बीजमंत्रात्मक दुर्गासप्तशती पाठ | Bijmantratmak durgasaptshati path |

 

बीजमंत्रात्मक दुर्गासप्तशती पाठ 

बीजमंत्रात्मक दुर्गासप्तशती पाठ 



यह पाठ भी करने से पहले शापविमोचन मंत्र-उत्कीलन मंत्र,रात्रिसूक्तम आदि करे | 
नवार्णमन्त्र की एक माला करे | 
"ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे"
पश्चात पाठ की शुरुआत कर सकते है | 

शापोद्धार मंत्र 
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा | 

उत्कीलन मंत्र 
ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशतीचंडिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा | 

मृतसञ्जीवनी विद्यामन्त्र 
ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसञ्जीवनीविद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा |  
 
तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम 
ॐ ऐं ब्लूं नमः | ॐ ऐं ठां नमः | ॐ ऐं ह्रीं नमः | ॐ ऐं स्त्रां नमः | ॐ ऐं स्लूं नमः | 
ॐ ऐं कै नमः | ॐ ऐं त्रां नमः | ॐ ऐं फ्रां नमः | ॐ ऐं जीं नमः | ॐ ऐं लूं नमः | 
ॐ ऐं स्लूं नमः | ॐ ऐं नों नमः | ॐ ऐं स्त्रीं नमः | ॐ ऐं प्रूं नमः | ॐ ऐं स्त्रुं नमः | 
ॐ ऐं जां नमः | ॐ ऐं वौं नमः | ॐ ऐं ओं नमः | 

नवार्णमन्त्र विधि 
ॐ श्री गणपतिर्जयति | ॐ नवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्राऋषयः गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्दांसि श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्योदेवता ऐं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः | 

ऋष्यादिन्यासः 
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्योनमः शिरसि | 
गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्देभ्यो नमः मुखे | 
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदि | 
ऐं बीजाय नमः गुह्ये | 
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | 
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ | 

ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | 
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | 
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः | 
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः | 
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | 

ऐं हृदयाय नमः गुह्ये | 
ह्रीं शिरसे स्वाहा | 
क्लीं शिखायै वौषट | 
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् | 
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट | 


अक्षरन्यास 
ॐ ऐं नमः शिखायां | 
ॐ ह्रीं नमः दक्षिणनेत्रे | 
ॐ क्लीं नमः वामनेत्रे | 
ॐ चां नमः दक्षिणकर्णे | 
ॐ मुं नमः वामकर्णे | 
ॐ डां नमः दक्षिणनासापुटे | 
ॐ यैं नमः वाम नासापुटे | 
ॐ विं नमः मुखे 
ॐ च्चें नमः गुह्ये | 

व्यापक करे आठ बार | 
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे 

अङ्गन्यास 
ॐ ऐं प्राच्यै नमः | 
ॐ ऐं आग्नयै नमः | 
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः | 
ॐ ह्रीं नैऋत्यै नमः | 
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः |
 ॐ क्लीं वायव्यै नमः | 
ॐ चामुण्डयै उदीच्यै नमः | 
ॐ चामुण्डयै ऐशान्यै नमः | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै उर्ध्वायै नमः | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ||

ध्यानं 
ॐ खड्गं चक्रगदेषु चापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः 
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् | 
यामस्तौत्स्त्वपितै हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् 
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकाम् || 
अक्षस्त्रकपरशुंगदेषु कुलिशं पद्मंधनुष्कुण्डिकां 
दण्डं शक्तिमसिं च चर्मजलजं घण्टां सुराभाजनम् | 
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां 
सेवे सैरिभमर्दिनिमीह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् || 
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्ख मुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्य प्रभाम् | 
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा 
पूर्वामत्र सरस्वतीमनु भजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् || 

पश्चात माला को प्रार्थना करे | 

ॐ ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः | 
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणीम | 
चतुर्वर्गस्त्वयी न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदा भव || 
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थ साधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय में स्वाहा | 
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे | 
जपकाले च सिध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये || 
ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्रीत्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं | 
सिद्धिर्भवतु में देवी त्वत्प्रसादान्महेश्वरी || 


