अथ श्रीचक्रदर्शनफलम्
अथ श्रीचक्रदर्शनफलम |
सम्यक् शतक्रतुन् कृत्वा यत्फलं समवाप्नुयात् |
तत्फलं लभते भक्त्या कृत्वा श्रीचक्रदर्शम् ||
षोड़शं वा महादानं कृत्वा यल्लभते फलम् |
तत्फलं समवाप्नोति कृत्वा श्रीचक्रदर्शम् ||
सार्द्धत्रिकोटितीर्थेषु स्नात्वा यल्लभते फलम् |
तत्फलं लभते भक्त्या कृत्वा श्रीचक्रदर्शम् ||
श्रीयन्त्र के दर्शन का फल
विधिवत् एक सौ यज्ञ करने पर जो फल होता है,
वह श्रीयन्त्र के एक बार दर्शन करने से मिलता है |
सोलह महादानों को करने से जो फल होता है,
पुण्य मिलता है, वह श्रीचक्र के केवल एक बार के दर्शन से मिलता है |
साढ़े तीन करोड़ तीर्थों में स्नान करने से जो फल होता है,
यह व्यवस्था सभी यन्त्रों के बारे में समझना चाहिये |
|| अस्तु ||
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