सोमवार व्रतकी विधि और महिमा
महादेवजी कहते हैं -
पार्वती, कैलाशके उत्तर निषेध पर्वतके शिखरपर स्वयम्प्रभा नामक एक विशाल
पुरी है | उसमें धनवाहन नामके एक गन्धर्वराज रहते थे |
उनकी स्त्री बड़ी मनोहर थी |
उसके साथ रहकर वे वहाँ दिव्य भोगोंका उपभोग करते थे |
समयानुसार उनके आठ पुत्र हुए |
पुत्रोंके बाद एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसका नाम गन्धर्वसेना था |
वह पिता की आज्ञासे बहुत सी कन्याओंके साथ भाँति भाँतिके वृक्षों, लताओं, फलों और फूलोंसे सुशोभित सुन्दर उद्यानमें खेला करती थी |
एक दिन खेलती हुई उस कन्याको देखकर इसकी माताने पतिसे हका,
स्वामिन्, बन्धु बान्धवोंसहित आपका तथा मेरा भी जीवन व्यर्थ है,
जिनके घरमें इतनी बड़ी कन्या अभीतक अविवाहिता है |
पत्नीके ऐसा कहनेपर गन्धर्वराजने कहा,
देवि, मैं पुत्रीके लिये सुन्दर वरकी खोज करता हूँ | ऐसा कहकर धनवाहनने पुत्रीको पुकारा | माता पिताके बुलानेपर गन्धर्वसेना तुरंत वहाँ आयी और उनके चरणोंमें प्रणाम करके बोली पिताजी, क्या आज्ञा है ?
धनवाहनने प्रसन्न होकर कहा बेटी, तुम्हें जो कोई वर पसंद हो,
उसे बताओ | मैं उसी गन्धर्व शिरोमणिके साथ तुम्हारा विवाह कर दूँगा |
पिताके यों कहनेपर कन्याने कहा, क्या तीनों लोकोंमें मेरे रुपके करोड़वें अंशकी भी बराबरी करनेवाला कोई है ?
उसकी यह अद्भुत बात सुनकर पिता माता भौचक्के से रह गये और आपसमें बोले,
पुत्रीने यह अच्छी बात नहीं कही |
गन्धर्वसेना उस विशाल उद्यानमें पूर्ववत् सखियोंके साथ खेलने लगी |
वसन्तका समय था, वह झूला झूल रही थी |
उसी समय गणनायक शिखण्डी दिव्य विमानपर बैठा हुआ वहाँ आ निकला |
उसने आकाशसे ही उस कन्याको देखा |
मध्याह्न संध्याका समय था | वह विमानसे उतरा और उसी उद्यानमें ठहर
गया | उसी समय उसने गन्धर्वकन्याके मुखसे यह वचन सुना,
संसारमें कोई देवता अथवा दानव मेरे रुपके करोड़वें अंशके भी बराबर नहीं है |
तब गणनायकने अहङ्कारमें भरी हुई उस कन्याको शाप दे दिया,
तुम रुपके अभिमानमें गन्धर्वों और देवताओंका तिरस्कार करती हो,
अतः तुम्हारे शरीरमें कोढ़ हो जायगी |
यह शाप सुनकर वह कन्या भयभीत हो गयी और साष्टाङ्ग प्रणाम करके दायकी भीख माँगने लगी | उसकी विनयसे गणनायकको दया आ गयी और उसने कहा,
यह तुम्हारे गर्वका फल है, इसलिये गर्व कभी नहीं करना चाहिये |
हिमालयके वनमें गोश्रृंङ्ग नामके एक श्रेष्ठ मुनि रहते हैं |
वे तुम्हारा उपकार करेंगे | ऐसा कहकर गणनायक चला गया |
गन्धर्वसेना उस सुन्दर वनको छोड़कर पिताके समीप आयी और
कुष्ठ होनेका सब कारण कह सुनाया |
सुनकर उसके माता पिता शोकसे सन्तप्त हो उठे और पुत्रीको साथ ले तुरंत ही
हिमालय पर्वतपर आये | वहाँ उन्होंने गोशृङ्ग ऋषिके आश्रमको देखा |
मुनिवर गोशृङ्ग आश्रमके भीतर बैठे थे |
उनका दर्शन करके स्तुति प्रणाम करनेके अनन्तर वे दोनों गन्धर्व दम्पति उनके आगे भुपिपर बैठे | मुनिके पूछनेपर गन्धर्वराज ने कहा,
मेरी कन्याका शरीर कुष्ठरोगसे पीड़ित है |
जिससे उसकी शान्ति हो, वह उपाय करें |
गोशृङ्गजी बोले -
भारतवर्षमें समुद्रके समीप सर्वदेव वन्दित भगवान् सोमनाथ विराजमान हैं |
वहाँ जाकर मनुष्योंको एक समय भोजन करते हुए सब रोगोंके नाशके लिये सोमनाथकी पूजा करनी चाहिये |
तुम सोमवारव्रतके द्वारा भगवान् शङ्करकी आराधना करो |
ऐसा करनेसे तुम्हारी पुत्री का रोग नष्ट हो जायगा |
महर्षिका यह वचन सुनकर गन्धर्वराजने वहाँ जानेका विचार किया और
गोशृङ्ग मुनिसे पूछा,
भगवान्, सोमनाथ व्रत कैसे करना चाहिये ?
