चंद्रघंटा माँ की कथा
चंद्रघंटा माँ कथा |
"तृतीयं चन्द्रघण्टेति" अर्थात माँ दुर्गा का तीसरा स्वरुप माँ चंद्रघंटा का है |
और नवरात्रि के तीसरे दिन करनी चाहिए माँ चंद्रघंटा की कथा |
खासकर देवी उपासको के लिए यह उपासना बहुत महत्वपूर्ण है |
माना जाता है जब साधक माँ चंद्रघंटा की उपासना करते है तब साधक मणिपुरचक्र में साधना के प्रभाव से प्रवेश करता है।
उन्ही प्रभाव के कारण साधक को चंद्रघंटा की उपासन में ध्वनिया सुनाई देती है.अद्भुत वस्तुओ के दर्शन होते है |
माँ चंद्रघंटा की उपासना से साधक, वीर, निर्भय बनता है |
साधना में परमपद को प्राप्त करता है |
अगर कोई मनुष्य बहुत क्रोध करता हो वो माँ चंद्रघंटा की उपासना से क्रोधमुक्त हो जाता है.
दैत्यों के विनाश हेतु माँ चंद्रघंटा अवतरित हुई है |
जो हर प्रकार के असुरो का विनाश कर देवताओ को अपना स्थान और भाग दिलाती है.भक्तो को वाञ्छित फल देती है |
माँ चंद्रघंटा का मार्कण्डेयपुराण स्थित दुर्गासप्तशती में कई जगह उलक्ष मिलता है।
|| माँ चंद्रघंटा कथा समाप्तः ||
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