विनियोगः 
ॐ प्रथममध्यमउत्तम  चरित्राणां ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः |
  श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्योदेवताः | गायत्र्युष्णीगनुष्टुभ्छन्दांसि |
नन्दाशाकम्भरी भीमा: शक्तयः | रक्तदन्तिका दुर्गा 
भ्रामर्यो बीजानि 
 अग्निवायु सूर्यास्तत्वानि  | ऋग्यजुः सामवेदाध्यानानि | सकलकामना सिद्धये
 श्रीमहाकाली श्रीमहालक्ष्मी श्रीमहासरस्वती देवताः जपे विनियोगः | 


ऋष्यादिन्यासः - 
ब्राह्मविष्णुरुद्र ऋषिभ्यो नमः, मुखे |
 श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः, हृदि |
 ऐं ह्रीं क्लीं बिजेभ्यो नमः, गुह्ये | 
नन्दशाकम्भरी भीमा शक्तिभ्यो नमः, पादयोः |
 अग्निवायु सूर्य तत्त्वेभ्यो नमः, नाभौ |
 ऋग्यजुर्सामवेद ध्यानेभ्यो नमः, हृदि | 
सकलकामना सिद्धये श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांङ्गे | 

करन्यासः 
ॐ ऐं स्लूं  नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ ऐं  फ्रें  नमः तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ ऐं  क्रीं  नमः मध्यमाभ्यां नमः |. 
ॐ ऐं  म्लूं  नमः अनामिकाभ्यां नमः | 
 ॐ ऐं घ्रैं  नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः | 
 ॐ ऐं श्रूं  नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | 

  हृदयादिन्यासः 
ॐ ऐं स्लूं  नमः  हृदयाय नमः | 
ॐ ऐं  फ्रें  नमः शिरसे स्वाहा | 
ॐ ऐं  क्रीं  नमः शिखायै वौषट् | 
ॐ ऐं  म्लूं  नमः  कवचाय हुं |
ॐ ऐं घ्रैं  नमः  नेत्रत्रयाय वौषट् 
 ॐ ऐं श्रूं  नमः  अस्त्राय फट्| 

ॐ बीजत्रयायै विद्महे तत्प्रधानायै धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात || 

  || प्रथम चरित्र || 
                                             || प्रथमोऽध्यायः ||                                                               

विनियोगः 
ॐ अस्य श्रीप्रथमचरितस्य ब्रह्मा ऋषिः | गायत्रीच्छन्दः | 
श्रीमहाकाली र्देवताः | ऐं बीजं | नन्दा शक्तिः | अग्निः तत्त्वम् ऋग्वेदः ध्यानं | धर्मार्थे श्रीमहाकाली देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः | 

ऋष्यादिन्यासः 
 ब्रह्मा ऋषये नमः | शिरसि | गायत्रीछन्दसे नमः मुखे |  श्रीमहाकाली देवतायै नमः, हृदि | ऐं बीजाय नमः, गुह्ये | नन्दा शक्त्यै नमः, पादयोः | अग्नि तत्त्वाय नमः, नाभौ | ऋग्वेद ध्यानाय नमः, हृदि | धर्मार्थे श्रीमहाकाली प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांङ्गे | 

करन्यासः 
 ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः | ऐं तर्जनीभ्यां नमः | ऐं मध्यमाभ्यां नमः | ऐं अनामिकाभ्यां नमः | ऐं कनिष्ठिकाभ्यां नमः | ऐं करतलकरपृष्ठभ्यां नमः | 

हृदयादिन्यासः - ऐं हृदयाय नमः | ऐं शिरसे स्वाहा | ऐं शिखायै वषट् | ऐं कवचाय हुं | ऐं नेत्रत्रयाय वौषट् | ऐं अस्त्राय फट् | 

ध्यानम् -

खड्गं चक्रगदेषुचाप परिधाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः ,
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् | 
नीलाश्मद्युतिमास्य पददशकां सेवे महाकालिकाम्,
यामस्तौत् स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् || 

