कार्तिक मासमे स्नान का महत्व
कार्तिक मासमे स्नान का महत्व |
कार्तिक माह में कैसे करे स्नान ?
सिर्फ एक अर्घ्य राधा कृष्ण को दे
ॐ नमः कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने |
नमोस्तेस्तु हृषिकेश गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते ||
तत्र स्नानादिमन्त्राः |
स्नानमन्त्रश्व तत्रैव
कार्तिकेऽहं करिष्यामि प्रातःस्नानं जनार्दन |
प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह |
इमं मन्त्रं समुच्चार्य मौनी स्नायाद्वती नरः ||
इति
अर्ध्यमन्त्रोपि तत्रैव
व्रतिनः कार्तिके मासि स्नातस्य विधिवन्मम |
गृहाणार्ध्ये मया दत्तं दनुजेन्द्र निषूदन ||
नित्यनैमित्तिके कृष्ण कार्तिके पापनाशने |
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे ||
इमौ मन्त्रौ समुच्चार्य योऽर्घ्यं मह्यं प्रयच्छति |
सुवर्णरत्न पुष्पांबुपूर्णशंखेन पुण्यवान् ||
सुवर्णपूर्णा पृथिवी तेन दत्ता न संशयः ||
सम्पूर्ण कार्तिकमें नित्य स्नान,
हविष्यभोजन,
जप करना चाहिये और जितेन्द्रिय
और शान्त रहै तो उसके सब पाप दूर होजाते हैं ||
इसमें देशविदेशमें पद्मपुराणमें कार्तिकीके प्रकरणमें यह लिखा है कि
हे भार्गव कुरुक्षेत्र और गंगामें करोड गुना,
पुष्कर और द्वारकमें उससे अधिक पुण्य नहीं मिलता है,
ये सात पुरी पवित्र हैं हे मुनियो इसमें मथुरा विशेष है
मनुष्योंको इस लोकमें मथुरामें कार्त्तिकरनान दुर्लभ है
जहां पूजित हुए कृष्ण भक्तोंको अपना रूप देते हैं,
यह स्नान काशीकी पञ्चगंगामें भी अति उत्तम है,
कारण कि, काशीखण्डमें यह लिखा है कि,
जो फल सौ वर्षतक तप करके सतयुगमें मिलता है
वह कार्तिकमें पञ्चगंगाके एक बार स्नानसे प्राप्त होता है |
|| अस्तु ||
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