चंद्रग्रहण में क्या करे ? क्या ना करे ?
चंद्रग्रहण |
चंद्रग्रहण के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात याद रखनी चाहिये की चंद्रग्रहण में कभी नए मंत्र की दीक्षा नहीं ली जाती है।
मंत्रमात्रप्रकथनमुपदेशःसउच्यते मन्त्रग्रहणेसुर्यग्रहणं एवमुख्यं चन्द्रग्रहणे दारिद्र्यादिदोशोकतेरीतिकेचित ।
अर्थात मंत्र ग्रहण के लिए सिर्फ सूर्यग्रहण ही श्रेष्ठ है,किन्तु अगर चंद्र ग्रहण में मन्त्र ग्रहण करे तो दारिद्रादि दोष प्राप्त होता है।
तो कभी भी चंद्रग्रहण में नया मंत्र ग्रहण नहीं करना चाहिये।
ग्रहण के समय क्या करे ?
ग्रहण के स्पर्शसमय में स्नान करना चाहिये।
ग्रहण के मध्यकाल में यज्ञ, देवपूजा,श्राद्ध, मंत्रजाप, करना चाहिये।
ग्रहण के मोक्ष काल में दान करनेका विधान है।
ग्रहण में स्नान और दान का महत्व
ग्रहणकाल में स्नान का उत्तम महत्व है।
ग्रहण के समय समस्त पानी गंगाजल के समान पवित्र होता है,
बहते पानी में स्नान करना उत्तम कहा गया है,
उससे अधिक तालाब का पानी श्रेष्ठ बताया हुआ है,
तालाब के पानी से उत्तम तीर्थ नदी का जाल बताया है,
और नदी से उत्तम समुद्रस्नान बताया हुआ है।
वैसे ही ग्रहण के समय सभी ब्राह्मण साक्षात व्यास स्वरुप होते है और ऐसे ब्राह्मणो को दिया हुआ दान पृथ्वी दान के समान फल देता है | सत्पात्र ( जरुरियातमंद ) को दिया हुआ दान अनंत गुना फल देता है।
ग्रहण में मंत्र सिद्धि या कौन से मंत्र का जाप करने चाहिये ?
"पुरशचरणमकुर्वद्भिरपिगुरुपदिष्टस्वश्वेष्टदेवतामंत्रजपोगायत्रीजपश्चावश्यंग्रहणेकार्योंन्यथा मंत्रमालिन्यं"
अर्थात ग्रहण काल में अपने इष्टदेवता का मंत्र जाप करे या अपने गुरु ने दीक्षा में दिया हुआ मंत्र करे,
या किस भी सिद्ध मंत्र का जाप करे, किन्तु याद रखे ग्रहण में अपने इष्ट देवता और गायत्री मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए नहीं तो मंत्र मलिन हो जाता है और मंत्र में मलिनता आती है।
ग्रहणकाल के नियम
"ग्रहणकालेशयनेकृतेरोगोमूत्रे दारिद्र्यं"
ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए।
ग्रहण काल में मैथुन या सम्भोग नहीं करना चाहिए।
ग्रहणकाल में देह पर तैलमर्दन नहीं करना चाहिए।
ग्रहण काल में भोजन नहीं करना चाहिए।
ग्रहणकाल में मंदिर में, रसोई घर में, अलमारी में, तिजोरी में, घर के मुख्या स्थानों पर दर्भ यानी कुशा रखे इससे ग्रहण का उन चीजों पैर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा और अशुचितत्व नहीं होगा यानी अपवित्र नहीं होगा।
ग्रहण पूरा हो जाने के बाद क्या करे ?
ग्रहण पूरा हो जाने के बाद पुरे घर में गंगाजल और गौमूत्र को छिड़के।
ग्रहण का ल में पुरश्चरण कैसे करे ?
ग्रहणकाल में पुरश्चरण करने का बहुत ही महत्व है, पुरश्चरण को करने से साधक को सबकुछ प्राप्त हो जाता है।
ग्रहण के स्पर्शकाल के समय स्नान करे,स्नान करने के बाद संकल्प करे.
सङ्कल्पः अमुकगोत्रोत्पन्नो अमुकशर्माहं राहुग्रस्ते दिवाकरे निशाकरे वा अमुकदेवतायां अमुकमंत्रसिद्धिकामो ग्रासादि मुक्तिपर्यन्तं अमुकमन्त्रस्य जपरूपं पुरश्चरणं करिष्ये।
ऐसा सङ्कल्प करने के बाद आसनशुद्धि न्यासविधी करने के बाद ग्रहण के स्पर्श काल से मोक्षपर्यन्तं तक मूलमंत्र का जाप करे।
उसके दूसरे दिन स्नानादिक कर्म करके "अमुकमन्त्रस्य कृतैतद्ग्रहणकालिकामुकसंख्यापुरश्चरणजपसांगतार्थं तद्दशांशहोम-तद्दशांशतर्पण-तद्दशांशमार्जन-तद्दशांशब्राह्मणभोजनानि करिष्ये।
अगर दशांसहवन-तर्पण-मार्जन-भोजन करने में असमर्थ है तो मंत्र का चौगुना मंत्र जाप करे।
मुख्यटिप्पणी: ग्रहण के नियम छोटे बालको,वृद्ध,अस्वस्थ मनुष्यो को और गर्भवती महिलाओ को पालन नहीं करने चाहिये और नाही उनको कोई दोष लगता है।
|| इति चंद्रग्रहण विधान समाप्तः ||
Chandragrahan Vidhi
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Jyotish