सप्तमुखी हनुमान कवच
सप्तमुखी हनुमान कवच |
यह अथर्वण रहस्य में से लिया हुआ कवच है |
इसका प्रतिदिन तीनो संध्यो में पाठ करने से साधक सभी कार्य सिद्ध कर लेता है |
पारिवारिक सुख प्राप्त कर लेता है | असाध्य रोगो का विनाश हो जाता है |
शत्रुओ का हनन हो जाता है | कार्य सिद्ध हो जाते है |
ॐ अस्य श्री सप्तमुखी वीर हनुमत्कवच स्तोत्रमन्त्रस्य नारदऋषिः अनुष्टुपछन्दः श्रीसप्तमुखी कपिः परमात्मा देवता,
ह्रां बीजं ह्रीं शक्तिः ह्रूं कीलकं मम सर्वाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोगः |
करन्यास :
ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः |
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः |
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः |
हृदयादिन्यास :
ॐ ह्रां हृदयाय नमः |
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा |
ॐ ह्रूं शिखायै वौषट |
ॐ ह्रैं कवचाय हुम् |
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट |
ॐ ह्रः अस्त्राय फट |
अथ सप्तमुखी ध्यान
वन्दे वानर सिंह सर्प रिपु वाराह अश्व गो मानुषैर्युक्तं सप्तमुखैः करैर्दुम गिरिम चक्रम गदा खेटकम |
खट्वाङ्गं हलमङ्कुशं फणि सुधा कुम्भौ शराब्जा भयाँछूलम सप्तशिखं दधानममरैः सेव्य कपिं कामदं ||
ब्रह्मोवाच
सप्तशीर्ष्ण प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदं |
जप्त्वा हनुमतो नित्यं सर्व पापैः प्रमुच्यते ||
सप्तस्वर्ग पतिःपायांच्छिखां में मारूतात्मजः |
सप्तमूर्धा शिरोऽव्यान्मे सप्तार्चिमलि देशकम् ||
त्रिः सप्तनेत्रो नेत्रेऽव्यात्सप्त स्वर गतिः श्रुति |
नासां सप्तपदार्थोव्यान्मुखः सप्तमुखोऽवतु ||
सप्तजिह्वस्तु रसनांरदान्सप्त हयोऽवतु |
सप्तच्छन्दो हरिः पातु कण्ठं बाहु गिरी स्थितः ||
करौ चतुर्दशकरो भूधरोऽव्यान्मभांगुलीः |
सप्तर्षि ध्यातो ह्रदय मुदरं कुक्षि सागरः ||
सप्तद्वीप पतिश्चित्तं सप्त व्याहृति रूपवान् |
कटिं में सप्त संस्थार्थ दायकः सक्थिनी मम् ||
सप्तग्रह स्वरूपी में जानुनी जंघ्ययोस्तथा |
सप्तधान्य प्रियः पादौ सप्त पाताल धारकः ||
पशुन्धनं च धान्यं च लक्ष्मीं लक्ष्मी प्रदोऽवतु |
दारान् पुत्रांश्च कन्याश्च कुटुम्ब विश्व पालकः ||
अनुक्त स्थानमपि में पायाद्वायु सुतः सदा |
चौटेभ्यो ब्याल दंष्ट्रिभ्याः शृङ्गिभ्यो भूत राक्षसात् ||
दैत्यभ्योऽप्यथ यक्षेभ्यो ब्रह्मराक्षस जादभ्यात |
दंष्ट्रा कराल वदनो हनुमान्मां सदाऽवतु ||
पर शस्त्र मन्त्र तन्त्र यंत्राग्नि जलविद्युतछ |
रुद्रांशः शत्रु संग्रामात्सर्वा वस्थासु सर्वभूत् ||
ॐ नमो भगवते सप्तवदनाये आद्य कपिमुखाय वीरहनुमते सर्वशत्रु संहारणाय
ठं ठं ठं ठं ठं ठं ठं ॐ नमः स्वाहा |
ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय द्वितीय नार सिंहास्याय अत्युग्रते तेजोवयुषे भीषणाय भय नाशनाय
