जानकी स्तुति
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापणाशिनीम् ||
दारिद्र्यरणसंहर्त्री भक्तानामिष्टदायिनिम् |
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ||
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् |
पौलस्त्यैश्वर्यसंहर्त्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ||
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् |
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ||
आत्मविद्यां त्रयीरुपामुमारुपां नमाम्यहम् |
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ||
नमामि चन्द्रभगिनीं सितां सर्वाङ्गसुन्दरीम् |
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ||
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षःस्थलालयाम् |
नमामि चन्द्रनिलयां सितां चन्द्रनिभाननाम् ||
आह्लादरुपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम् |
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् |
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ||
जनकनन्दिनी, आपको नमस्कार करता हूँ |
आप सब पापोंका नाश तथा दारिद्र्यका संहार करनेवाली हैं |
भक्तोंको अभीष्ट वस्तु देनेवाली भी आप ही हैं | राघवेन्द्र श्रीरामको आनन्द प्रदान करनेवाली विदेहराज जनककी लाड़ली श्री किशोरीजीको मैं प्रणाम करता हूँ |
आप पृथ्वीकी कन्या और विद्या स्वरुपा हैं, कल्याणमयी प्रकृति भी आप ही हैं |
रावणके ऐश्वर्यका संहार तथा भक्तोंके अभीष्टका दान करनेवाली सरस्वतीरुपा भगवती सीताको मैं नमस्कार करता हूँ |
पतिव्रताओंमें अग्रगण्य आप श्रीजनकदुलारीको मैं नमस्कार करता हूँ |
आप ही क्षीरसागरकी कन्या महालक्ष्मी हैं, जो भक्तोंको कृपा प्रसाद प्रदान करनेके लिये सदा उत्सुक रहती हैं |
चन्द्रमाकी भगिनी सर्वांगसुन्दरी सीताको मैं प्रणाम करता हूँ |
धर्मकी आश्रयभूता करुणामयी वेदमाता गायत्रीस्वरुपिणी श्री जानकीको मैं नमस्कार करता हूँ | आपका कमलमें निवास है, आप ही हाथमें कमल धारण करनेवाली तथा भगवान् विष्णुके वक्षःस्थलमें निवास करनेवाली लक्ष्मी हैं, चन्द्रमण्डलमें भी आपका निवास है, आप चन्द्रमुखी सीतादेवीको मैं नमस्कार करता हूँ | आप श्री रघुनन्दनकी आह्लादमयी शक्ति हैं, कल्याणमयी सिद्धि हैं और भगवान् शिवकी अर्द्धांगिनी कल्याणकारिणी सती हैं |
श्रीरामचन्द्रजीकी परम प्रियतमा जगदम्बा जानकीको मैं प्रणाम करता हूँ |
सर्वांगसुन्दरी सीताजीका मैं अपने हृदयमें निरन्तर चिन्तन करता हूँ |
|| इति श्री स्कन्दमहापुराणे सेतुमहात्म्ये श्री जानकी स्तुतिः सम्पूर्णम् ||