श्रीवीरभद्र कवच | Veerbhadra Kavacham |

                                                         

  श्री वीरभद्र कवच 

 

 श्री वीरभद्र कवच 


                              ॐ अस्यश्री वीरभद्र कवच महामंत्रस्य पशुपति ऋषि:

                        अनुष्टुप् छंदः, श्री भद्रकाळी समेत वीरभद्रो देवता, 

                        ह्रां बीजं ह्रीं शक्ति: क्लीं किलकं, श्रीभद्रकाळी समेत

                        वीर भद्रेश्वर प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ||  

ध्यान्

रुद्र रौद्रावतारं हुतवहुनयन  चोर्ध्वकेशं सुदंष्ट्रं व्योमांगं भीमरुपं किणिकिणिरमसज्वालमाला वृतांगम् | 

भूत प्रेताधिनाथं करकमलयुगे खड्गपात्रे वहंतं वंदे लोकैकवीरं त्रिभुवनविनुतं श्यामलं वीरभद्रम् || 


ॐ ललाटं वीरभद्रों व्या - च्चक्षुषी चोर्ब्वकेशबृत् | 

भ्रूमध्यं भूतनाथोव्या - न्नासिकां विरविग्रहः || 


कपाली कर्णयुगळं - कंधरं नीलकंधरः | 

वदनं भद्रकाळीशो - चुबुकं चंद्रखंडमृत् || 


करौ पाशकरः पातु - बाहू पातु महेश्वरः | 

ऊरुस्थलं चोग्रदंष्ट्र - आनंदात्मा हृदंबुजम् || 


रुद्रमूर्ति र्नाभिमध्यं - कटिं मे पातु शुलमृत् | 

मूर्धानं पंचमूर्धा व्या - न्निटलं निर्मलेंदुमृत् || 


कपोलयुग्मं कापाली - जिह्वां मे जीवनायकं | 

स्वसद्वयं पशुपति - लिँगं मे लिंगरूपधृत् || 


सर्वांगुलीः सर्वनाथो - नखन्मे नागभूषणः | 

पार्श्व युग्मं शक्तिहस्तो - सर्वांगं देववल्लभः || 


सर्वकार्येषु मांः पायात् - भद्रकाळीमनोहरः | 

ब्रह्मराक्षस पैशाच - भेताळ रण भूमिषु || 


सर्वेश्वरः सदापातु - सर्वदेवमदापहः | 

शीतोष्णयो श्चांधकारे - निम्नोन्नतमुविस्थले || 


कंटकेप्वपि दुर्गेषु - पर्वते पि च दुर्गमे | 

शस्त्रास्त्रमुख भल्लूक - व्याध्रचोरभयेषु च || 


राजाद्युपद्रवेचैव पायाच्छरभरूपधृत् | 

य एत द्वीरभद्रस्य कवचं पठतेन्नरः |

सोडपम्बत्युभयं मुक्त्वा - सुखं प्राप्नोतिनिश्चयम् || 


मोक्षार्थी मोक्ष माप्नोति - धनार्थि लभते धनं | 

 विद्यार्थी लभते विद्यां - जयार्थि जय माप्नुयात् ||  


देहांते शिवसायुज्य - मवाप्नोति न संशयं | 

एतत्कवच मीशानि - न चेयं देयं यस्य कस्य चित् ||


सुकुलीनाय शांताय शिवभक्ती रताय च | 

शिष्याय गुरुभक्ताय - दातव्यं परमेश्वरी || 


तवसस्नेहा नम्या प्रोक्त - मेत त्ते कवचं महत् | 

गोपनीयं प्रयत्नेन - त्वयैवं कुलसुंदरी || 

 

|| इति आकाशभैरवकल्फे श्री वीरभद्र कवचं नाम चत्पारिंशत् पटलः ||  

                                           

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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