विजया दशमी
आश्विन शुक्ल दशमी के दिन मनाया जाने वाला विजयादशमी का त्योहार वर्षा
ऋतु की समाप्ति तथा शरद के आरम्भ का सूचक है |
इन दिनों दिग्विजय यात्रा तथा व्यापर के पुनः आरम्भ की तैयारियां होती हैं |
वर्षा काल में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं,
उनके आरम्भ के लिये साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं |
यह क्षत्रियों का बहुत बड़ा पर्व है | इस दिन ब्राह्मण सरस्वती पूजन तथा
क्षत्रिय शस्त्र पूजन करते हैं |
इसीलिए विजयादशमी या दशहरा राष्ट्रीय पर्व है |
इस पर्व के लिए श्रवण नक्षत्र, प्रदोष व्यापिनी एवं
नवमी विद्धा दशमी प्रशस्त होती है |
अपराह्नकाल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारम्भ विजय यात्रा का
मुहूर्त माना गया है |
दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय प्रयाण, शमी पूजन तथा नवरात्र पारण
इस पर्व के महान कर्म हैं |
इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है |
इस दिन प्रातःकाल देवी का विधिवत पूजन करके नवमी विद्धा दशमी में विसर्जन तथा नवरात्र का पारण करना चाहिए |
अपराह्न वेला में ईशान दिशा में शुद्ध भूमि पर चंदन, कुमकुम आदि से
अष्टदल कमल का निर्माण करके सम्पूर्ण सामग्री जुटाकर अपराजिता देवी के साथ
जया तथा विजया देवियों के पूजन का भी विधान है |
शमी वृक्ष के पास जाकर विधिपूर्वक शमी देवी का पूजन करके शमी वृक्ष के जड़ की मिट्टी लेकर वाद्य यंत्रों सहित वापस लौटना चाहिए |
यह मिट्टी किसी पवित्र स्थान पर रखनी चाहिए |
इस दिन शमी के टूटे हुए पत्तों अथवा डालियों की पूजा नहीं करनी चाहिए |
बंगाल में यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है | देश के कोने कोने में इस पर्व से कुछ दिन पूर्व रामलीलाएं शुरु हो जाती हैं |
इस दिन सूर्यास्त होते ही रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं |
इस पर्व को भगवती के विजया नाम के कारण भी विजयादशमी कहते हैं |
साथ ही इस दिन भगवान रामचन्द्रजी चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर लंका पर विजय पाकर अयोध्या लौटे थे,
इसलिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है |
ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है |
यह काल सर्वकाल सिद्धिदायक होता है |
|| अस्तु ||
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