श्री महामृत्युञ्जय स्तोत्रं
श्री महामृत्युञ्जय स्तोत्र |
बहुत बहुत उत्तम स्तोत्र है यह जो मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दर्शित है | यह स्तोत्र के पाठ से ही मार्कण्डेय ऋषि ने अष्टम चिरंजीवी का वरदान प्राप्त किया था | जन्म से पहले ही मार्कण्डेय ऋषि का अल्पायु निश्चित था | फिर उन्होंने महादेव की साधना कर इसी स्तोत्र द्वारा चिरंजीवी का वरदान प्राप्त किया | और वो आठवे चिरंजीवी के रूप में जाने गए |
इस स्तोत्र का विधान:
यह स्तोत्र बहुत उत्तम है खासकर उन लोगो के लिये जो अस्वस्थ रहते है,जो बीमार रहते है,या जो बीमार है उन लोगो के लिए यह रामबाण की तरह काम करता है | अस्वस्थ मनुष्य को स्वस्थ बना देता है |
इस स्तोत्र के माहात्म्य में ही बताया है की इस के 100 पाठ करने चाहिए | 100 पाठ का आवर्तन करने से सभी कष्टों का नाश होता है | प्रतिदिन इसके पाठ करने से मनुष्य को किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं रहता ना मृत्युका,ना अग्निका,ना चोरोका भय रहता है.सभी प्रकार के क्लेशो का विनाश करता है यह स्तोत्र |
इस स्तोत्र के श्लोको की दूसरी पंक्ति में मार्कण्डेय जी ने प्रार्थना की है की
" नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति"
अर्थात जो महादेव के आगे अपना सिर झुकाता है उसको मृत्यु भी कुछ नहीं कर सकता"
इस स्तोत्र में सर्वप्रथम विनियोग ले :
विनियोगः
ॐ अस्य श्री महामृत्युञ्जय स्तोत्र मंत्रस्य ,श्रीमार्कण्डेय ऋषिः अनुष्टुपछन्दः,श्री मृत्युञ्जयो देवता,गौरी शक्तिः,समस्त मृत्यु उपशमनार्थं सकल ऐश्वर्य प्राप्त्यर्थं जपे विनियोगः |
ध्यानं
चैतन्यं सुमनं मनं मन मनं मानं मनं वामनं
विश्वसार सरं सरं सर सरं सारं सरं वासरं |
मायाजाल धवं धवं धव धवं धावं धवं माधवं
कैलासाधिपति भवं भव भवं भावं भवं माधवं ||
स्तोत्रं
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठं उमापतिं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 1 ||
कालकण्ठं कालमूर्तिं कालाग्निं कालनाशनं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 2 ||
नीलकण्ठं विरूपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 3 ||
वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 4 ||
देवदेवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 5 ||
त्र्यक्षं चतुर्भुजं शान्तं जटामुकुटधारिणं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 6 ||
भस्मोद्धूलितसर्वाङ्गं नागाभरणभूषितं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 7 ||
अनन्तमव्ययं शान्तं अक्षमालाधरं हरं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 8 ||
आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनीं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 9 ||
अर्धनारीश्वरं देवं पार्वतीप्राणवल्लभां |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 10 ||
प्रलय स्थिति कर्तारं आदिकर्तारमीश्वरं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 11 ||
व्योमकेशं विरूपाक्षं चन्द्रार्द्धकृतशेखरं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 12 ||
गङ्गाधरं शशिधरं शङ्करं शूलपाणिनीं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 13 ||
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यंतकारिणँ |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 14 ||
कल्पायुर्देहि में नित्यं यावदायुररोगतां |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 15 ||
शिवेशानं महादेवं वामदेवं सदाशिवं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 16 ||
उत्पत्तिस्थिति संहारकर्त्तारं ईश्वरं गुरुं |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || 17 ||
|| माहात्म्य ||
मार्कण्डेयकृतं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ |
तस्यमृत्युभयं नास्ति नाग्निचोरभयं क्वचित || 18 ||
शतावृत्तं प्रकीर्त्तव्यं सङ्कटे कष्टनाशनं |
शुचिर्भूत्वा पठेत्स्तोत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकं || 19 ||
मृत्युञ्जय महादेव त्राहिमां शरणागतं |
जन्ममृत्युजरारोगैः पीडितं कर्मबन्धनैः || 20 ||
तावकस्त्वद्गतप्राणः त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड |
इति विज्ञाप्य देवेशं त्र्यम्बकाख्यममुं जपेत || 21 ||
नमः शिवाय साम्बाय हरये परमात्मने |
प्रणतक्लेशनाशाय योगिनां पतये नमः || २२ ||
|| इति मार्कण्डेय कृतं महामृत्युञ्जय स्तोत्रं सम्पूर्णं ||
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