रुद्राक्षका माहात्म्य तथा उसके धारण का फल
श्री महादेव उवाच
इदानीं शृणु वक्ष्यामि माहात्म्यं मुनिसत्तम |
रुद्राक्षस्य परं गुह्यं पुण्याख्यानं समासतः || १ ||
अङ्गेषु धारणात्सर्वदेहिनां पापसंचयम् |
विनाशयति रुद्राक्षफलं जन्मशतार्जितम् || २ ||
गुरोरप्रणतेर्जांतं देवानां च महात्मनाम् |
अग्रणामाद्द्विजातीनां दर्पादज्ञानतोऽपि वा || ३ ||
यत्पापं संचितं पूर्वं जन्मकोटिषु नारद |
तत्पापं नाशमायाति शिरसाप्यभिधारणात् || ४ ||
असत्यभाषणाल्लोभात्परोच्छिष्टादिभक्षणात् |
सुरापानाच्च सम्भूतं यत्पापं नाशमाप्रुयात् |
कण्ठेऽभिधारणादस्य तत्पापं नाशमाप्नुयात् || ५ ||
परद्रव्यापहाराच्च परदेहातिताडनात् |
अस्पृश्यवस्तुसंस्पर्शात्तथा गर्ह्यपरिग्रहात् || ६ ||
यत्पापं संचितं पूर्वं कोटिजन्मसु नारद |
तत्पापं नाशमायाति करे रुद्राक्षधारणात् || ७ ||
असत्प्रसङ्गं श्रुत्वा च यत्पापं पूर्वसंचितम् |
तत्पापं नाशमायाति कर्णे रुद्राक्षधारणात् || ८ ||
परस्वीगमनाद्ब्रह्मवधाद्वेदस्य कर्मणः |
संत्यागात्संचितं पापं यत्पूर्वं बहुजन्मसु |
तत्पापं नाशमायाति यत्र कुत्रापि धारणात् || ९ ||
रुद्राक्षभूषणैर्युक्तं दृष्ट्वा सम्प्रणमेत्तु यः |
सोऽपि पापात्प्रमुच्येत कृतपापशतोऽपि चेत् || १० ||
रुद्राक्षधारी विहरेन्महरुद्र इवापरः |
निर्भया धरणीपृष्ठे देवपूज्यतमः स्वयम् || ११ ||
विधृत्य चैकं रुद्राक्षं शम्भुं वा परमेश्वरिम् |
विष्णुं वा योऽर्चयेत्सोऽपि शिवसायुज्यमाप्रुयात् || १२ ||
अविधृत्य नरो यस्तु रुद्राक्षं मुनिसत्तम |
कुरुते पैतृकं कर्म दैवं वापि विमोहितः |
न तस्य फलमाप्नोति वृथा तत्कर्म च स्मृतम् || १३ ||
रुद्राक्ष मालया मन्त्रं यो जपेच्छिवदुर्गयोः |
स प्रयाति नरः स्वर्गं महादेवप्रसादतः || १४ ||
काश्यां वा जाह्नवीक्षेत्रे तीर्थेऽन्यस्मिंश्च वा नरः |
रुद्राक्ष रहित: कर्म नैव कुर्यात्कदाचन || १५ ||
एकवक्त्रं तु रुद्राक्षं गृहे यस्य हि वर्तते |
तस्य गेहे वसेल्लक्ष्मीः सुस्थिरा मुनिसत्तम् || १६ ||
न दौर्भाग्यं भवेत्तस्य नापमृत्युः कदाचन |
बिभर्ति यस्तु तं कण्ठे बाहौ वा मुनिसत्तम् || १७ ||
तस्य प्रसन्नो भगवान्शंभुर्देव: सुदुर्लभः |
कुरुते यत्परं धर्मकर्म तच्च महाफलम् || १८ ||
रुद्राक्षधारी सन्त्यज्य देहं वै यत्र कुत्रचित् |
अवश्यं स्वर्गमाप्नोति तत्र नास्त्येव संशयः || १९ ||
गंगायां तु विशेषेण फलदं तस्य धारणाम् |
काश्यां ततोधिकम ज्ञेयं किमन्यत्कथयामि ते || २० ||
इति ते कथितं पुण्यं माहात्म्यं मुनिसत्तम् |
रुद्राक्षस्य तु संक्षेपान्महापातकनाशनम् || २१ ||
य इदं प्रपठेद्भक्त्या शृणुयाद्वापि यो नरः |
प्राप्नोति स पदं शंभोरपि देवैः सुदुर्लभम् || २२ ||
बिल्वमूले पठेदेतच्चुर्दश्यामुपोषितः |
स मुच्यते महापापादपि जन्मशतार्जितात् || २३ ||
गंगायां वा कुरुक्षेत्रे काश्यां वा मुनिसत्तम |
सेतुबन्धे महातीर्थे गंगासागरसंगमे || २४ ||
शिवरात्रिचतुर्दश्यां यः पठेच्छिवसन्निधौ |
सर्वपापविनिर्मुक्तो रूद्रलोकमवाप्नुयात् || २५ ||
|| रुद्राक्ष माहात्म्य सम्पूर्णं ||
|| अनुवाद ||
श्री महादेवजी बोले -
मुनिश्रेष्ठ, अब मैं रुद्राक्षकी महिमा तथा उसके परम पवित्र और
गोपनीय आख्यानका संक्षेपमें वर्णन कर रहा हूँ,
आप ध्यानसे सुनिये || १ ||
रुद्राक्षका फल अङ्गोंमें धारण करनेसे वह सभी मनुष्योंके सैकड़ों जन्मोंके
अर्जित पापसमूहोंका विनाश कर देता है || २ ||
नारद, अभिमानपूर्वक अथवा अज्ञानसे गुरु, देवताओं, महात्माओं तथा
द्विजातियोंको प्रणाम न करनेसे उत्पन्न हुए करोड़ों पूर्वजन्मोंके
जो पाप संचित रहता है,
