श्री सूक्त का पाठ कैसे करे ?
श्रीसूक्तम |
सर्व प्रथम इस साधना में सर्वप्रथम संकल्प करना है |
जैसे हर एक अनुष्ठान में करते है |
संकल्प करने के लिए सर्व प्रथम अपने दाए हाथ में जल पकडे |
श्री सूक्त का नित्य संकल्प
ॐ मम स कुटुम्बस्य स परिवारस्य नित्य कल्याण प्राप्ति अर्थं अलक्ष्मी विनाशपूर्वकं दशविध लक्ष्मी प्राप्ति अर्थं श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थं मनोभिलषित विपुल लक्ष्मी
प्राप्ति अर्थम् सर्वदा मम गृहे लक्ष्मी प्राप्ति अर्थम् (निवासार्थं) च स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति अर्थे यथा शक्ति श्रीसूक्तस्य वा षोडश पाठैः अभिषेकं अहं करिष्ये | ( जपे-होमे ) अभिषेके हाथ में पकड़ा हुआ जल छोड़े |
अर्थ : मेरे पुरे कुटुंब सहित समग्र परिवार का कल्याण हो तथा अलक्ष्मी का विनाश हो और देश प्रकार की लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये यथा शक्ति पाठ करने का में संकल्प कर रहा हहु या कर रही हु |
इसके पश्चात श्रीसूक्त का विनियोग पढ़े |
विनियोगः
ॐ श्री हिरण्यवर्णां इति पञ्चदशर्चस्य श्री सूक्तस्य आद्यमन्त्रस्य लक्ष्मी ऋषिःतदुत्तर चतुर्दशमंत्राणां आनंदकर्दमचिक्लीतेईंदिरासुता ऋषयः जात वेदोग्नि दुर्गा श्री महालक्ष्मी देवता आद्यानां तिसृणां अनुष्टुप छन्दः चतुर्थ मंत्रस्य बृहति छन्दः व्यंजनानि बीजानि स्पर्श शक्तयः बिन्दवः कीलकं मम अलक्ष्मी परिहार पूर्वकं दशविधलक्ष्मी प्राप्त्यर्थं यथा शक्ति श्रीसूक्ते अभिषेके पाठे ( जपे-होमे ) विनियोगः |
इसके पश्चात् श्रीसूक्त पाठ के पूर्व न्यास करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यवर्णायै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |
बोलकर अंगूठे को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यै तर्जनीभ्यां नमः |
बोलकर तर्जनी को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवते महालक्ष्म्यै सुवर्णरजतस्त्रजायै मध्यमाभ्यां नमः |
बोलकर मध्यमा ऊँगली को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै अनामिकाभ्यां नमः |
बोलकर अनामिका ऊँगली को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
बोलकर कनिष्ठिका ऊँगली को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः |
बोलकर दोनों हाथोंको परस्पर घिसे
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यवर्णायै ह्रदयाय नमः |
बोलकर ह्रदयको स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यै शिरसे नमः |
बोलकर सिर पर हाथ स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै सुवर्ण रजतस्त्रजायै शिखायै नमः |
बोलकर शिखा को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै कवचाय हुम् |
बोलकर दोनों हाथो से परस्पर कवच बनाये |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै नेत्रत्रयाय वौषट |
बोलकर दोनों आँखों को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै अस्त्राय फट |
बोलकर सिर के ऊपर से तीन बार हाथ घुमाकर तीन बार ताली बजाये |
ॐ भूर्भुवः स्वरोमिति दिग्बन्धः |
बोलकर दिशाओ को बाँध ले |
महालक्ष्मी ध्यान
ॐ अरुणकमल संस्था तद्रजः पुञ्जवर्णां, करकमल धृतेष्ठाभीति युग्माम्बुजा च |
मणिमुकुटविचित्रालङ्कृता कल्पजातैः भवतु भुवनमाता सन्ततं श्रीं श्रिये नः ||
ध्यान करने के बाद महालक्ष्मी की मानसोपचार पूजा करे |
ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि |
ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि |
ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि |
ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं परिकल्पयामि |
ॐ रं तेजात्मकं दीपं परिकल्पयामि |
ॐ शं सोमात्मकं समस्त ताम्बूलादि सर्वोपचारान परिकल्पयामि |
ॐ छत्रं चामरं मुकुट पादुके परिकल्पयामि |
यह मानसिकपूजा करने के बाद श्रीसूक्त का आरम्भ करे |
