श्री यंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई थी ?
श्रीयंत्र विश्व का एक मात्र ऐसा यन्त्र जो सबकुछ देनेवाल है | और यह वैदिक परम्परा में तो सिद्ध हो चूका है किन्तु विज्ञान ने भी यह माना है की इस यन्त्र में बहुत शक्ति का संचार है |
भरपूर सकारात्मक ऊर्जा से पूर्ण है यह महान श्रीयंत्र |
किन्तु यह कहा से आया ? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई इस विषय में शास्त्रों में दो कथाये है वो यहाँ प्रस्तुत की है |
पौराणिक कथा - 1
एक कथा के अनुसार एक बार आदि शंकराचार्यजी ने कैलास मान सरोवर पर भगवान शिवजी की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया | और उसी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा | तब आदि शंकराचार्य ने विश्व के कल्याण हेतु उपाय पूछा | तब भगवान् शंकर ने शंकराचार्यजी को साक्षात् महालक्ष्मीजी के स्वरूपमान श्रीयंत्र की महिमा बताई | और कहा - यह श्रीयंत्र मनुष्यो का कल्याण करेगा साथ ही समग्र विश्व का भी कल्याण करेगा | श्रीयंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महात्रिपुर सुंदरी का उपासना स्थल है | क्युकी इन्ही 43 चक्रो में उनका निवास और रथ है | श्रीयंत्र में ही देवी स्वयं मूर्तिमान होकर बिराजमान होती है इसलिए श्रीयंत्र विश्व का कल्याण करनेवाला है |
यह एक कथा संदर्भित है |
पौराणिक कथा - 2
अन्य एक सुन्दर कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मीजी अप्रसन्न होकर बैकुंठ चली गई, इसी कारणवश पूरी पृथ्वी पर काफी समस्याएं-दुःख-दरिद्रता फैलने लगी | ब्राह्मण-वैश्य सभी लोग बिना लक्ष्मीजी के दीन-हीन,असहाय हो गए,तब ब्राह्मणो में श्रेष्ठ वसिष्ठ ने निश्चय किया की में लक्ष्मीजी को खुश करूँगा प्रसन्न करूँगा और वापिस पृथ्वी पैर ले आऊंगा |
जब वसिष्ठजी बैकुंठ में गए और लक्ष्मी से मिलते ज्ञात हुआ, की लक्ष्मीजी अप्रसन्न है, वो किसी भी स्थिति में पृथ्वी पैर आने को तैयार नहीं, तब वसिष्ठजी ने भगवान् नारायण की आराधना की | जब नारायण प्रसन्न हुए तो वसिष्ठजी ने कहा हम पृथ्वी पर बिना लक्ष्मीजी के दुखी हो रहे है, हमारे आश्रम उजड रहे है, चौपट हुए जा रहे है, जीवन का उत्साह धीरे धीरे समाप्त हो रहा है |
भगवान् विष्णु वसिष्ठजी को साथ लेकर लक्ष्मी के पास गए और उन्हें मनाने लगे, परन्तु लक्ष्मीजी नहीं मानी, उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा की मै पृथ्वी पैर नहीं जाउंगी क्युकी वहा शुद्धि नहीं है और नाही शुद्ध साधना |
हताश होकर वशिष्टजी वापिस भूतल पर आ गए | प्रथ्वी पर सबको यह विस्तार से सुनाया यह सुनकर सबको कुछ सुझा नहीं सब सोच-विचार करने लगे की अब क्या करे ? तब देवताओ ने गुरु बृहस्पति को कहा अब एक मात्र श्रीयंत्र साधना बची है |
यदि श्रीयंत्र बनाकर स्थापित कर की जाए तो निश्चय ही लक्ष्मीजी को स्वयं आना पड़ेगा |
बृहस्पति की बात सुनकर सभी ऋषिगण खुश हो गए | उन्होंने बृहस्पति के निर्देश अनुसार धातु पर श्रीयंत्र का निर्माण किया और उसे मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठा युक्त किया और दीपावली से दो दिन पूर्व धनत्रयोदशी को उस यन्त्र को स्थापित कर विधि-विधान से उसका षोडशोपचार पूजन किया | पूजन समाप्त होते होते लक्ष्मीजी स्वयं वहा प्रकट हो गई | और लक्ष्मीजी बोली की में किसी भी स्थिति में भूतल पर आने को तैयार नहीं थी यह मेरा प्राण था | लेकिन बृहस्पति की यह युक्ति से मुझे आना ही पड़ा | श्रीयंत्र मेरी आत्मा है | श्रीयंत्र मेरा आधार स्थान है |
साधको ने और ऋषिगणों ने एकसाथ स्वीकार किया की यह अद्भुत यन्त्र धन-संपत्ति प्रदायक है |
अन्य किसी भी साधना से लक्ष्मी जी प्रसन्न हो ना हो किन्तु श्रीयंत्र की स्थापना से स्वयं लक्ष्मीजी का आगमन होता ही है | और साधको को भौतिकसुख-सफलता-धन-संपत्ति-पुत्र-पौत्रादि और सम्पन्नता देती है |
जहा पर भी इस यन्त्र की स्थापना होती है वहा पर दरिद्रता का विनाश हो जाता है | कर्जमुक्ति के लिये ऋणमोचन के लिये यह यंत्र पूर्ण सफलता दायक है |
भारद्वाज ऋषि के अनुसार यह यंत्र स्वयं सम्पूर्ण है यदि ये धातुनिर्मित मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो तब |
कणाद का तो यहाँ तक कहना है की श्रीयंत्र अगर प्राणप्रतिष्ठा से युक्त है मंत्र सिद्ध है तो इस पर किसी भी प्रकार के उपायों की आवश्यकता नहीं है |
क्योकि प्राणप्रतिष्ठा करने के बाद यह स्वयं चैतन्य हो जाता है जागृत हो जाता है | और अपना काम करने लगता है और साधको की सभी कामना पूर्ण करता है |
जिस तरह से सुगन्धित अत्तर को कही पर भी छिड़के उसकी सुगंध वहा बिना दिखे फेकती है और लोग उन्हें महसूस करते है वैसे ही श्रीयंत्र जहा होता है वहा सभी वातारवण को पवित्र बनाकर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देता है |
इस कथा से यह साबित होता है की श्रीयंत्र अपने आपने लक्ष्मीजी का स्वर्वधिक प्रिय है जहा यह होता है वहा लक्ष्मीजी अपने आप स्थिर निवास करती है |
|| श्रीयंत्र कथा समाप्त ||
Shriyantra Katha
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