कमला स्तोत्रम्
ओंकाररुपिणी देवि विशुद्धसत्त्वरुपिणी |
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि || १ ||
हे देवि लक्ष्मी, आप ओंकार स्वरुपिणी हैं,
आप विशुद्धसत्त्व गुणरुपिणी और देवताओं की माता हैं |
हे सुंदरी, आप हम पर प्रसन्न हों || १ ||
तत्मात्रंचैव भूतानि तव वक्षस्थलं स्मृतम् |
त्वमेव वेदगम्या तु प्रसन्ना भव सुन्दरि || २ ||
हे सुन्दरि, पंचभूत और पंचतन्मात्रा आपके वक्षस्थल हैं,
केवल वेद द्वारा ही आपको जाना जाता है |
आप मुझ पर कृपा करें || २ ||
देवदेनावगन्धर्वयक्षराक्षसकिन्नरः |
स्तूयसे त्वं सदा लक्ष्मि प्रसन्ना भव सुन्दरि || ३ ||
हे देवि लक्ष्मी, देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर
सभी आपकी स्तुति करते हैं |
आप हम पर प्रसन्न हों || ३ ||
लोकातीता द्वैतातीता समस्तभूतवेष्टिता |
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुन्दरि || ४ ||
हे जननी, आप लोक और द्वैत से परे और संपूर्ण भूतगणों से घिरी हुई रहती हैं |
विद्वान लोग सदा आपका गुणकीर्तन करते हैं |
हे सुन्दरि, आप मुझ पर प्रसन्न हों || ४ ||
परिपूर्णा सदा लक्ष्मि त्रात्री तु शरणार्थिषु |
विश्वाद्या विश्वकत्रीं च प्रसन्ना भव सुन्दरि || ५ ||
दे देवि लक्ष्मि, आप नित्यपूर्णा शरणागतों का उद्धार करने वाली,
विश्व की आदि और रचना करने वाली हैं |
हे सुन्दरि, आप मुझ पर प्रसन्न हों || ५ ||
ब्रह्मरुपा च सावित्री त्वद्दीप्त्याभासते जगत् |
विश्वरुपा वरेण्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि || ६ ||
हे माता, आप ब्रह्मरुपिणी, सावित्री हैं |
आपकी दीप्ती से ही त्रिजगत प्रकाशित होता है,
आप विश्वरुपा और वर्णन करने योग्य हैं |
हे सुन्दरि, आप मुझ पर कृपा करें || ६ ||
क्षित्यप्तेजोमरुद्धयोमपंचभूतस्वरुपिणी |
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि || ७ ||
हे जननी, क्षिति, जल, तेज, मरुत् और व्योम पंचभूतों की स्वरुपा आप ही हैं |
गंध, जल का रस, तेज का रुप, वायु का स्पर्श और आकाश में शब्द आप ही हैं |
आप इन पंचभूतों के गुण प्रपंच का कारण हैं, आप हम पर प्रसन्न हों || ७ ||
महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च |
ब्रह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि || ८ ||
हे देवि, आप शूलपाणि महादेवजी की प्रियतमा हैं |
आप केशव की प्रियतमा कमला और ब्रह्मा की प्रेयसी ब्रह्माणी हैं,
आप हम पर प्रसन्न हों || ८ ||
चंडी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरुपिणी |
योगिनी योगगम्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि || ९ ||
हे देवि, आप चंडी, दुर्गा, कालिका, कौशिकी, सिद्धिरुपिणी, योगिनी हैं |
आपको केवल योग से ही प्राप्त किया जाता है |
आप हम पर प्रसन्न हों || ९ ||
बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवतीति च |
स्थविरे वृद्धरुपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि || १० ||
हे देवि, आप बाल्यकाल में बालिका, यौवनकाल में युवती और
वृद्धावस्था में वृद्धरुप होती हैं |
हे सुन्दरि, आप हम पर प्रसन्न हों || १० ||
गुणमयी गुणातीता आद्या विद्या सनातनी |
महत्तत्त्वदिसंयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरि || ११ ||
हे जननी, आप गुणमयी, गुणों से परे, आप आदि, आप सनातनी और
महत्तत्त्वदिसंयुक्त हैं |
हे सुन्दरि, आप हम पर प्रसन्न हों || ११ ||
तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तदर्थिषु |
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुन्दरि || १२ ||
हे माता, आप तपस्वियों की तपः सिद्धि स्वर्गार्थिगणों की
स्वर्गसिद्धि, आनंदस्वरुप और मूल प्रकृति हैं |
हे सुन्दरि, आप हम पर प्रसन्न हों || १२ ||
त्वमादिर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकारणम् |
त्वमन्ते निधनस्थानं स्वेच्छाचारा त्वमेवहि || १३ ||
हे जननी, आप जगत् की आदि स्थिति का एकमात्र कारण हैं |
