गोत्र प्रवर ज्ञानकी आवश्यकता | Gotra Pravar Gyan Ki Aavashyakta |

 

गोत्र प्रवर ज्ञानकी आवश्यकता

गोत्र प्रवर ज्ञानकी आवश्यकता


सूतजी कहते हैं
ब्राह्मणों गोत्र प्रवरकी परम्पराको जानना अत्यन्त आवश्यक होता है,
इसलिए अपने अपने गोत्र या प्रवरको पिता, आचार्य तथा
शास्त्रद्वारा जानना चाहिये |
गोत्र प्रवरको जाने बिना किया गया कर्म विपरीत फलदायी होता है |
कश्यप, वसिष्ठ, विश्वामित्र, आङ्गिरसम च्यवन,मौकुन्य, वत्स, कात्यायन, अगस्त्य आदि अनेक गोत्रप्रवर्तक ऋषि हैं |
गोत्रोंमें एक, दो, तीन, पाँच आदि प्रवर होते हैं |
समान गोत्रमें विवाहादि सम्बन्धोंका निषेध है |
अपने गोत्र प्रवरादिका ज्ञान शस्त्रान्तरोंसे कर लेना चाहिये |

वास्तवमें देखा जाये तो सारा जगत् महामुनि काश्यपसे उत्पन्न हुआ है |
अतः जिन्हें अपने गोत्र और प्रवरका ज्ञान नहीं है,
उन्हें अपने पीताजिसे ज्ञान कर लेना चाहिये |
यदि उन्हें मालूम न हो तो स्वयंको काश्यप गोत्रीय मानकर उनका प्रवर लगाकर शस्त्रानुसार कर्म करना चाहिये |

|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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