ॐ ऐं श्रीं १, ह्रीं २, क्लिं ३, श्रीं ४, प्रीं ५, ह्रां ६, ह्रीं ७, सौं ८, प्रें ९, म्रीं १०, ह्ल्रीं ११, म्लीं १२, स्त्रीं १३, क्रां १४, हस्लीं १५, क्रीं १७, चां १७, भें १८, क्रीं १९, वैं २०, ह्रौं २१, युं २२, जुं २३, हं २४, शं २५, रौं २६, यं २७, विं २८, वैं २९, चें ३०, ह्रीं ३१, क्रूं ३२, सं ३३, कं ३४, श्रां ३५, त्रों ३६, स्त्रां ३७, ज्यैं ३८, रौं ३९, द्रां ४०, द्रों ४१, ह्राँ ४२, द्रूं ४३, शां ४४, म्रीं ४५, श्रौं ४६, जुं ४७, ह.             ४८, श्रूं ४९, प्रीं ५०, रं ५१, वं ५२, व्रीं ५३, ब्लूं ५४, स्त्रौं ५५, ब्लां ५६, लूं ५७, सां ५८, रौं ५९, ह्सौं ६०, क्रूं ६१, शौं ६२, श्रौं ६३, वं ६४, त्रूं ६५, क्रौं ६६, क्लूं ६७, क्लीं ६८, श्रीं ६९, ब्लूं ७०, ठां ७१, ठ्रीं ७२, स्त्रां ७३, स्लूं ७४, क्रैं ७५, च्रां ७६, फ्रां ७७, ज्रीं ७८, लूं ७९, स्लूं ८०, नों ८१, स्त्रीं ८२, प्रूं ८३, स्त्र ूं ८४, ज्रां ८५, वौं ८६, ओं ८७, श्रौं ८८,  ऋं ८९, रुं ९०, क्लीं ९१, दुं ९२, ह्रीं ९३, गूं ९४, लां ९५,ह्रां ९६, गूं ९७, ऐं ९८, श्रौं ९९, जूं १००, डें १०१, श्रौं १०२, छ्रां१०३, क्लीं १०४, ऐं ॐ | ॐ नमश्चंण्डिकायै प्रथमः ॐ तत्सत् || 

                                                           
    || मध्यम चरित्र || 
                                            || द्वितीयोऽध्यायः ||                                           
विनियोगः - ॐ अस्य श्रीमध्यमचरितस्य विष्णु ऋषिः | उष्णक् छन्दः | श्रीमहालक्ष्मी र्देवता | ह्रीं बीजम् | शाकम्भरी शक्तिः | वायुः तत्त्वम् | यजुर्वेदः ध्यानं | अर्थप्राप्त्यै श्रीमहालक्ष्मी देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः | 

ऋष्यादिन्यासः - विष्णु ऋषये नमः, शिरसि | उष्णिक् छन्दसे नमः, मुखे | श्रीमहालक्ष्मी देवतायै नमः, हृदि | ह्रीं बीजाय नमः, गुह्ये | शाकम्भरी शत्त्कये नमः, पादयोः | वायु तत्त्वाय नमः, नाभौ | यजुर्वेद ध्यानाय नमः, हृदि | अर्थप्राप्त्यै श्रीमहालक्ष्मी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांङ्गे | 

करन्यासः - ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः | ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः | ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः | ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः | ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | 

हृदयादिन्यासः - ह्रां हृदयाय नमः | ह्रीं शिरसे स्वाहा | ह्रूं शिखायै वषट् | ह्रैं कवचाय हुं | ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् | ह्रः अस्त्राय फट् | 

ध्यानम् - 

अक्षस्त्रक्परशुं  गदेषुकुलिशं  पदम्  धनुष्कुुण्डिकाम्
दण्डं शक्त्तिमसिं  च  चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् | 
शूलं पाशसुदर्शने च  दधतीं हस्तैः  प्रसन्नाननां 
सेवे सैरभिमर्दिनीमिह  महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् || 

ॐ ह्रीं - श्रौं १, श्रीं २, हसूं 3, हौं ४, ह्रीं ५, अं ६, क्लीं ७, चां ८, मुं ९, डां १०, यैं ११, विं १२, च्चें १३, ईं १४, सौं १५, व्रां १६, त्रौं १७, लूं १८, वं १९, वं २०, ह्रां २१, क्रीं २२, सौं २३, यं २४, ऐं २५, मूं  २६, सः २७, हं २८, सों २९, शं ३०, हं ३१, ह्रौं ३२, म्लीं ३३, यूं ३४, त्रूं ३५, स्त्रीं ३६, आं ३७, प्रें ३८, शं ३९, ह्रां ४०, स्मूं ४१, ऊं ४२, गूं ४३, व्र्यूं ४४, ह्रं ४५, भैं ४६, ह्रां ४७, क्रूं ४८, मूं ४९, ल्ह्रीं ५०, श्रां ५१, द्रूं ४२, द्व्रूं ४३, ह्सौं ५४, क्रां ५५, स्हौं ५६, म्लूं ५७, श्रीं ५८, गैं ५९, क्रूं ६०, त्रीं ६१, कस्त्रीं ६२, कं ६३, फ्रों ६४, ह्रीं ६५, शां ६६, क्ष्म्रीं ६७, रों ६८, डुं ६९ |
ॐ नमश्चंण्डिकायै द्वितीयः ॐ तत्सत् || 

