दिव्य वर्ष
१. तुलनीय तस्मात्पत्रैः फलैः पुष्पैस्तौयैरपि यजेच्छिवम् |
तदनन्तफलं प्रोक्तं भक्तिरेवात्र कारणम् ||
२. तुलनीय लिङ्गस्य लेपनं कुर्याद्दिव्यैर्गन्धैर्मनोरमैः |
वर्षकोटिशतं दिव्यं शिवलोके महीयते ||
३. पुराणों में दिव्य वर्ष की गणना की गई है |
इसके अनुसार मानव का १ मास = पितृ का १ दिन-रात |
मनुष्य का १ वर्ष = देवता का १ दिन-रात |
मनुष्य के ३ वर्ष = देवता का १ मास |
मनुष्य के ३६० वर्ष = देवता का १ दिव्य वर्ष |
४३२००० मानव वर्ष = १२०० दिव्य वर्ष = १ कलियुग |
८६४००० मानव वर्ष = २४०० दिव्य वर्ष = १ द्वापर |
१२९६००० मानव वर्ष = ३६०० दिव्य वर्ष = १ त्रेतायुग |
१७२८००० मानव वर्ष = ४८०० दिव्य वर्ष = १ कृत युग |
इन सबको मिलाकर योग ४३,२०,०००
मानव वर्ष = १२००० दिव्य वर्ष =
१ महायुग या चतुर्युग |
इस प्रकार एक चतुर्युगी में १२००० दिव्य वर्ष या ४३,२०,०००
मानव वर्ष होते हैं और इसी को महायुग कहा जाता है |
इसके अतिरिक्त उक्त प्रत्येक युग में संध्या,
मुखभाग और संध्यांश नाम से तीन तीन गणनाएँ की जाती है |
यह गणना इस प्रकार होती है,
जैसे कृतयुग में संध्या ४०० वर्ष,
मुखभाग ४००० तथा संध्यांश ४०० वर्ष का है |
त्रेतायुग में संध्या ३००,
मुखभाग ३००० तथा संध्यांश ३००,
द्वापर में संध्या २००,
मुखभाग २००० तथा संध्यांश २०० और कलिकाल मेंसंध्या १००,
मुखभाग १००० तथा संध्यांश १०० वर्ष माना जाता है |
पाश्चात्य विद्वान प्रो, ह्विटने का मत है कि
१२००० वर्षों को देववर्ष मानने की कल्पना मनु की नहीं है |
इसकी उत्पत्ति बहुत बाद में हुई |
१. सुशोभनम् इति पाठः तुलनीय संविज्य तालवृन्तेन लिङ्गं गन्धैः सुलेपितम् |
दशवर्षसहस्त्राणि शिवलोक महीयते ||
|| अस्तु ||