गङ्गा कवच
गङ्गा कवच |
माँ गङ्गा जिसका स्मरण करने से जन्मो जन्म के पाप भस्म हो जाते है | पितर प्रसन्न होते है |
ऐसा यह विष्णुयामल का उत्तम कवच | जो शिव पार्वती संवाद से उत्पन्न हुआ है |
इसमें लिखा हुआ है की चौदह पितरो का उद्धार होता है इसके पाठ से |
इसमें लिखा हुआ है की चौदह पितरो का उद्धार होता है इसके पाठ से |
इसका माहात्म्य कहता है यदि कोई इस कवच को सुनता है तो रोगी सभी रोगो से मुक्त हो जाता है |
कोई यदि किसी बंधन में हो तो वो बंधनमुक्त हो जाता है | गर्भिणी स्त्री इसे सुने तो श्रेष्ठ संतान को प्राप्त करती है |
वन्ध्या स्त्री पुत्रवती होती है | गङ्गा के इस कवच को सुनने मात्र से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है |
जो घर पर बैठकर इसका पाठ करता है वह गङ्गा स्नान का फल प्राप्त करता है | स्नान करते समय जो इसका पाठ करता है वह सौ करोड़ गुना फल प्राप्त करता है |
जो नियम पूरक इसका पाठ करता है वह कोटि कुलो का उद्धार करता है |
इसमें कोई संदेह ना रखे |
|| श्री गङ्गा कवच ||
विनियोगः
ॐ गङ्गायै नमः | गङ्गाकवचस्य विष्णुरृषिर्विराटछन्दः
चतुर्दश पुरुष उद्धारण अर्थे पाठे विनियोगः |
ॐ द्रव्यरूपा महाभागा स्नाने च तर्पणेऽपि च |
अभिषेके पूजने च पातु मां शुक्लरुपिणी || १ ||
विष्णुपादप्रसूतासि वैष्णवी नामधारिणी |
पाहि मां सर्वतो रक्षेद्गंगा त्रिपथगामिनी || २ ||
मन्दाकिनी सदा पातु देहान्ते स्वर्गवल्लभा |
अलकनन्दा च वामभागे पृथिव्यां या तु तिष्ठति || ३ ||
भोगवती च पाताले स्वर्गे मन्दाकिनी तथा |
पञ्चाक्षरमिमं मन्त्रं यः पठेच्छृणुयादपि || ४ ||
रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बंधनात् |
गुर्विणी जनयेत् पुत्रं वन्ध्या पुत्रवती भवेत्. || ५ ||
गङ्गास्मरणमात्रेण निष्पापो जायते नरः |
यः पठेद गृहमध्ये तु गङ्गास्नानफलं लभेत् || ६ ||
स्नानकाले पठेद्यस्तु शतकोटिफलं लभेत् |
यः पठेत्प्रयतो भक्त्या मुक्तः कोटिकुलैः सह || ७ ||
|| इति श्रीविष्णुयामले शिवपार्वती सम्वादे गँगाकवचं सम्पूर्णं ||
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