राहुकाले दुर्गापूजा विद्यानम्
राहु काल की कथा
राहु काल क्या होता है ?
राहु काल का समय क्या है ?
राहु काल में क्या शुभ कार्य कर सकते है ?
राहु काल की गणना कैसे की जाती है ?
सप्ताह के सात दिनों में राहुकाल कब होता है ?
राहु काल में किस देवी या देवता की उपासना कर सकते है ?
राहुकाल की दक्षिण भारत में विशेष मान्यता हैं | राहुकाल में आसुरी शक्तियों का उदय होता हैं अतः अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं | आसुरी शक्तियों के दमन हेतु व्यक्ति को जप पाठ एवं स्वाध्याय करना चाहिये | राहुकाल में दुर्गा उपासना श्रेष्ठ फलदायिनी हैं | राहु का शिर एवं केतु का धड़ अलग अलग है अतः प्रचण्ड चण्डिका याने छिन्नमस्ता इस काल की विशेष अधिष्ठात्री देवी हैं | इसकी उपासना बिना दीक्षा के नहीं हो सकती समर्थसाधना ही कर सकते हैं | अतः नवार्णमंत्र जप एवं दुर्गा सप्तशती स्तोत्र पाठ सर्व सुगम उपासना हैं | समर्थ साधक नवदुर्गा, शूलिनी जातवेदा, शांति, शबरी, ज्वालदुर्गा, लवणदुर्गा, आसुरीदुर्गा एवं दीपदुर्गा की उपासना करते हैं |
|| || राहुकाल समय निर्यण ||
राहुकाल की मान्यता दिन में ही हैं रात्रि में ही हैं |
अतः दिनमान के आठ भाग कीजिये उन आठ चौघड़ियों की गणना इस प्रकार करे |
रविवार को ८ वां ( ४.३० से ६ बजे )
सोम को २ ( ७.३० से ९ बजे )
मंगल को ७ वां (३ से ४.३० तक )
बुध को ५ वां ( १२ से १.३० तक )
गुरु को ६ ( १.३० से ३ तक )
शुक्र को ४ ( १०.३० से १२ बजे )
शनि को ३ ( ९ से १०.३० तक )
चौघड़िया राहुकाल का होता हैं |
यह समय ३ बजे सूर्योदय व ६ बजे सूर्यास्त के हिसाब से लिखा हैं | दिन छोटे बड़े होते रहते हैं अतः सूक्ष्मगणना पूरे दिनमान के अनुसार करे |
|| साधना विधि ||
दुर्गापाठ रविवार को राहुकाल में प्रारम्भ कर सोम को प्रातः समाप्त किया जाता है | नवार्ण जप आदि अंत में अवश्य करे | जो व्यक्ति नित्यपाठ नहीं कर सकते है वे प्रथम दिन ( रविवार ) को संकल्प कर शापोद्धार आदि कर कवच, अर्गला, किलक का पाठ करें | नवार्ण जप कर दुर्गासप्तशती को प्रथमाध्याय के श्लोक '' सर्वमापोमयं जगत '' तक पाठ करे | दूसरे दिन ( सोमवार ) को प्रथम अध्याय के शेष श्लोक व द्वितीय तृतीय अध्याय के श्लोक '' तद् वधाय तदाडरोत् '' तक पाठ करे | तृतीया दिन तृतीय अध्याय के शेष श्लोक, चतुर्थ अध्याय तथा पांचवे अध्याय के श्लोक या देवि सर्वभूतेषु जातिरुपेण ...... पूरा श्लोक पढे | चतुर्थदिन पांचवे अध्याय के शेष श्लोक तथा छठे अध्याय में श्लोक चकराम्बिका ततः तक पाठ करे | पंचम् दिन छठे अध्याय के शेष श्लोक, सप्तम् अध्याय तथा अष्टम् अध्याय का श्लोक ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रि त्रिदशाः नृप तक पाठ करे | षष्ठ अष्टम् अध्याय का शेष श्लोक नवम दशम तथा एकादश अध्याय के श्लोक ज्वालाकराग्र....... तक पाठ करे | सप्तम दिन सप्तशती के शेष पाठकर रहस्यादि करे | इनके अलावा नित्य कवच अर्गला कीलक तथा नवार्ण मंत्र जप १०८ आदि अंत में करना हितकर रहेगा |
|| राहु काल निर्णय समाप्त ||