|| तृतीयोऽध्यायः ||

ध्यानम् - 

उद्यद्भानुसहस्त्र  कान्तिमरुणक्षौमां शिरो मालिकां,
रक्त्तलिप्त पयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम् | 
हस्ताब्जैर्दघतीं त्रिनेत्रविलसद् वक्त्रारविन्दश्रियम्,  
देवीं बद्ध हिमांशुरत्नमुकुटां  वन्देडरविन्द स्थिताम् ||
 
श्रौं १, क्लीं २, सां ३, त्रों ४, प्रूं ५, ग्लौं ६, क्रौं ७, व्रीं ८, स्लीं ९, ह्रीं १०, ह्रौं ११, श्रां १२, ग्रीं १३, क्रूं १४, क्रीं १५, यां १६, द्लूं १७, द्रूं १८, क्षं १९, ओं २०, क्रौं २१,                      २२, वां २३, श्रूं २४, ग्लूं २५, ल्रीं २६, प्रें २७, हूं २८, हौं २९, दें ३०, नूं ३१, आं ३२, फ्रां ३३, प्रीं ३४, दं ३५, फ्रीं ३६, ह्रीं ३७, गूं ३८, श्रौं ३९, सां ४०, श्रीं ४१, जुं ४२, हं ४३, सं ४४ |
 ॐ नमश्चंण्डिकायै तृतीयः ॐ तत्सत् || 

     || चतुर्थोऽध्यायः ||

ध्यानम् - 

कालाभ्राभ्रां  कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां,
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम् | 
सिंहस्कंधाधिरुढ़ां  त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं,
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदेशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः || 

श्रौं १, सौं २, दीं ३, प्रें ४, यां ५, रुं ६, भं ७, सूं ८,श्रां ९, औं १०, लूं ११, डूं १२, जूं १३, धूं १४, त्रें १५, ह्लीं १६, श्रीं १७, ईं १८, ह्रां १९, ह्लरुं २०, क्लूं २१, क्रां २२, ल्लूं २३, फ्रें २४, क्रीं २५, म्लूं २६, ध्रें २७, श्रौं २८, ह्रौं २९, व्रीं ३०, ह्रीं ३१, त्रौं ३२, हल्लौं ३३, गीं ३४, यूं ३५, ह्लीं ३६, ह्लूं ३७, श्रौं ३८, औं ३९, अं ४०, म्हौं ४१, प्रीं ४२, ह्रीं | ॐ नमश्चंण्डिकायै चतुर्थः ॐ तत्सत् || 


|| उत्तर चरित्र ||
|| पञ्चमोऽध्यायः ||

विनियोगः - ॐ अस्य श्रीउत्तमचरितस्य रूद्र ऋषिः | अनुष्टुप्छन्दः | श्रीमहासरस्वती र्देवता | क्लीं बीजं | भीमा शक्तिः | सूर्यः तत्त्वम् | सामवेदः ध्यानं | कामाप्त्यै श्रीमहासरस्वती देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः | 

ऋष्यादिन्यास : - रूद्र ऋषये नमः, शिरसि | अनुष्टुप्छन्दः | श्रीमहासरस्वती र्देवतायै नमः, हृदि | क्लीं बीजाय नमः, गुह्ये | भीमा शक्त्यै नमः, पादयोः | सूर्य तत्त्वाय नमः, नाभौ | सामवेद ध्यानाय नमः, हृदि | श्रीमहासरस्वती र्देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः, सर्वाङ्गे | 

करन्यास : - क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः | क्लीं तर्जनीभ्यां नमः | क्लूं मध्यमाभ्यां नमः | क्लैं कवचाय हुं | क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् | क्लः अस्त्राय फट् | 

