श्री विष्णुसहस्त्रनाम महिमा
जब भी सहस्त्र नाम शब्द की बात होती है सर्वप्रथम सबके मन में श्री विष्णुसहस्त्रनाम मुख पर सर्व प्रथम आता है |
हालांकि सभी देवी देवताओ का नाम हमारे शास्त्रों में बताया हुआ है |
लेकिन विष्णुसहस्त्रनाम कलियुग में औषधि के रूप में काम कर रहा है |
ये दुनिया में कई लोगो ने अनुभव में पाया है |
श्रीविष्णुसहस्त्रपाठ महिमा |
विष्णुसहस्त्रनाम क्या है ?
विष्णुसहस्त्रनाम गरुड़पुराण,पद्मपुराण,मत्स्यपुराण में भी उल्लेखित किया हुआ है | किन्तु सबसे प्रसीद्ध जो विष्णुसहस्त्र है वो है महाभारत के अनुशासनपर्व के 149 प्रकरण में इसका उल्लेख है जब भीष्मपितामह मृत्युशैया पर है तब उन्होंने यह नाम युधिष्ठिर को बताये थे |
विष्णुसहस्त्रनाम की उत्पत्ति कैसे हुई थी ?
युधिष्ठिर धर्मराज थे, सत्यवान थे, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर दुखित होने लगे वो अपने आपको अकेला महसूस करने लगे | उनके जीवन का अब कोई लक्ष्य नहीं रहा | तब में जीके क्या करूँगा ऐसा उन्होंने मन में विचार किया | तब भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें मन और ह्रदय की शांति के लिए भीष्मपितामह के पास जाने को सलाह दी | पश्चात् युधिष्ठिर ने भीष्मपितामह के पास जाकर प्रश्न पूछा की मेरे मन में, ह्रदय में, शांति का अनुभव नहीं हो रहा कृपया आप मुझे बताये उत्तम धर्म कौन सा है ? किस मंत्र या स्तोत्र का उच्चारण करने से शांति प्राप्ति होती है ? और जन्म मरण के फेरो से छुट जाए | तब अंतिम समय में भीष्मपितामह ने युधिष्ठिर से कहा मनुष्य मन तथा ह्रदय से भक्ति श्रद्धा सहित भगवान् विष्णु की स्तुति करे वही उत्तम धर्म है | पश्चात भीष्मपितामह ने विष्णुसहस्त्र का उपदेश युधिष्ठिर को सुनाया |
विष्णुसहस्त्रनाम का महत्व
इस स्तोत्र का निरंतर पाठ करने से मनुष्य समग्र संसार के बंधनो से मुक्त हो जाता है | और मन-ह्रदय में स्थायी रूप से शांति की प्राप्ति होती है | मन प्रसन्न रहता है | शोक दूर हो जाता है | विष्णुसहस्त्रनाम तत्वों से भरा हुआ है | कलियुग का औषध है | पारसमणि है | इसक माध्यम स्वर से शुद्ध उच्चारण करने से योग भी हो जाता है | विष्णुसहस्त्र महाभारत के पंचरत्नों में से एक है | सिर्फ इतना ही नहीं आयुर्वेद के महान ग्रन्थ चरकसंहिता में भी चरक मुनि ने कहा "विष्णुसहस्त्रनाम का निरंतर पाठ करने से सभी रोगो का नाश हो जाता है जैसे एक लकड़ी को अग्निमे रखते ही भस्मीभूत हो जाती है वैसे ही सभी पाप और रोग का विनाश हो जाता है | शंकराचार्य ने भी इस में भास्य लिखा हुआ है | रामानुचार्य ने भी 12 वी सदी में इन नमो का विस्तृति कारन किया हुआ है | माधवाचार्य ने भी विस्तार से इस पर संशोधन कर अनुभव किया था | ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी इसकी विस्तार से बताया हुआ है |
विष्णुसहस्त्रनाम के लाभ
य इदं शुणुयान्नित्यं यश्चापि पतिकीर्तयेत |
नाशुभं प्राप्नुयात किंचित सोमुत्रेह च मानवः ||
जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है या सुनता है या इसका गान करता है |
उस मनुष्य का इस लोक में कुछ भी अशुभ नहीं होता |
वेदांतगो ब्राह्मणःस्यात्त क्षत्रियो विजयी भवेत् |
वैश्यों धनसमृद्धः स्याच्छूद्रः सुखमवाप्नुयात ||
