शम्भुस्तुति
श्री राम उवाच
नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् |
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि || १ ||
श्री राम बोले ! मैं पुराणपुरुष शम्भुको नमस्कार करता हूँ |
जिनकी असीम सत्ताका कहीं पार या अन्त नहीं है,
उन सर्वज्ञ शिवको मैं प्रणाम करता हूँ |
अविनाशी प्रभु रुद्रको नमस्कार करता हूँ |
सबका संहार करनेवाले शर्वको मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ || १ ||
नमामि देवं परमव्ययं तमुमापतिं लोकगुरुं नमामि |
नमामि दारिद्र्यविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि || २ ||
अविनाशी परमदेवको नमस्कार करता हूँ |
लोकगुरु उमापतिको प्रणाम करता हूँ |
दरिद्रताको विदीर्ण करनेवाले को नमस्कार करता हूँ |
रोगोंका विनाश करनेवाले महेश्वरको प्रणाम करता हूँ || २ ||
नमामि कल्याणमचिन्त्यरुपं नमामि विश्वोद्भवबीजरूपम् |
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि || ३ ||
जिनका रुप चिन्तनका विषय नहीं है,
उन कल्याणमय शिवको नमस्कार करता हूँ |
विश्वकी उत्पत्तिके बीजरुप भगवान् भवको प्रणाम करता हूँ |
जगत् का पालन करनेवाले परमात्माको नमस्कार करता हूँ || ३ ||
नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम् |
नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि || ४ ||
पार्वतीजीके प्रियतम अविनाशी प्रभुको नमस्कार करता हूँ |
नित्य क्षर अक्षरस्वरुप शङ्करको प्रणाम करता हूँ स्वरुप चिन्मय है और अप्रमेय है,
उन भगवान् त्रिलोचनको मैं मस्तक झुकाकर बारम्बार नमस्कार करता हूँ || ४ ||
नमामि कारुण्यकरं भवस्व(भवस्य)भयंकरं वाऽपि सदा नमामि |
नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ || ५ ||
करुणा करनेवाले भगवान् शिवको प्रणाम करता हूँ तथा
संसारको भय देनेवाले भगवान् भूतनाथको सर्वदा नमस्कार करता हूँ |
मनोवाञ्छित फलोंके दाता महेश्वरको प्रणाम करता हूँ || ५ ||
नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् |
नमामि पुण्यं सदसद्व्यतीतं नमामि तं पापहारं(हरं) नमामि || ६ ||
तीनों वेद जिनके तीन नेत्र हैं, उन त्रिलोचनको प्रणाम करता हूँ |
त्रिविध मूर्तिसे रहित सदाशिवको नमस्कार करता हूँ |
पुण्यमय शिवको प्रणाम करता हूँ |
सत् असत् से पृथक् परमात्माको नमस्कार करता हूँ |
पापोंको नष्ट करनेवाले भगवान् हरको प्रणाम करता हूँ || ६ ||
नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रुपाणि बहूनि धत्ते |
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि || ७ ||
जो विश्वके हितमें लगे रहते हैं, बहुत से रुप धारण करते हैं,
उन भगवान् शङ्करको मैं प्रणाम करता हूँ |
जो संसारके रक्षक तथा सत् और असत् के निर्माता हैं,
विश्वपति को मैं नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ || ७ ||
यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः |
आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् || ८ ||
हव्य काव्यस्वरुप यज्ञेश्वरको नमस्कार करता हूँ |
सम्पूर्ण लोकोंको सर्वदा कल्याण करनेवाले जो भगवान् शिव
आराधना करनेपर उत्तम गति एवं सम्पूर्ण अभीष्ट
वस्तुएँ प्रदान करते हैं, उन दानप्रिय इष्टदेवको मैं नमस्कार करता हूँ || ८ ||
नमामि सोमेश्वरमस्वतन्त्रमुमापतिं तं विजयं नमामि |
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि || ९ ||
भगवान् सोमनाथको प्रणाम करता हूँ |
जो स्वतन्त्र न रहकर भक्तोंके वश रहते हैं,
उन विजयशील उमानाथको मैं नमस्कार करता हूँ |
विघ्नराज गणेश तथा नन्दीके स्वामी पुत्रप्रिय भगवान् शिवको मैं
मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ || ९ ||
नमामि देवं भवदुःखशोकविनाशनं चन्द्रधरं नमामि |
नमामि गङ्गाधरमीशमीड्यमुमाधवं देववरं नमामि || १० ||
संसारके दुःख और शोकको नाश करनेवाले देवता भगवान् चन्द्रशेखरको मैं
बारम्बार नमस्कार करता हूँ |
जो स्तुति करनेयोग्य और मस्तकपर गङ्गाजीको धारण करनेवाले हैं,
उन महेश्वरको नमस्कार करता हूँ |
देवताओंमें श्रेष्ठ उमापतिको प्रणाम करता हूँ || १० ||
नमाम्यजादीशपुरन्दरादिसुरासुरैरर्चितपादपद्मम् |
नमामि देवीमुखवादनानामीक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् || ११ ||
ब्रह्मा आदि ईश्वर, इन्द्र आदि देवता तथा असुर भी
जिसके चरणकमलोंकी पूजा करते हैं,
उन भगवान्को मैं नमस्कार करता हूँ |
जिन्होंने पार्वतीदेवीके मुखसे निकलनेवाले वचनोंपर दृष्टिपात करनेकी इच्छासे मनो तीन नेत्र धारण कर रखे हैं,
भगवान् को प्रणाम करता हूँ || ११ ||
पञ्चामृतैर्गन्धसुधूपदीपैर्विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः |
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि || १२ ||
पञ्चामृत, चन्दन, उत्तम धूप, दीप, भाँति भाँतिके विचित्र पुष्प, मन्त्र तथा अन्न आदि समस्त उपचारोंसे पूजित भगवान्सोमको मैं करता हूँ || १२ ||
|| इति श्री ब्रह्मपुराणे शम्भुस्तुतिः सम्पूर्णा ||
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