|| श्री सूक्तम ||
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजाम् | |
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 1 ||
हे देवो के प्रतिनिधि अग्निदेव, सुवर्ण जैसे वर्णवाली, दरिद्रता के विनाश करने में हरिणी के जैसी गतिवाली और चपल, , सुवर्ण और चांदी की माला धारक चंद्र जैसे शीतल, पुष्टिकरी, सुवर्णस्वरूप, तेजस्वी, लक्ष्मीजी को मेरे यहाँ मेरे अभ्युदय के लिए लेके आईये |
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् |
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् || 2 ||
जिसके पास वेदो की प्राप्ति हुई है, हे लक्ष्मी नारायण | कभी भी मेरे पास से वापिस ना जाए ऐसी अविनाशी (अस्थिर लक्ष्मी)
लक्ष्मी को मेरे वहा सन्मान से लेके आइये जिस वजह से सुवर्ण,गाय,पृथ्वी,घोडा,इष्टमित्र ( पुत्र-पौत्रादि-नौकर ) को में प्राप्त कर सकू |
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् |
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् | || 3 ||
जिस सेना के आगे अश्व,दौड़ते है, ऐसे रथके मध्यमे बैठी हुई हो | जिसके आगमन से हाथियों के नाद की भव्यता से ज्ञात होता है की लक्ष्मीजी आई है |
ऐसी लक्ष्मी का आवाहन करता हु वो लक्ष्मी मेरे ऊपर सदा कृपायमान हो, में उस स्थिर लक्ष्मी को बुला रहा हु |
आप मेरे यहाँ आओ और स्थिर निवास करो |
ॐ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् | |
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् | || 4 ||
जो अवर्णनीय और मधुर हास्यवाले है, जो सुवर्ण स्वरुप तेजोमय पुंज से प्रसन्न,तेजस्वी, और क्षीर समुद्र में रहनेवाले षडभाव से रहित भावना से प्रकाशमान और सदा तृप्त होने से भक्तो को भी तृप्त रखनारी अनासक्ति की प्रतिक कमल के आसन पर बिराजमान और कमल के जैसे ही मनोहर वर्णवाली लक्ष्मीजी को मेरे घर में आने के लिये में उनका आवाहन करता हु |
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् |
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे || 5 ||
जो चन्द्रमा के समान प्रकाशमान, सुखद, स्नेह, कृपा से भरपूर वैभवशाली, श्रेष्ठ कान्तिवाली और निर्मल कान्तिवाली जो सर्व देवोसे युक्त है( देवो ने जिनका आश्रय लिया हुआ है ), कमल के जैसी अनासक्त लक्ष्मी के कारण शरण में में जा रहां हु,जिस दुर्गा की कृपा द्वारा मेरी दरिद्रता का विनाश हो इसलिए में माँ लक्ष्मी का वरण करता हु |
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः |
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः || 6 ||
हे सूर्य के समान तेजस्वी माँ जगतमाता | लोककल्याण हेतु आप वनस्पति स्वरुप बिल्ववृक्ष आपसे ही उत्पन्न हुआ है |
आपकी ही कृपा से बिल्वफल मेरे अंतःकरण में रहे,अज्ञान कार्य-शोक-मोह आदि जो मेरे अन्तः दरिद्र चिह्न है उसका विनाश करनेवाले है जैसे धनभाव रूप से मेरे बाह्य दारिद्र का विनाश करते है |
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेऽस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में || 7 ||
हे माँ लक्ष्मी जो महादेव के सखा कुबेर और यश के अभिमानी देवता चिंतामणि सहित मुझे प्राप्त हो | में इस राष्ट्र में जन्मा हु, इसलिए वो कुबेर मुझे जगत में व्याप्त हुई लक्ष्मी को प्रदान करे यश-समृद्धि-ब्रह्मवर्चस प्रदान करे |
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठांलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् |
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात् | 8 ||
मुझे सुलक्ष्मी प्राप्त होवे | उससे पहले मेरे दुर्बल देह जो दरिद्रता और मलिनता से युक्त है, उसका में उद्योगादि से विनाश करता हु, हे महालक्ष्मी आप मेरे घर में से अभावता और दरिद्रता का विनाश करो |
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणीम् |
