अष्टाक्षर मंत्र विधी
ॐ अस्य श्रीनारायण मंत्रस्य साध्यनारायण ऋषिः |
देवी गायत्री छन्दः विष्णुर्देवता |
सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः |
|| ऋषिन्यासः ||
ॐ साध्यनारायण ऋषये नमः शिरसि
गायत्रीछन्दसे नमः मुखे
विष्णुदेवतायै नमः हृदि
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे |
इति ऋष्यादिन्यासः |
अंगादिन्यासः
ॐ क्रुद्धोल्काय नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ महोल्काय नमः तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ वीरोल्काय नमः मध्यमाभ्यां नमः |
ॐ द्व्युल्काय नमः अनमिकाभ्यां नमः |
ॐ सहस्त्रोल्काय नमः कनिष्टिकाभ्यां नमः |
ॐ स्वाहोल्काय नमः करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः |
ॐ क्रुद्धोल्काय नमः हृदयाय नमः |
ॐ महोल्काय नमः शिरसे स्वाहा |
ॐ वीरोल्काय नमः शिखायै वषट् |
ॐ द्व्युल्काय नमः कवचाय हुम् |
ॐ सहस्त्रोल्काय नमः नेत्रत्रयाय वौषट् |
ॐ स्वाहोल्काय नमःअस्त्राय फट् |
|| मंत्र न्यास ||
ॐ नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ नं नमः तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ मों नमः मध्यमाभ्यां नमः |
ॐ नां नमः अनामिकाभ्यां नमः |
ॐ रां नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः|
ॐ यं नमः करतलाय करपृष्ठाभ्यां नमः |
ॐ णां नमः करपृष्ठाभ्यां नमः |
ॐ यं नमः मणिबन्धये नमः |
ॐ नमः हृदयाय नमः |
ॐ नं नमः शिरसे स्वाहा |
ॐ मों नमः शिखायै वषट् |
ॐ नां नमः कवचाय हुम् |
ॐ रां नमः नेत्रत्रयाय वौषट् |
ॐ यं नमः अस्त्राय फट् |
ॐ णां नमः कुक्षौ |
ॐ यं नमः पृष्ठे |
|| मन्त्र ||
ॐ नमो नारायण
|| अष्टाक्षर मंत्र माहात्म्य ||
श्री शुकदेवजी बोले -
भगवान् विष्णुका एकाग्रचित्तसे ध्यान करते हुए जप करे |
एकान्त, जनशून्य स्थानमें, श्री विष्णुमूर्तिके सम्मुख अथवा जलाशयके निकट मनमें भगवान् विष्णुका ध्यान करते हुए अष्टाक्षर मन्त्रका जप करना चाहिये |
साक्षात् भगवान् नारायण ही अष्टाक्षरमन्त्रके ऋषि हैं,
दैवी गायत्री छन्द है, परमात्मा देवता हैं,
ॐकार शुक्लवर्ण है,
न रक्तवर्ण है,
मो कृष्णवर्ण है,
ना रक्त है,
रा कुंकुम रंगका है,
य पीतवर्णका है,
णा अञ्जनके समान कृष्णवर्णवाला है और
य विविध वर्णींसे युक्त है |
तात, यह ॐ नमो नारायण मन्त्र समस्त प्रयोजनोंका साधक है और
भक्तिपूर्वक जप करनेवाले लोगोंको स्वर्ग तथा मोक्षरुप फल देनेवाला है |
यह सनातन मन्त्र वेदोंके प्रणव से सिद्ध होता है |
यह सभी मन्त्रोंमें उत्तम, श्रीसम्पन्न और सम्पूर्ण पापोंको नष्ट करनेवाला है |
जो सदा संध्याके अन्तमें इस अष्टाक्षर मन्त्रका जप करता हुआ भगवान् नारायणका स्मरण करता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है |
यही उत्तम मन्त्र है और यही उत्तम तपस्या है |
यही उत्तम मोक्ष तथा स्वर्ग कहा गया है |
पूर्वकालमें भगवान् विष्णुने वैष्णवजनोंके हितके लिए सम्पूर्ण वेद रहस्योंसे यह सारभूत मन्त्र निकाला है |
इस प्रकार जानकर ब्राह्मणको चाहिये कि इस अष्टाक्षर मन्त्रका स्मरण करे |
स्नान करके, पवित्र होकर, शुद्ध स्थानमें बैठकर पापशुद्धिके लिये
इस मन्त्रका जप करना चाहिये |
जप, दान, होम, गमन, ध्यान तथा पर्वके अवसरपर और किसी मर्मके पहले तथा
पश्चात् इस नारायण मन्त्रका जप करना चाहिये |
भगवान् विष्णुके भक्तश्रेष्ठ द्विजको चाहिये कि वह प्रत्येक मासकी द्वादशी तिथिको पवित्र भावसे एकाग्रचित्त होकर सहस्त्र या लक्ष मन्त्रका जप करे |