किस समय उसका अनुष्ठान उचित है ?
गोशृङ्गजीने कहा -
महाप्राज्ञ, पहले ब्राह्मवेलमें उठकर शौच आदिसे निवृत्त हो दन्तधावन करे, फिर स्न्नान करके स्वधर्मके अनुसार नित्यकर्म करे |
उसके बाद सुन्दर समतल एवं शुद्ध स्थानमें उत्तम कलश स्थापित करे,
जिसमें आमका पल्लव डाला गया हो और जिसपर चन्दनसे भाँति भाँतिके चित्र बनाये गये हों | कलशके ऊपर पात्र रक्खे और उस पात्रमें जटा मुकुटमण्डित सर्वाभूषण भूषित श्वेतवस्त्रधारी अर्द्धनारीश्वर शिवकी प्रतिमा स्थापित करे |
तत्पश्चात उमा सहित महेश्वरकी श्वेत वस्त्रों और भाँति भाँतिके भक्ष्य भोज्य पदार्थोंद्धारा पूजन करे | बिजौरा नीबू अर्पण करे |
निम्नाङ्कित मन्त्रसे सब पूजा करनी चाहिये |
ॐ नमः पञ्चवक्त्राय दशबाहुत्रिनेत्रिणे |
देव श्वेतवृषारुढ श्वेताभरणभूषित ||
उमादेहार्द्धसंयुक्त नमस्ते सर्वमूर्तये |
महादेव, आप श्वेत वृषभपर आरुढ़, श्वेत आभुषणोंसे भूषित तथा आधे शरीरमें
भगवती उमासें संयुक्त हैं |
आपके पाँच मुख दस भुजाएँ तथा प्रत्येक मुखके साथ तीन तीन नेत्र हैं |
आपको नमस्कार है | आप सर्वस्वरुप हैं, आपको नमस्कार है |
इसी मंत्रसे पूजन और स्तुति करके रात्रिंमें भोजन करे |
सोमनाथ महादेवजीका ध्यान करते हुए कुशकी चटाइपर सोये | ऐसा करनेपर अठारह प्रकारके कुष्ठ रोगोंका नाश होता है |
दूसरे सोमवारको करञ्जका,,,,,,,,,,,,,
दन्तधावन,,,,,,, करे और ज्येष्ठा शक्तिसे संयुक्त शिवका कमलके फूलोंसे पूजन करके विधिपूर्वक मधु भोजन करे |
भगवान्को नारंगी चढ़ाये | शेष सब विधि पूर्ववत् करे |
दूसरे सोमवारको ऐसा करनेसे लाख गोदानका फल प्राप्त होता है |
तिसरे सोमवारको अपामार्गकी दातुन करके शिवजीका पूजन करे |
अनारके फलका भोग लगाये तथा चमेलीके फूलोंसे पूजा करे |
रातमें अगुरु भोजन करे |
उस दिन सिद्धि नामक शक्तिके साथ शिवकी पूजा करनी चहिये |
चौथे सोमवारको गूलरकी दातुन करनेका विधान है |
उस दिन सोमासहित गौरीपतिकी पूजा करे | नारियलका फल चढ़ाये और दवनेके पत्तेसे पूजा करे | रातमें चीनी खाय और जागरण करे |
पाँचवे सोमवारको विभूतिसहित गणेश्वरकी कुन्दके फूलोंसे पूजा करे |
पीपलकी दातुन करे और मुनक्काके,,,,,,, साथ अर्घ्य दे |
रातको सफेद मक्का,,,,,,, का भोजन करे | ऐसा करनेसे अश्वमेघ,,,,
यज्ञका फल प्राप्त होता है |
छठे सोमवारको भद्रासहित स्वरुपनामक शिवका पूजन करे |
चमेलीकी दातुन करे और धतूरके फलसे अर्घ्य दे |
उस दिन बेलाके फूलोंसे परम भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये |
रातमें कपूर भोजन करे |
सातवें सोमवारको बेलाकी दातुन करे और दीप्ताशक्तिके साथ सर्वज्ञ शिवकी पूजा करे | नीबूका फल अर्पण करे और चमेलीके फूलोंसे पूजा करे |
रातको लौंग खाये | ऐसा करनेसे अनन्त फलकी प्राप्ति होती है |
आठवें सोमवारको केलेके फल और मरुआके फूलोंसे अमोघा शक्तिसहित जगदीश्वर शिवका पूजन करे | रातमें दूध पिये | इससे अग्निष्टोम यज्ञका फल प्राप्त होता है |
करोड़ बार गङ्गास्नान करनेसे और सुर्यग्रहणके समय कुरुक्षेत्रमे