देह के अंत में जीवगण आपके ही निकट जाते हैं |
आप स्वेच्छाचारिणी हैं |
आप हम पर प्रसन्न हों || १३ ||
चराचराणां भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि |
व्याप्यव्याकरुपेण त्वं भासि भक्तवत्सले || १४ ||
हे भक्तवत्सले, आप चराचर जीवगणों के बाहर और
भीतर दोनोंस्थालों में विराजमान रहती हैं, आपको नमस्कार है || १४ ||
त्वन्मायया हृतज्ञाना नष्टात्मानो विचेतसः |
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्यवशात्सदा || १५ ||
हे माता, जीवगण आपकी माया से ही अज्ञानी और
चेतनारहित होकरपुण्य के वश से बारम्बार इस संसार में आवागमन करते हैं || १५ ||
तावन्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा |
यावन्न ज्ञायते ज्ञानं चेतसा नान्वगामिनी || १६ ||
जैसे सीपी में अज्ञानतावश चांदी का भ्रम हो जाता है और
फिरउसके स्वरुप का ज्ञान होने पर वह भ्रम दूर हो जाता है,
वैसेही जब तह ज्ञानमयी चित्त में आपका स्वरुप नहीं जाना जाता है,
तब तक ही यह जगत् सत्य भासित होता है, परन्तु आपके स्वरुप का
ज्ञान हो जाने से यह सारा मिथ्या लगने लगता है || १६ ||
त्वज्ज्ञानात्तु सदा युक्तः पुत्रदारगृहादिषु |
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुखप्रदान् ध्रुवंम् || १७ ||
जो मनुष्य आपके ज्ञान से पृथक रहते हुए जगत् को ही सत्य मानकर विषयों में लगे रहते हैं, निःसंदेह अंत में उनको महादुःख मिलता है || १७ ||
त्वदाज्ञया तु देवेशि गगने सूर्यमण्डलम् |
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि || १८ ||
हे देवेश्वरी, आपकी आज्ञा सूर्य और
चंद्रमा आकाश मण्डलमें नियमित भ्रमण करते हैं |
आप हम पर प्रसन्न हों |
ब्रह्मेशविष्णुजननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया |
व्यक्ताव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुन्दरि || १९ ||
हे देवेश्वरी, आप ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की भी जननी हैं |
आप ब्रह्माख्या और ब्रह्मासंश्रया हैं,
आप ही प्रगट और गुप्त रुप से विराजमान रहती हैं |
हे देवि, आप हम पर प्रसन्न हों || १९ ||
अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरि |
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुन्दरि || २० ||
हे देवि, आप अचल, सर्वगामिनी, माया से परे, शिवात्मा और नित्य हैं |
हे देवि, आप हम पर प्रसन्न हों || २० ||
सर्वकायनियन्त्री च सर्व्वभूतेश्वरी |
अनन्ता निष्काला त्वं हिप्रसन्ना भवसुन्दरि || २१ ||
हे देवि, आप सबकी देह की रक्षक हैं |
आप सम्पूर्ण जीवों की ईश्वरी, अनन्त और अखंड हैं |
आप हम पर प्रसन्न हों || २१ ||
सर्वेश्वरी सर्ववद्या अचिन्त्या परमात्मिका |
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि || २२ ||
हे माता, सभी भक्तिपूर्वक आपकी वंदना करते हैं |
आपकी कृपा से ही भुक्ति और मुक्ति प्राप्त होती है |
हे सुन्दरि, आप हम पर प्रसन्न हों || २२ ||
ब्राह्मणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुण्ठे सर्वमंगला |
इंद्राणी अमरावत्यामम्बिका वरुणालये || २३ ||
हे माता, आप ब्रह्मलोक में ब्राह्मणी, वैकुण्ठ में सर्वमंगला,
अमरावती में इंद्राणी और वरुणालयमे अम्बिकास्वरुपिणी हैं |
आपको नमस्कार है || २३ ||
यमालये कालरुपा कुबेरभवने शुभा |
महानन्दाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि || २४ ||
हे देवि, आप यम के गृह में कालरुप, कुबेर के भवन में शुभदायिनी और अग्निकोण में महानन्दस्वरुपिणी हैं,
हे सुन्दरि, आप हम पर प्रसन्न हों || २४ ||
नैऋर्त्यां रक्तदन्ता त्वं वायव्यां मृगवाहिनी |
पाताले वैष्णवीरुपा प्रसन्ना भव सुन्दरि || २५ ||
हे देवि, आप नैऋर्त्य में रक्तदन्ता, वायव्य कोण में मृगवाहिनी और
पाताल में वैष्णवी रुप से विराजमान रहती हैं |
हे सुन्दरि, आप हम पर प्रसन्न हों || २५ ||
सुरसा त्वं मणिद्वीपे एशान्यां शूलधारिणी |
भद्रकाली च लंकायां
Tags:
Stotra