वह सिरपर रुद्राक्ष धारण करनेसे नष्ट हो जाता है || ३-४ ||
लोभसे, असत्य भाषण तथा उच्छिष्ट आदि पदार्थोंके भक्षण और
सुरापानसे होनेवाले करोड़ो जन्मोंका जो पाप होता है,
वह कण्ठमें रुद्राक्षके धारण करनेसे विनष्ट हो जाता है || ५ ||
नारद, दूसरोंके धनका हरण करने, दूसरोंके शरीरपर अत्यधिक चोट पहुँचाने,
अस्पृश्य पदार्थोंका स्पर्श करने तथा निन्दित वस्तुओंको ग्रहण करनेसे
करोड़ों पूर्वजन्मोंका जो पाप संचित रहता है,
वह पाप हाथमें रुद्राक्ष धारण करनेसे नष्ट हो जाता है || ६-७ ||
निन्दनीय बातोंको सुननेसे पूर्वजन्मोंके जो संचित पाप होता है,
वह कानमें रुद्राक्ष धारण करनेसे विनष्ट हो जाता है || ८ ||
परस्त्रीगमन, ब्रह्महत्या तथा वैदिक कर्मोंके त्याग करनेसे अनेक
पूर्वकजन्मोंका जो भी पाप संचित रहता है,
वह पाप शरीरमें जहाँ कहीं भी रुद्राक्ष धारण करनेसे नष्ट हो जाता है || ९ ||
रुद्राक्षसे भूषित व्यक्तिको देखकर जो मनुष्य उसे प्रणाम करता है,
वह सैकड़ों पाप करनेपर भी पापसे मुक्त हो जाता है || १० ||
रुद्राक्ष धारण करनेवाला मनुष्य देवताओंमें पूज्यतम साक्षात् दूसरे महारुद्रकी भाँति
पृथ्वीतलपर निर्भय होकर विचरण करता है || ११ ||
जो मनुष्य एक भी रुद्राक्ष धारण करके भगवान् शिव,
भगवती परमेश्वरी अथवा भगवान् विष्णुका पूजन करता है,
वह भी शिवसायुज्य प्राप्त कर लेता है || १२ ||
मुनिश्रेष्ठ, जो मनुष्य बिना रुद्राक्ष धारण किये अज्ञानवश कोई भी पितृ अथवा
देवकर्म करता है, वह उसका फल प्राप्त नहीं करता है और
वह कर्म भी व्यर्थ कहा गया है || १३ ||
जो मनुष्य रुद्राक्षकी मालासे शिव तथा दुर्गाके मन्त्रका जाप करता है,
वह महादेवकी कृपासे स्वर्ग जाता है || १४ ||
रुद्राक्षके रहित होकर काशी, गङ्गाक्षेत्र अथवा
अन्य तीर्थक्षेत्रमें कभी भी कोई धार्मिक कर्म नहीं करना चाहिये || १५ ||
मुनिश्रेष्ठ, जिस मनुष्यके घरमें एकमुखी रुद्राक्ष रहता है,
उसके घरमें भलीभाँति स्थिर होकर लक्ष्मी निवास करती है |
मुनिश्रेष्ठ, जो मनुष्य कण्ठमें अथवा भुजापर उस एकमुखी रुद्राक्षको धारण करता है,
उसके दुर्भाग्यका उदय नहीं होता और न तो उसकी
अकालमृत्यु होती है |
अत्यन्त कठिनतासे प्राप्त होनेवाले भगवान् शिव
उसपर प्रसन्न हो जाते हैं |
वह मनुष्य जो भी श्रेष्ठ धर्म तथा कर्म करता है,
वह महान् फलदायक होता है || १६-१८ ||
रुद्राक्ष धारण करनेवाला मनुष्य जहाँ कहीं भी अपने देहका त्याग करके
निश्चय ही स्वर्ग प्राप्त करता है,
इसमें लेशमात्र भी संशय नहीं है || १९ ||
गङ्गामें रुद्राक्ष धारण विशेषरूपसे फल प्रदान करता है और
काशीमें उससे भी अधिक फल मिलता है,
इस बम्बन्धमें आपसे और क्या कहूँ || २० ||
मुनिश्रेष्ठ, इस प्रकार मैंने आपसे महापातकोंका नाश करनेवाले तथा
कल्याणकारी रुद्राक्ष माहात्म्यका संक्षेपमे वर्णन किया || २१ ||
जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस माहात्म्यका पाठ अथवा श्रवण करता है,
वह देवतोंके लिए भी दुर्लभ शिवपद प्राप्त कर लेता है |
जो मनुष्य निराहार रहकर बिल्ववृक्षके निचे चतुर्दशीके दिन
इसका पाठ करता है,
वह सैकड़ों जन्मोंके अर्जित महापापोंसे मुक्त हो जाता है || २२-२३ ||
मुनिश्रेष्ठ, जो मनुष्य शिवरात्रि, चतुर्दशीके दिन भगवान् शिवकी संनिधिमें गङ्गा,
कुरुक्षेत्र, काशी, सेतुबन्ध रामेश्वर तथा
महातीर्थ गङ्गासागरसङ्गममें इसका पाठ करता है,
वह समस्त पापोंसे मुक्त होकर रुद्रलोक प्राप्त कर लेता है || २४-२५ ||
|| रुद्राक्ष माहात्म्य सम्पूर्णं हुआ ||
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