गुरु के लक्षण | गुरु किसे कहते है ?
गुरु महिमा |
गुरु अपरम्पार है इसमें कोई संदेह नहीं कर सकता |
हमारे शास्त्र और साधु-संत कहते है " गुरु बिना ज्ञान नहीं, गुरु बिना ध्यान नहीं" गुरु ही तो भगवान् तक पहोचने का एक मात्र रास्ता है या सरल उपाय है |
गुरु की भक्ति यानी साक्षात् भगवान् की भक्ति | लेकिन कई अन्य प्रश्न भी है, हमारे मन में यह भी प्रश्न रहता है की गुरु कैसा होना चाहिए ?
गुरु के लक्षण कैसे होने चाहिए ? गुरु किसे कहते है ? गुरु का अर्थ क्या है ?
गुरु की महिमा
"यो गुरुः स शिवः प्रोक्तो यः शिवः स गुरुः स्मृतः"
जो गुरु है वो ही शिव है और जो शिव है वो ही गुरु है जो गुरु और शिव में भेद रखते है वो महान पापी कहलता है.
गुरु शब्द का अर्थ
गुकारश्चांधाकारो हि रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञानग्रासकं ब्रह्मगुरुरेव न संशयः।।
"गु" - यानी अंधकार
"रु" - यानी प्रकाश(उजाला)
अंधकार से प्रकाश की और ले जाए मतलब अज्ञान को दूर कर ज्ञान प्राप्त कराये वो गुरु।
गुकारश्च गुणातीतो रुपातीतो रुकारकः।
गुणरूप विहीनत्वात गुरुरीत्य भिधीयते।।
"गु" - गुणातीता
"रु" - रुपातीता
गुण और रूप से जो परे है जिन्हे न गुण स्पर्श करता है और नाहि स्पर्श करता है वो है गुरु।
गुरु के लक्षण
ज्ञान वैराग्यं ऐश्वर्यं यशः श्रीः समुदाहृतं।
षड गुणैश्वर्यं युकतोहि भगवान श्री गुरु प्रिये।।
ज्ञान-वैराग्य-ऐश्वर्य-यश-लक्ष्मी-मधुरवाणी
यह 6 लक्षण जिनमे होते है वही सच्चा गुरु होता है।
|| गुरु महिमा समाप्तः ||
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