तिते विष्णौ यत् पापं तत् प्रणश्यतु ||

जिसे परब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र कहते हैं,
वह तत्त्व भगवान् विष्णु ही हैं, इन श्री विष्णु भगवान् का कीर्तन करनेसे मेरे जो भी पाप हों, वे नष्ट हो जायँ |


यत्प्राप्य न निवर्तन्ते गन्धस्पर्शविवर्जितम् |
सूरयस्तत्पदं विष्णोस्तत्सर्वं मे भवत्वलम् ||

जो गन्ध और स्पर्शसे रहित है, ज्ञानी पुरुष जिसे पाकर पुनः इस संसारमें नहीं लौटते,
वह श्री विष्णुका ही परम पद है |
वह सब मुझे पूर्णरुपसे प्राप्त जो जाय |


पापप्रशमनं स्तोत्रं यः पठेच्छृणुयान्नरः |
शारीरैर्मानसैर्वाचा कृतैः पापैः प्रमुच्यते ||
मुक्तः पापग्रहादिभ्यो याति विष्णोः परं पदम् | |
तस्मात्सर्वप्रयन्तेन स्तोत्रं सर्वाघनाशनम् |
प्रायश्चित्तमघौघानां पठितव्यं नरोत्तमैः || 


यह पापप्रशमन नामक स्तोत्र है |
जो मनुष्य इसे पढ़ता और सुनता है, वह शरीर, मन और
वाणीद्वारा किये हुए पापोंसे मुक्त्त हो जाता है |
इतना ही नहीं, वह पापग्रह आदिके भयके भी मुक्त होकर विष्णुके परम पदको प्राप्त होता है |
यह स्तोत्र सब पापोंका नाशक तथा पापराशिका प्रायश्चित्त है,
इसलिये श्रेष्ठ मनुष्योंको पूर्ण प्रयत्न करके इस स्तोत्रका पाठ करना चाहिये |


राजन्, इस स्तोत्रके श्रवणमात्रसे पूर्वजन्म तथा
इस जन्मके किये हुए पाप भी तत्काल नष्ट हो जाते हैं |
यह स्तोत्र पापरुपी वृक्षके लिये कुठार और पापमय इधनके लिये दावानल है |
पापराशिरुपी अन्धकार समूहका नाश करनेके लिये यह स्तोत्र सूर्यके समान
है | मैंने सम्पूर्ण जगत्पर अनुग्रह करनेके लिये इसे तुम्हारे सामने प्रकाशित किया है |
इसके पुण्यमय माहात्म्यका वर्णन करनेमें स्वयं श्रीहरि भी समर्थ नहीं हैं |


|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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