रुद्र स्नानकी विधि
महाराज युधिष्ठरने कहा -
भगवान्, अब आप सभी दोषोंको शान्त करनेवाले
रुद्र स्नानके विधानका वर्णन करें |
भगवान् श्रीकृष्ण बोले -
महाराज, इस सम्बन्धमें महर्षि अगस्त्यके पूछनेपर
देवसेनापति भगवान् स्कन्दने जो बताया था, उसे आप सुनें |
जो मृतवत्सा, वन्ध्या, दुर्भगा, संतानहीन या केवल कन्या जनती हो,
उस स्त्रीको चाहिये कि वह रुद्र स्नान करे |
अष्टमी, चतुर्दशी अथवा रविवारके दिन नदीके तटपर या महानदियोंके संगममें,
शिवालयमें, गोष्ठमें अथवा अपने घरमें सुयोग्य ब्राह्मणद्वारा स्नान विधिका परिज्ञान करस्नान करे |वह गोबरद्वारा उपलिप्त स्थानमें
एक उत्तम मण्डप बनाकर उसके मध्यमें अष्टदल कमल बनाये |
उसके मध्यमें कर्णिकाके ऊपर भगवान् महादेवकी,
उनके वाम तथा दक्षिण भागमें क्रमशः पार्वती एवं विनायककी और कमलके अष्टदलोंमें इन्द्रादि दिक्पालोंकी स्थापना करे |
तदनन्तर गन्धादि उपचारोंसे उनकी पूजा करे |
मण्डपके चरों कोणोंमें कलश स्थापित करे |
चारों दिशाओंमें भूत बलि भी दे | मण्डपके अग्निकोणमें कुण्ड नमक,
सर्षप, घी और मधुसे मा नस्तोके तनये, इत्यादि वैदिक मन्त्रसे हवन करे |
आचार्य, ब्रह्मा एवं ऋत्विजोंके साथ जापाकका भी वरण करे |
एकादश रुद्रपाठ भी कराये |
इस प्रकार दूसरे मण्डपका निर्माण कर
उस व्रतकर्त्री स्त्रीको मण्डपमें बैठाकर रुद्रपूजक आचार्य उसे स्नान करायें |
अर्क पत्रके दोनेमें जल लेकर रुद्रैकादशिनीका पाठ कर उस अभिमन्त्रित जलसे स्त्रीका अभिषेक करे | अनन्तर सप्तमृत्तिकामिश्रित जल,
रुद्र कलशके जल एवं इन्द्रादि दिक्पालोंके पूजित कलशोंके
अभिमन्त्रित जलसे उसे स्नान कराये |
इस प्रकार रुद्र स्नान विधि पूर्ण हो जानेपर स्वर्णमयी धेनु, प्रत्यक्ष धेनु तथा अन्य सामग्री आचार्यको दान करे और ब्राह्मणोंको भोजन कराकर वस्त्र, दक्षिणा देकर
क्षमा याचना करे |जो स्त्री विधिसे स्नान करती है,
वह सौभाग्य सुख प्राप्त करती है और पुत्रवती होती है |
उसके शरीरमें रहनेवाले सभी दोष ब्राह्मणोंकी आज्ञासे,
रुद्र स्नान करनेसे दूर हो जाते हैं |
पुत्र, लक्ष्मी तथा सुखकी इच्छा करनेवाली नारीको
यह व्रत अवश्य करना चाहिये,
इससे वह जीवितवत्सा हो जाती है |
|| अस्तु ||
Tags:
Karmkand