गोत्र प्रवर ज्ञानकी आवश्यकता
सूतजी कहते हैं
ब्राह्मणों गोत्र प्रवरकी परम्पराको जानना अत्यन्त आवश्यक होता है,
इसलिए अपने अपने गोत्र या प्रवरको पिता, आचार्य तथा
शास्त्रद्वारा जानना चाहिये |
गोत्र प्रवरको जाने बिना किया गया कर्म विपरीत फलदायी होता है |
कश्यप, वसिष्ठ, विश्वामित्र, आङ्गिरसम च्यवन,मौकुन्य, वत्स, कात्यायन, अगस्त्य आदि अनेक गोत्रप्रवर्तक ऋषि हैं |
गोत्रोंमें एक, दो, तीन, पाँच आदि प्रवर होते हैं |
समान गोत्रमें विवाहादि सम्बन्धोंका निषेध है |
अपने गोत्र प्रवरादिका ज्ञान शस्त्रान्तरोंसे कर लेना चाहिये |
वास्तवमें देखा जाये तो सारा जगत् महामुनि काश्यपसे उत्पन्न हुआ है |
अतः जिन्हें अपने गोत्र और प्रवरका ज्ञान नहीं है,
उन्हें अपने पीताजिसे ज्ञान कर लेना चाहिये |
यदि उन्हें मालूम न हो तो स्वयंको काश्यप गोत्रीय मानकर उनका प्रवर लगाकर शस्त्रानुसार कर्म करना चाहिये |
|| अस्तु ||
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