रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई ?
रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई ? |
रुद्राक्ष उत्पत्ति के विषय में कई सारी कथाये मिलती है किन्तु मुख्या रूप से तीन कथाओ का वर्णन प्राप्त होता है |
एक कथा के अनुसार षडानन ( षण्मुख ) यानी कार्तिकजी शिवजी से रुद्राक्ष के विषय में पूछते है |
और अन्य कथा के अनुसार नारदमुनि भगवान् श्रीनारायण से रुद्राक्ष का माहात्म्य पूछते है और नारायण उत्तर देते है |
श्री नारद उवाच
एवं भूतानुभावोयं रुद्राक्षों भवतानघ |
वर्णितो महतां पूज्य कारणं तत्र किं वद ||
नारदजी ने कहा हे नारायण ( अनघ )
जब रुद्राक्ष का इतना महान महत्त्व है जो महान पुरुषो से पूजित है |
इसका का कारण है की यह इतना अमूल्यवान है |
नारायणुवाच
एवमेव पुरा पुष्टो भगवान् गिरिशः प्रभुः |
षण्मुखेन च रुद्रस्तं यदुवाच शृणुष्व तत ||
तब भगवान् नारायण ने कहा
तब भगवान् नारायण ने कहा
नारायण ने कहा की यही प्रश्न षण्मुख ने भगवान् गिरीश को यह प्रश्न पूछा था
जो भगवान् शिवजीने षण्मुख को बताया था वो ही में आपको संक्षिप्त में बताता हु |
गिरिशोवाच ( ईश्वर उवाच )
श्रुणु षण्मुख तत्वेन कथयामि समासतः |
त्रिपुरो नाम दैत्यस्तु पुराऽसीतर्वदुर्जय ||
ईश्वर ने कहा - हे षण्मुख सुनो में संक्षेप में यह कहता हु |
त्रिपुर नामका एक महा राक्षस था जो दुर्जय हो गया था |
हतास्तेन सुराः सर्वे ब्रह्मविषण्वादि देवताः |
सर्वैस्तु कथिते तस्मि स्तदाहं त्रिपुरं प्रति ||
अचिंतयं महाशस्त्रमघोराख्यं मनोहरं |
सर्वदेवमयं दिव्यं ज्वलन्तं घोररुपि यत ||
त्रिपुरस्य वधार्थाय देवानां तारणाय च |
सर्वविघ्नोपशमनमघोरास्तमचिन्तयम ||
उस राक्षस ने ब्रह्मा-विष्णु आदि सभी देवताओ को तिरस्कार कर दिया था, तभी सभी देवताओ ने मुझे आकर यह सब बताया था | तब मैंने कहा इस त्रिपुर राक्षस का वध करने,देवताओंकी रक्षा करने,और सर्व विघ्नका विनाश करने के लिए सर्वदेवमय दिव्य ज्वलंत महाघोररूपी अघोर अस्त्र का चिन्तन किया |
दिव्यवर्षसहस्त्रं तु चक्षुरुन्मीलितं मया |
पश्चन्माकुलाक्षीभ्यः पतिता जलबिन्दवः ||
तब दिव्यसहस्त्र ( दैविय हजारसाल तक ) मैंने अपने नेत्र निमीलित किये तो मेरे नेत्रों से जलबिंदु गिरे |
तत्रश्रुबिंदतो जाता महारुद्राक्ष वृक्षकाः |
ममाज्ञया महासेन सर्वेषां हितकाम्यया ||
उन नेत्रों से गिरे हुए अश्रु से महारुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुये |
हे महासेन मेरी आज्ञा से और सबके हित की कामना से वे रुद्राक्ष पैदा हुए है ||
यह रुद्राक्ष भक्तोंकी कामनापूर्ति और संसार के कल्याणहेतु उत्पन्न हुए है |
क्युकी यह रूद्र की आँखों में से निकले इसलिए यह रुद्राक्ष नाम से प्रसिद्द हुए |
इस रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है |
इसमें तनिक भी संदेह ना रखे |
फिर यही रुद्राक्ष को मैंने चारोवर्णो में बाट दिया |
|| रुद्राक्ष उत्पत्ति कथा समाप्तः ||
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