ध्यानम् - 

घण्टाशूल हलानि शङ्ख मसले चक्रं धनुः सायकभ्,
हस्ताब्जैर्दधतीं धनान्तविलच्छीतांशु तुल्यप्रभाम् | 
गौरिदेह समुद्भवां त्रिनयनामाधारभूतां महा -
पूर्वामंत्र सरस्वतीमनु भजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम् || 

ॐ क्लीं श्रौं १, प्रीं २, ओं ३, ह्रीं ४, ल्रीं ५, त्रों ६, क्रीं ७, ह्सौं ८, ह्रीं ९, श्रीं १०, हूं ११, क्लीं १२, रौं १३, स्त्रीं १४, म्लीं १५, प्लूं १६, स्हौं १७, स्त्रीं १८, ग्लूं १९, व्रीं २०, सौं २१, लूं २२, ल्लूं २३, द्रां २४, क्सां २५, क्ष्म्रीं २६, ग्लौं २७, स्कं २८, त्रूं २९, स्क्लूं ३०, क्रौं ३१, च्छ्रीं ३२, म्लूं ३३, क्लूं ३४, शां ३५, ह्लीं ३६, स्त्रूं ३७, ल्लीं ३८, लीं ३९, सं ४०, लूं ४१, हसूं ४२, श्रूं ४३, जूं ४४,                             ४५, स्कीं ४६, क्लां ४७, श्रूं ४८, हं ४९, ह्लीं ५०, कस्त्रूं ५१, द्रौं ५२, क्लूं ५३, गां ५४, सं ५५, ल्स्त्रां ५६, फ्रिं ५७, स्लां ५८, ल्लूं ५९, फ्रें ६०, ओं ६१, स्म्लीं ६२, ह्रां ६३, ऊं ६४, ह्लूं ६५, हूं ६६, नं ६७, स्त्रां ६८, वं ६९, मं ७०, म्क्लीं ७१, शां ७२, लं ७३, भैं ७४, ल्लूं ७५, हौं ७६, ईं ७७, चें ७८, क्ल्रीं ७९, हल्रीं ८०, क्ष्म्ल्रीं ८१, पूं ८२, श्रौं ८३, ह्रौं ८४, म्रूं ८५, कस्त्रीं ८६, आं ८७, क्रूं ८८, त्रूं ८९, डूं ९०, जां ९१,                     ९२, फ्रौं ९३, क्रौं ९४, किं ९४, ग्लूं ९६, छक्लीं ९७, रं ९८, क्सैं ९९, स्हुं १००, श्रौं १०१, श्रीं १०२, ओं १०३, लूं १०४, ह्लूं १०५, ल्लूं १०६, स्क्रीं १०७, स्स्त्रौं १०८, स्म्रूं १०९, क्ष्म्क्लीं ११०, व्रीं १११, सीं ११२, भूं ११३, लां ११४, श्रौं ११५, स्हैं ११६, ह्रीं ११७, श्रीं ११८, फ्रें ११९, रुं १२०, च्छ्रं १२१, ह्लूं १२२, कं १२३, द्रें १२४, श्रीं १२५, सां १२६, ह्रीं १२७, ऐं १२८, स्कीं १२९, | 
ॐ नमश्चंण्डिकायै पंचमः ॐ तत्सत् ||   


   || षष्टमोऽध्यायः || 

ध्यानम् - 

नागाधीश्वर  विष्टरां फणिफणोत्तंसोरु रत्नावलीं,
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम् | 
मालाकुम्भकपाल निराजकरां चन्द्रार्धचूडां परां, 
सर्वज्ञेश्वर भैरवङ्क निलयां पद्मावतीं चिन्तये || 

श्रौं १, ओं २, त्रूं ३, ह्रौं ४, क्रौं ५, श्रौं ६, त्रीं ७, क्लीं ८, प्रीं ९, ह्रीं १०, ह्रौं ११, श्रौं १२, ऐं १३, ओं १४, श्रीं १५, क्रां १६, हूं १७, छ्रां १८,  क्ष्म्क्ल्रीं १९, ल्लुं २०, सौं २१, ह्लौं २२, क्रूं २३, सौं २४ | ॐ नमश्चंण्डिकायै षष्ठः  ॐ तत्सत् ||   

 
 || सप्तमोऽध्यायः ||

ध्यानम् 

ध्यायेयं रत्नपीठे शुककल पठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्गीं,
न्यस्तैकाड्न्ध्र सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम् | 
कह्लाराबद्धभालां नियमित विलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां,
मातङ्गी शङ्खं पात्रां मधुरमधुरमदां चित्रकोद्भासि भालाम् || 