वेदवेत्ता ब्राह्मणको दस हजार स्वर्णमुद्रा दान करनेसे जिस फलकी प्राप्ति होती है,
वही सोमवार व्रत करनेपर कोटि गुना होकर मिलता है |
नवाँ सोमवार प्राप्त होनेपर व्रतका उद्यापन करे |
ध्वजा पताकाओंसे सुशोभित गोल मण्डल और कुण्ड बनाये |
चार दरवाजे बनाकर मण्डपके मध्यमें चौकोर वेदीका निर्माण करे |
उसपर मण्डल बनाकर बीचमें कमल बनाये |
आठों दिशाओंमें पृथक पृथक सुवर्ण सहित कलश स्थापित करके पूर्वसे लेकर वामादि शक्तियोंकी भी स्थापना करे |
कर्णिकामें परम प्रकाशमय श्रीसोमनाथजीको विराजमान करे |
सोमनाथजीकी सुवर्णमयी प्रतिमा मनोमती नामक शक्तिके सहित स्वर्ण शय्यापर स्थापित करनी चाहिये |
सुवर्ण अथवा रजत आदिके पात्रको शहदसे भरकर उसे स्वर्ण शय्यापर आच्छादित करके रख दे और उसपर शिव प्रतिमाका पूजन करे |
फिर वस्त्र, आभूषण, ताम्बूल, छत्र, चर्वंर, दर्पण, दिप, घण्टा, चँदोवा, शय्या और गद्दा आदि वस्तुएँ सोमनाथकी प्रीतिके उद्देश्यसे पुराणवेत्ता आचार्यको दान करे |
वहीं होम कराये | पूजन करके रातमें वहीं जागरण करे |
अपने हृदयमें सोमनाथजीका ध्यान करते हुए पञ्चगव्य पीकर रहे |
प्रातःकाल स्न्नान करके विधिपूर्वक सोमदेवका ध्यान करे |
तत्पश्चात् दूध और खाँड़ आदिसे बने हुए अनेक प्रकारके भक्ष्य भोज्य पदार्थोंद्धारा नौ ब्राह्मणोंको भक्तिपूर्वक भोजन कराये |
दो वस्त्र और गोदान करके विसर्जन करे | इस प्रकार सोमवार व्रतका पालन करनेवाला पुरुष अक्षय पुण्यका भागी होता है |
धन धान्यसे सम्पन्न तथा स्त्री पुत्र आदिसे सुशोभित होता है |
उसके कुलमें कोई दरिद्र अथवा दुखी नहीं होता |
इस प्रकार विधिपूर्वक व्रत करनेपर मनुष्य देहत्यागके पश्चात् शिवलोकमें जाता है |
महाभाग, जहाँ भगवान् सोमनाथ विराजमान हैं, वहाँ शीघ्र जाओ |
महादेवजी कहते हैं -
गोशृङ्ग मुनिके यों कहनेपर गंधर्वराज धनवाहन अपनी पुत्रीके साथ सब उपहार लेकर प्रभासक्षेत्रमें आये | वे सोमनाथका दर्शन करके आनन्दमें मग्न हो गये |
यात्राके क्रमसे सोमनाथजीका पूजन करके उन्होंने कन्यासहित सोमवार व्रत किया |
इससे उनके ऊपर सोमनाथ प्रसन्न हुए और उनहोंने उनकी कन्याके रोगोंका नाश करके समस्त कामनाओंकी सिद्धि देनेवाला गन्धर्वदेशका राज्य तथा
अपनी भक्ति दी |
महादेवजीसे वरदान पाकर धनवाहन
गन्धर्व कृतार्थ हो गये | उनहोंने सोमनाथजीके उत्तर भागमें दण्डपाणिके समीप भक्तिपूर्वक गन्धर्वेश्वर शिवकी स्थापना की |
ये वरदासे पश्चिम पाँच धनुषकी दूरीपर स्थित हैं |
पश्चमी तिथिमें उनकी पूजा करके मनुष्य कभी दुखी नहीं होता |
धनवाहनकी पुत्री गन्धर्वसेनाने भी वहीं गौरीजीके समीप पूर्वभागमें तीन धनुषकी दूरीपर विमलेश्वर नामक शिवलिङ्गकी प्रतिष्ठा की,
जो सब रोगोंका नाश करनेवाला है | तृतीयाको विमलेश्वरकी पूजा करके प्रत्येक स्त्री दुर्भाग्य दोषसे मुक्त्त हो जाती, घरमें सम्मानित होती तथा पुत्र एवं सम्पूर्ण मनोरथोंको प्राप्त कर लेती है |
|| अस्तु ||
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VratKatha