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं || 9 ||
हे अग्निनारायण देव सुगंधवाले, जो सदा पुष्ट सर्वसुख समृद्ध, सर्व सृष्टि को अपने नियमानुसार रखनेवाले सर्वप्राणियो के आधार पृथ्वी स्वरुप रहे हुये लक्ष्मीजी में आपका अपने राष्ट्र में आने के लिये आवाहन करता हु |
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः || 10 ||
हे माँ लक्ष्मीजी आपकी ही कृपा से मेरे मनोरथ, शुभ संकल्प, और प्रमाणिकता को में प्राप्त होता हु, आपकी ही कृपा से गौ-आदि पशुओ को भोजनादि प्राप्त हो, हे माँ लक्ष्मी सभी प्रकार की संपत्ति को आप मुझे प्राप्त कराये |
ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम् |
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम् || 11 ||
हे लक्ष्मी देवी कर्दम नामक पुत्र से आप युक्त हो, हे लक्ष्मी पुत्र कर्दम, आप मेरे घर में प्रसन्नता के साथ निवास करो, कमल की माला धारण करनेवाली आपकी माताश्री लक्ष्मी-मेरे कुल में स्थिर रहे ऐसा करो | ( लक्ष्मीजी जो अपना पुत्र प्रिय है इसलिए लक्ष्मीजी अपने पुत्र के पीछे दौड़ती आती है )
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे |
नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे कुले || 12 ||
हे लक्ष्मीजी के पुत्र चिक्लीत जिसके नाम मात्र से लक्ष्मीजी आर्द्र ( पुत्र प्रेम से जो स्नहे से भीग जाती है ) आप कृपा करके मेरे घर में निवास करे और अपनी माताजी लक्ष्मीजी को मेरे यहाँ निवास कराये | जल में से आविर्भूत हुए लक्ष्मीजी मेरे घर स्नेहयुक्त मंगल कार्य होते रहे ऐसा मुझे आशीर्वाद प्रदान करे |
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् | |
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 13 ||
हे जातवेद अग्नि भीगे हुये अंगोंवाली, कोमल हृदयवाली, अपने हाथो में धर्मदण्ड रूपी लकड़ी धारण की हुई, सुशोभित वर्णवाली, जिसने स्वयं सुवर्ण की माला धारण की हुई है, वो जिसकी कांति सुवर्णमान है, जो तेजस्वी सूर्य के समान है ऐसी लक्ष्मी मेरे घर आओ | आगमन करावो |
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् |
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 14 ||
हे जातवेद अग्नि | भीगे हुए अंगोंवाली आर्द्र ( हाथी की सूंढ़ से जिसका सतत अभिषके हो रहा है वो ) हाथो में पद्म धारण करने वाली, गौरवर्ण वाली, चंद्र के जैसी प्रसन्नता देनेवाली, भक्तो को पुष्ट प्रदान करने वाली, उस सुवर्णस्वरूप तेजस्वी लक्ष्मी को कृपा करके मेरे वहा भेजो |
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | |
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विन्देयं पुरुषानहम् | || 15 ||
हे अग्निनारायण आप मेरा कभी त्याग ना करे, ऐसी अक्षय लक्ष्मी को आप मेरे लिए भेजने की कृपा करे जिसके आगमन से मुझे बहुत धन-सम्पत्ति-गौ-दास-दासिया-घोड़े-पुत्र-पौत्रादि को में प्राप्त करू |
ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहम् |
सूक्तं पञ्चदशचँ च श्रीकामः सततं जपेत् || 16 ||
जिस मनुष्य को अपारधन की प्राप्ति करनी हो या धन-संपत्ति प्राप्त करने की कामना हो उस मनुष्य को नित्य स्नानादि कर्म करके पूर्णभाव से अग्निमे इस ऋचाओं द्वारा गाय के घी से यज्ञ करना चाहिए |
|| श्रीसूक्त सम्पूर्णं ||
श्री सूक्त के कितने पाठ करे ?
शीघ्रफल की प्राप्ति के लिये प्रतिदिन 16 पाठ करे |
नवरात्री में नौ दिनों में प्रतिदिन 16 पाठ करे और दशवे दिन दशांस यज्ञ-तर्पण-मार्जन करे |
प्रथम अनुष्ठान 1200 पाठ करे |
उसका दशांस-यज्ञ-तर्पण-मार्जन- करे |
यह विधान अनुसार करने के बाद अपार लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
|| Shri Suktam With Hindi Meaning ||
|| Shri Suktam With Hindi Meaning ||
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Stotra