गुरु पूजन
गुरु (बृहस्पति) नीति निर्धारक हैं |जन्मकुंडली में गुरु की स्थिति उच्च होने पर जातक ज्ञानवान, लोकप्रिय और यशस्वी होता है |
अहितकर स्थान में होने पर जातक मंद बुद्धि और आकर्षणहीन रहता है |
सौरमंडल में गुरु का स्थान सूर्य के उत्तर में है | गुरु की पूजा शुक्ल पक्ष के गुरुवार को संध्या के समय करनी चाहिए | गुरु की आराधना उन कन्याओं के लिए विशेष फलदायी है | जिनके विवाह में विघ्न आ रहे हों |
गुरु का उपवासधारी केले के वृक्ष की पूजा करे, पीले वस्त्र धारण करे और दिन में एक बार पीला भोजन खाए |
|| आह्वान मंत्र ||
हाथ में पीले पुष्प और पीले चावल लेकर निम्नलिखित मंत्र द्वारा
गुरु का आह्वान करें,
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्दधुमद्विभाति क्रतु मज्जनेषु |
यदीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ||
उपायाम गृहीतोअसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बुहसपत्ये त्वा ||
देवानां च ऋषिणां च गुरुं कांचनसन्निभम् |
वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ||
|| स्थापना मंत्र ||
तत्पश्चात निम्नवत मंत्र द्वारा गुरुदेव की स्थापना करें,
ॐ भूर्भुवः स्वः बृहस्पते इहागच्छ इहतिष्ठ|
ॐ बृहस्पते नमः ||
मंत्र पाठ के बाद पीले पुष्प एवं पीले चावल नवग्रह मंडल में
गुरु के स्थान पर छोड़ दें |
|| ध्यान मंत्र ||
अब निम्नवत मंत्र द्वारा गुरुदेव का ध्यान करें,
पितामम्बरः पीतवपुः किरिटी चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशान्तः ||
पद्माक्षसूत्रं च कमण्डलुं च दंड च विभ्रद्वंरदो अस्तु ||
|| गुरु मंत्र ||
गुरु (बृहस्पति) के बीज मंत्र एवं तांत्रिक मंत्र नीचे दिए जा रहे हैं,
जिनकी जप 19,000 है |
ॐ बृं बृहस्पते नमः |
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः |
|| गुरु यंत्र ||
गुरु यंत्र में किसी भी ओर से जोड़ने पर योगफल 27 ही आता है |
इसे किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार या गुरु पुष्य के दिन भोजपत्र पर अनार की कलम से केसर की स्याही द्वारा लिखें |
फिर धूप, दीप एवं सुगंधित पीले पुष्प चढ़ाकर
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः मंत्र का जप करके सोने की तावीज या पीत वस्त्र में धारण करें |
|| गुरु दान ||
गुरु की दान सामग्री है, पीला अनाज, पीले वस्त्र, देशी घी, पीले फूल,
हल्दी, शर्करा, शुद्ध मधु, केला एवं धान |
यह दान गुरुवार के दिन दक्षिणा सहित देना चाहिए |
|| अस्तु ||
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Jyotish