श्री प्रज्ञावर्धन स्तोत्र - विद्या प्राप्ति स्तोत्र
श्री प्रज्ञावर्धन स्तोत्र |
वाणी की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती का विद्या-ज्ञान-बुद्धि और विनम्रता प्रदान करनेवाला
उत्तम स्तोत्र श्री प्रज्ञावर्धन स्तोत्र है |
अगर कोई बच्चा बोल नहीं रहा है तो उनके माता-पिता उस बच्चे के नाम से संकल्प लेकर इस स्तोत्र का पाठ करे तो शीघ्र ही वो बच्चा बोलने लगेगा | जो बच्चे पढ़ने में कमज़ोर हो उसके लिये यह रामबाण प्रयोग है |
अगर आप स्तोत्रपाठ करने में असमर्थ हो तो अट्ठाइस नामो का स्मरण भी कर सकते है |
इसी स्तोत्र की फलश्रुति में बताया है की इस स्तोत्र के साथ 28 नामो का भी स्मरण करना चाहिए |
जो हम यहाँ प्रदान कर रहे है.
इस नामो सहित स्तोत्र का प्रतिदिन पठन करने से मनुष्य उत्तम वक्त बनता है | जो महामंत्र कहलाता है |
साधना विधान
स्तोत्र के माहात्म्य के अनुसार किसी भी माह के पुष्य नक्षत्र से शुरूकर अगले पुष्य नक्षत्र तक इसका नित्य 10 बार पाठ करे.पीपल के वृक्ष के निचे इस स्तोत्र का सर्वप्रथम 10000 बार पाठ करे | या पुष्य नक्षत्र से आरम्भ कर पुष्य नक्षत्र तक प्रतिदिन 108 पाठ करे। इसका अनुष्ठान करने से पूर्व भगवान् गणेशजी और स्कन्द यानी कार्तिक भगवान् का स्मरण करे |
|| अष्टाविंशति नामः ||
१. - ॐ योगेश्वराय नमः |
२. - ॐ महासेनाय नमः |
३. - ॐ कार्तिकेयाय नमः |
४. - ॐ अग्निनन्दनाय नमः |
५. - ॐसनत्कुमाराय नमः |
६. - ॐ सेनान्ये नमः |
७. - ॐ स्वामीने नमः |
८. - शङ्करसंभवाय नमः |
९. - ॐ गांगेयाय नमः |
१०. - ताम्रचूड़ाय नमः |
११. - ॐ ब्रह्मचारिणे नमः |
१२. - शिखिध्वजाय नमः |
१३. - ॐ तारकारये नमः |
१४. - ॐ उमापुत्राय नमः |
१५. - ॐ कौंचारातये नमः |
१६. - ॐ षडाननाय नमः |
१७. - ॐ शब्दब्रह्मसमूहाय नमः |
१८. - ॐ सिद्धाय नमः |
१९. - ॐ सारस्वताय नमः |
२०. - ॐ गुहाय नमः |
२१. - ॐ भगवते सनत्कुमाराय नमः |
२२. - ॐ भोगमोक्षप्रदाय नमः |
२३. - ॐ प्रभवे नमः |
२४. - ॐ शरजन्मने नमः |
२५. - ॐ गणाधीशपूर्वजाय नमः |
२६. - ॐ मुक्तिमार्गकृते नमः |
२७. - ॐ सर्वारातिप्रमाथिने नमः |
२८. - ॐ वाञ्छितार्थ प्रदायका नमः |
श्री प्रज्ञावर्धन स्तोत्र मूलपाठ
ॐ योगीश्वरों महासेनः कार्तिकेयोऽग्नि नन्दनः |
सनत्कुमारः सेनानीः स्वामी शङ्कर सम्भवः || १ ||
गाङ्गेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः |
तारकारिरुमापुत्रः कौन्चारातिः षडाननः || २ ||
शब्दब्रह्मसमूहश्च सिद्धः सारस्वतो गृहः |
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षप्रदः प्रभुः || ३ ||
शरजन्मा गणाधीश पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत |
सर्वारातिप्रमाथी च वाञ्छितार्थ प्रदायकः || ४ ||
फलश्रुतिः
ॐ अष्टाविंशतिनामानि त्रिकालं तु हि यः पठेत |
प्रकर्षश्रद्धयायुक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत || ५ ||
महामन्त्रमयानां च महानाम्नां प्रकीर्त्तनात |
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा || ६ ||
पुष्यनक्षत्रमारभ्य दशवारं पठेन्नरः |
पुष्यनक्षत्रपर्यान्ताश्वत्थमूले दिने दिने || ७ ||
पुरश्चरणमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते || ८ ||
|| इति श्रीरुद्रयामले प्रज्ञावर्धनस्तोत्रं सम्पूर्णं ||
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