श्रौं १, कुं २, ह्लीं ३, ह्रूं ४, मूं ५, त्रौं ६, ह्रौं ७, ओं ८, हसूं ९, क्लूं १०, क्रें ११, नें १२, लूं १३, हस्लीं १४, प्लूं १५, शां १६, स्लूं १७, प्लीं १८, प्रें १९, अं २०, औं २१, म्ल्रीं २२, श्रां २३, सौं २४, श्रौं २५, प्रीं २६,  हस्व्रीं २७ | ॐ नमश्चंण्डिकायै सप्तमः ॐ तत्सत् ||

|| अष्टमोऽध्यायः || 

ध्यानम् - 

अरुणां करुणां तरंगिताक्षीं धृतपाशांकुश - बाणचापहस्ताम् | 
अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्येव विभावये भवानीम् || 

श्रौं १, म्हल्रीं २, प्रूं ३, एं ४, क्रों ५, ईं ६, एं ७, ल्रीं ८, फ्रों ९, म्लूं १०, नों ११, हूं १२, क्रौं १३, ग्लौं १४, स्मौं १५, सौं १६, श्रीं १७, स्हौं १८, खसें १९, क्षम्लीं २०, ह्रौं २१, वीं २२, लूं २३, ल्सीं २४, ब्लीं २५, तस्त्रों २६, ब्रुं २७, शक्ली २८, श्रूं २९, ह्रीं ३०, शीं ३१, क्लीं ३२, क्लौं ३३, फ्रूं ३४, ह्रूं ३५, क्लूं ३६, तां ३७, म्लूं ३८, हं ३९, स्लूं ४०, औं ४१, ह्लौं ४२, श्र्लरीं ४३, यां ४४, क्ष्लीं ४५, ह्लीं ४६, ग्लौं ४७, ह्रौं ४८, प्रां ४९, क्रीं ५०, क्लीं ५१, न्स्लुं ५२, ह्रीं ५३, ह्लौं ५४, ह्रैं ५५, भ्रं ५६, सौं ५७, श्रीं ५८, प्सूं ५९, द्रौं ६०, स्स्त्रां ६१, हस्लीं ६२, स्ल्ल्रीं ६३ | 
 ॐ नमश्चंण्डिकायै अष्टमः ॐ तत्सत् ||



 || नवमोऽध्यायः || 

ध्यानम् - 

बन्धूक काञ्चननिभं रुचिराक्षमालां पाशांकुशौ च वरदां निजबाहुदण्डैंः | 
बिभ्राणामिन्दु शकलाभरणं त्रिनेत्रमर्धाम्बिकेशमनिशं वपुराश्रयामि || 

रौं १, क्लीं २, म्लौं ३, श्रौं ४, ग्लीं ५, ह्रौं ६, ह्सौं ७, ईं ८, ब्रूं ९, श्रां १०, लूं ११, आं १२, श्रीं १३, क्रौं १४, प्रूं १५, क्लीं १६, भूं १७, ह्रौं १८, क्रीं १९, म्लीं २०, ग्लौं २१, हसूं २२, प्लीं २३, ह्रौं २४, हस्त्रां २५, स्हौं २६, ल्लूं २७, क्स्लीं २८, श्रीं २९, स्तूं ३०, च्रें ३१, वीं ३२, क्ष्लूं ३३, श्लूं ३४, क्रूं ३५, क्रां ३६, ह्रौं ३७, क्रां ३८, स्क्ष्लीं ३९, म्रूं ४०, फ्रूं ४१ | ॐ नमश्चंण्डिकायै नवमः ॐ तत्सत् ||


  || दशमोऽध्यायः || 

ध्यानम् 

उत्तत्पहेमरुचिरां रविचन्द्रवह्रिनेत्रां धनुश्शरयुतांकुश पाशशूलम् | 
रम्यैर्भुजैश्च दधतीं शिवशक्तिरुपां कामेश्वरीं हृदि भजामि धृतेन्दु लेखाम् || 