ब्राह्मण इसका पाठ करेने से वेदज्ञ बनता है, क्षत्रिय विजय प्राप्त करता है,
वैश्य धन को प्राप्त करता है,शूद्र सुखी बनता है |
विष्णुसहस्त्रपाठ करने की विधि
इसका पाठ विधिवत करने से घर का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है |
नित्य तीन पाठ करने से नवग्रहों का कोई भी दोष हो शांत हो जाता है |
किसी भी बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र या आश्लेषा नक्षत्र में हुआ है तो सविधि 120 पाठ करने से वो दोष समाप्त हो जाता है |
धन और स्थिर लसखमी की प्राप्ति के लिए नित्य 1 पाठ करना चाहिए |
नित्य बारह पाठ करने से शत्रुपीड़ा शांत हो जाती है |
गर्भवती महिला अगर यह पाठ स्वयं करती है या इसका श्रवण करती है तो श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है |
धर्म की कामना वाला मनुष्य धर्म को प्राप्त करता है |
धन की इच्छा रखने वाला दह्र्म को प्राप्त करता है |
संतान की कामना वाला संतान को प्राप्त करता है |
यह पाठ करने से शत्रु भस्मित हो जाता है |
इस स्तोत्र के पाठ से सर्व दानो का फल मिलता है |
सभी देवताओ के पूजन का फल प्राप्त होता है |
इस पाठ की विधि कुछ इस प्रकार है
भक्तिमान्यः सदोत्थाय शुचिस्तद्गतमानसः |
सहस्त्रं वासुदेवस्य नाम्नामेतत प्रकीर्तयेत ||
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर नित्य प्रभात काल में स्नानादि कर भगवान् विष्णुका ध्यान कर इस वासुदेव के सहस्त्र नामो का पाठ करता है वो मनुष्य सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करता है | अचल संपत्ति का मालिक बनता है | उत्तम सुखो को प्राप्त करता है | रोग-शोक से मुक्त हो जाता है | दुःख और महाआपत्तिओ से मुक्त हो जाता है |
"जन्ममृत्यु जराव्याधि भयं नैवोपजायते"
जन्म-मृत्यु, आधी-व्याधि और भय से मुक्त हो जाता है |
जिस मनुष्य को क्रोध बहुत आता है वो इसका पाठ करता है
तो क्रोध शांत हो जाता है |
विष्णुसहस्त्र में तो यहाँ तक कहा है
सर्व वेदेषु यत्पुण्यं सर्वतीर्थेषु यत्फलं |
तत्फलं समवाप्नोति स्तुत्वा देवं जनार्दनं ||
चार वेदो को पढ़ने से जो फल प्राप्त होता है
सर्व तीर्थो में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है
वो फल भगवान् के इस पाठ को करने से प्राप्त होता है |
विष्णुसहस्त्र पाठ कहा करना चाहिए ?
यो नरः पठते नित्यं त्रिकालं केशवालये |
द्विकालं एक कालं वा क्रूरं सर्वं व्यपोहति ||
जो मनुष्य प्रतिदिन केशव के मंदिर में या मूर्ति के सामने तीनो कालो में यह पाठ करता है
या दो काल पाठ करता है वो मनुष्य अपने सभी पापो का विनाश कर देता है |
भगवान् ने स्वयं कहा " नाम्नां सहस्त्रं योधीते द्वादश्यां मम सन्निधौ "
जो मनुष्य द्वादशी के दिन मेरी मूर्ति के सामने यह पाठ करता है उसे इस लोक में कोई भय नहीं होता |
शनैर्दहति पापानि कल्पकोटिशतानी च |
अश्वत्थ सन्निधौ पार्थः तुलसीसन्निधौ तथा ||
हे अर्जुन | मनुष्य के करोडो जन्मो के पापोंका विंश हो जाएगा अगर वो पीपल के पेड़ के आगे या तुलसी के आगे यह पाठ का गान करेगा | इतना महान यह विष्णुसहस्त्र पाठ है और उनकी महिमा है |
|| श्री विष्णुसहस्त्र नाम महिमा समाप्तः ||
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