हं हं हं हं हं हं हं ॐ नमः स्वाहा |
ॐ नमो भगवते सप्तः वदनाय तृतीय गरुड़ वक्राय वज्रदंष्ट्राय महाबलाय सर्वरोग विनाशनाय
मं मं मं मं मं मं मं ॐ नमः स्वाहा |
ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय चतुर्थ क्रोड तुण्याय सौमित्रि रक्षकाय पुत्राद्यभिवृद्धि कराय
लं लं लं लं लं लं लं ॐ नमः स्वाहा |
ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय पञ्चमाश्रवदनाय रुद्रमूर्त्तये सर्व वशीकरणाय सर्व निगम स्वरूपाय
रुं रुं रुं रुं रुं रुं रुं ॐ नमः स्वाहा |
ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय षष्ठगो मुखाय सूर्य स्वरूपाय सर्व रोग हराय मुक्ति दात्रे
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमः स्वाहा |
ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय सप्तं मानुष मुखाय रुद्रावताराय अञ्जनी सुताय सकल दिग्यशो विस्तार कार्य
वज्रदेहाय सुग्रीवसाह्य कराय उदधि लंघनाय सीता
शुद्धि शुद्धि शुद्धि शुद्धि शुद्धि शुद्धि शुद्धि
कराय कराय कराय कराय कराय कराय कराय
लङ्का दहनाय अनेक अनेक अनेक अनेक अनेक अनेक अनेक
राक्षसान्तकाय रामानंद रामानंद रामानंद रामानंद रामानंद रामानंद रामानंद
दायकाय अनेक पर्वतोत्पाटकाय सेतु बन्धकाय कपिसैन्य नायकाय रावणांतकाय ब्रह्मचर्याश्रभिणे
कौपीन ब्रह्मसूत्र धारकाय राम हृदयाय सर्व दुष्ट ग्रह निवारणाय शाकिनी डाकिनी बेताल ब्रह्मराक्षस भैरव ग्रह
यक्षग्रह पिशाचग्रह ब्रह्मग्रह क्षत्रियग्रह वैश्यग्रह शूद्र ग्रहान्त्यजग्रम्लेच्छग्रह सर्प ग्रहोच्चाटकाय मम सर्व कार्य साधकाय
सर्व शत्रु संहारकाय सिंह व्याघ्रादि दुष्ट सत्वाकर्षकायै काहिकादि विविध ज्वरच्छेदकाय पर यन्त्र मन्त्र तन्त्र नाशकाय
सर्व व्याधि निकृन्तकाय सर्पादि सर्व स्थावर जंगम विष स्तम्भन कराय सर्व राजभय चौर भयाग्नि भय प्रशामनाया याध्यात्मिकाधि दैविकाधि भौतिक ताप जय निवारणाय सर्वविद्या संपत्सर्व पुरुषार्थ दायकायासाध्य कार्य साधकाय
सर्व वर प्रदाय सर्वाभीष्ट कराय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः नमः स्वाहा |
|| फलश्रुतिः ||
य इदं कवचं नित्यं सप्तास्यस्य हनुमतः |
त्रिसन्ध्यं जपते नित्यं सर्व शत्रु विनाशनम् ||
पुत्र पौत्र प्रदं सर्वं सम्पद्राज्यं प्रदं परम् |
सर्व रोग हरं चायु कीर्तिदं पुण्यवर्द्धनम् ||
राजानं स वंश नीत्वा त्रैलोक्य विजयी भवेत् |
इदं हि परमं गोप्यं देयं भक्ति युताय च ||
न देयं भक्ति हीनाय दत्वा स निरयं व्रजेत् ||
नामानि सर्वाव्यप वर्गा दानिरुपाणिविश्वानि च यस्य सन्ति |
कर्माणि देवैरपि दुर्घटानि तं मारुतिं सप्तमुखं प्रपद्ये ||
|| सप्तमुखी हनुमान कवच ||
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