श्री विष्णुधर्मोत्तरपुराणे श्री नारायण दिग्बन्धन स्तोत्र
नारायण दिग्बन्धन स्तोत्र |
पूर्वे नारायणः पातु वारिजाक्षस्तु दक्षिणे |
प्रद्युम्नः पश्चिमे पातु वासुदेवः तथोत्तरे || १ ||
ऐशान्यां रक्षताद्विष्णुः आग्नेय्यां च जनार्दनः |
नैऋत्यां पद्मनाभस्तु वायव्यां मधुसूदनः || २ ||
ऊर्ध्वं गोवर्धनोद्धर्ता: अधरायां त्रिविक्रमः |
एताभ्यो दशदिग्भ्यश्च सर्वतः पातु केशवः || ३ ||
एवं कृत्वा तु दिग्बंधं विष्णुं सर्वत्र संस्मरेत् |
अव्यग्रचित्तः कुर्वीत न्यासकर्मं यथाविधि || ४ ||
|| इति श्री विष्णुधर्मोत्तरपुराणे श्री नारायण दिग्बन्धनं स्तोत्र सम्पूर्णम ||
|| विधान ||
भगवान नारायण के नाम मन्त्रों से सम्बन्द यह श्री नारायण दिग्बन्धन स्तोत्र है,
नित्य उपासना में इस दिग्बन्धन स्तोत्र से दशों
दिशाओं का बंधन करके ही साधना उपासना आरम्भ करनी चाहिए |
पिले सरसौ या हाथ में अक्षत लेकर उपरोक्त श्लोक बोलकर
पूजा से पहले दिग्बन्धन करे |
|| श्री विष्णुधर्मोत्तरपुराणे श्री नारायण दिग्बन्धन स्तोत्र ||
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