श्रौं १, ह्रीं २, ब्लूं ३, ह्रीं ४, म्लूं ५, श्रौं ६, ह्रीं ७, ग्लौं ८, श्रौं ९, धूं १०, हूं ११, द्रौं १२, श्रीं १३, त्रूं १४, ब्रूं १५, फ्रें १६, ह्रां १७, जुं १८, सौंः १९, स्लूं २०, प्रें २१, हस्वां २२, प्रीं २३, फ्रां २४, क्रीं २५, श्रीं २६, क्रां २७, सः २८, क्लीं २९, व्रें ३०, इं ३१, ज्स्हल्रीं ३२  |
ॐ नमश्चंण्डिकायै दशमः ॐ तत्सत् ||

       || एकादशोऽध्यायः ||
           
 ध्यानम् - 

बलरविधुतिमिन्दु किरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्त्ताम् | 
स्मेरमुखीं वरदांडकुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् || 

श्रौं १, क्रूं २, श्रीं ३, ल्लीं ४, प्रें ५, सौंः ६, स्हौं ७, श्रूं ८, क्लीं ९, क्स्लीं १०, प्रीं ११, ग्लौं १२, हस्ह्रीं १३, स्तौं १४, लीं १५, म्लीं १६, स्तूं १७, ज्स्ह्रीं १८, फ्रूं १९, क्रूं २०, ह्रीं २१, ल्लूं २२, क्ष्म्रीं २३, श्रूं २४, इं २५, जुं २६, त्रैं २७, द्रूं २८, ह्रौं २९, क्लीं ३०, सूं ३१, हौं ३२, श्व्रं ३३, ब्रूं ३४, स्फ्रूं ३५, ह्रीं ३६, लं ३७, ह्सौं ३८, सें ३९, ह्रीं ४०, ह्रीं ४१, विं ४२, प्लीं ४३, क्ष्म्क्लीं ४४, त्स्त्रां ४५, प्रें ४६, म्लीं ४७, स्त्रूं ४८, क्षमां ४९, स्तूं ५०, स्ह्रीं ५१, थ्पीं ५२, क्रौं ५३, श्रां ५४, म्लीं ५ |  ॐ नमश्चंण्डिकायै एकादशः  ॐ तत्सत् ||    


    || द्वादशोऽध्यायः ||  

 ध्यानम् - 

विद्यु६ाम समप्रभां मृगपति स्कन्धस्थितां भीषणां,
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम् | 
हस्तैश्चक्रगदासि खेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्,
विभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गा त्रिनेत्रां भजे || 

ह्रीं १, ओं २, श्रीं ३, ईं ४, क्लीं ५, क्रूं ६, श्रूं ७, प्रां ८, क्रूं ९, दिं १०, फ्रें ११, हं १२, सः १३, चें १४, सूं १५, प्रीं १६, ब्लूं १७, आं १८, औं १९, ह्रीं २०, क्रीं २१, द्रां २२, श्रीं २३, स्लीं २४, स्लूं २६, ह्रीं २७, ब्लीं २८, त्रों २९, ओं ३०, श्रौं ३१, ऐं ३२, प्रें ३३, द्रूं ३४, क्लूं ३५, औं ३६, सूं ३७, चें ३८, ह्रूं ३९, प्लीं ४०, क्षां ४१ | ॐ नमश्चंण्डिकायै द्वादशः ॐ तत्सत् ||    

   
     || त्रयोदशोऽध्यायः ||  

 ध्यानम् - 

बालार्क - मंडलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम् | 
पाशांकुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे || 

श्रौं १, व्रीं २, औं ३, औं ४, ह्रां ५, श्रीं ६, श्रां ७, ओं ८, प्लीं ९, सौं १० ह्रीं ११, क्रीं १२, ल्लूं १३, क्लीं १४, ह्रीं १५, पलीं १६, श्रीं १७, ल्लीं १८, श्रूं १९, ह्रीं २०, त्रूं २१, ह्रूं २२, ह्रां २३, प्रीं २४, ऊं २५, सूं २६, ह्लौं २७, षौं  २८, आं २९, ॐ ३०, क्लीं , ॐ  | 
ॐ नमश्चंण्डिकायै त्रयोदशः ॐ तत्सत् ||      
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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