स्नान करके पवित्रभावसे जो ॐ नमो नारायणाय मन्त्रका सौ बार जप करता है,
वह निरामय परमदेव भगवान् नारायणको प्राप्त करता है |
जो इस मन्त्रके द्वारा गन्ध पुष्प आदिसे भगवान् विष्णुकी आराधना करके इसका जप करता है, वह महापातकसे युक्त होनेपर भी निस्संदेह मुक्त हो जाता है |
जो हृदयमें भगवान् विष्णुका ध्यान करते हुए इस मन्त्रका जप करता है,
वह समस्त पापोंसे विशुद्धचित्त होकर उत्तम गतिको प्राप्त करता है |
एक लक्ष मन्त्रका जप करनेसे चित्तशुद्धि होती है,
दो लक्षके जपसे मन्त्रकी सिद्धि होती है, तीन लक्षके जपमे मनुष्य स्वर्गलोक प्राप्त कर सकता है, तीन लक्षके जपसे मनुष्य स्वर्गलोक प्राप्त कर सकता है,
चार लक्षसे भगवान् विष्णुकी समीपता प्राप्त होती है
और पाँच लक्षसे निर्मल ज्ञानकी प्राप्ति होती है |
इसी प्रकार छः लक्षसे भगवान् विष्णुमें चित्त स्थिर होता है,
सात लक्षसे भगवत्स्वरुपका ज्ञान होता है और
आठ लक्षसे पुरुष निर्वाण प्राप्त कर लेता है |
द्विजमात्रको चाहिये कि अपने अपने धर्मसे युक्त रहकर इस मन्त्रका जप करे |
यह अष्टाक्षर मन्त्र सिद्धिदायक है |
आलस्य त्यागकर इसका जप करना चाहिये |
इसे जप करनेवाले पुरुषके पास दुःस्वप्न, असुर, पिशाच, सर्प,
ब्रह्मराक्षस, चोर और छोटी मोटी मानसिक व्याधियाँ भी नहीं फटकती हैं |
विष्णुभक्तको चाहिये कि वह दृढ़संकल्प एवं स्वस्थ होकर
एकाग्रचित्तसे इस नारायण मन्त्रका जप करे |
यह मृत्युभयका नाश करनेवाला है |
मन्त्रोंमें सबसे उत्कृष्ट मन्त्र और देवताओंका भी देवता है |
यह ॐ कारादि अष्टाक्षर मन्त्र गोपनीय वस्तुओंमें परम गोपनीय है |
इसका जप करनेवाला मनुष्य आयु, धन, पुत्र, पशु, विद्या, महान् यश एवं
धर्म, अर्थ, काम और मोक्षको भी प्राप्त कर लेता है |
यह वेदों और श्रुतियोंके कथनानुसार धर्मसम्मत तथा सत्य है |
इसमें कोई संदेह नहीं कि, ये मन्त्ररुपी नारायण मनुष्योंको सिद्धि देनेवाले हैं |
ऋषि, पितृगण, देवता, सिद्ध, असुर और राक्षस इसी परम उत्तम मन्त्रका जप करके परम सिद्धिको प्राप्त हुए हैं |
जो ज्योतिष आदि अन्य शास्त्रोंके विधानसे अपना अन्तकाल निकट जानकर इस मन्त्रका जप करता है, वह भगवान् विष्णुके प्रसिद्ध परमपदको प्राप्त होता है |
भव्य बुद्धिवाले विरक्त्त पुरुष प्रसन्नतापूर्वक मेरी बात सुनें मैं दोनों भुजाएँ ऊपर उठाकर उच्चस्वरसे यह उपदेश देता हूँ कि संसाररुपी सर्पके भयानक विषका नाश करनेके लिये यह
ॐ नारायणाय नमः
मन्त्र ही सत्य औषध है |
पुत्र और शिष्यो सुनो आज मैं दोनों बाँहें ऊपर उठाकर सत्यपूर्वक कह रहा हूँ कि अष्टाक्षर मन्त्र से बढ़कर दूसरा कोई मन्त्र नहीं है |
मैं भुजाओंको ऊपर उठाकर सत्य, सत्य और सत्य कह रहा हूँ, वेदसे बढ़कर दूसरा शास्त्र और भगवान् विष्णुसे बढ़कर दूसरा कोई देवता नहीं है |
सम्पूर्ण शास्त्रोंकी आलोचना तथा बार बार उनका विचार करनेसे एकमात्र यही उत्तम सर्तव्या सिद्ध होता है कि नित्य निरन्तर भगवान् नारायणका ध्यान ही करना चाहिये |
बेटा, तुमसे और शिष्योंसे यह सारा पुण्यदायक प्रसंग मैंने कह सुनाया तथा
नाना प्रकारकी कथाएँ भी सुनायीं, अब तुम भगवान् जनार्दनका भजन करो |
महाबुद्धिमान् पुत्र, यदि तुम सिद्धि चाहते हो तो इस
सर्वःदुखनाशक अष्टाक्षर मन्त्रका जप करो |
जो पुरुष श्री व्यासजीके मुखसे निकले हुए इस स्तोत्रका त्रिकाल संध्याके समय पाठ करेंगे, वे धुले हुए श्वेत वस्त्र तथा राजहंर्सोके समान निर्मल चित्त हो निर्भयतापूर्वक संसार सागरसे पार हो जायैंगे |
|| अस्तु ||
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