बिल्वपत्र की महिमा
बिल्वपत्र जिसे बेलपत्र भी कहा जाता है |
भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अर्पण किया जाता है |
भगवान् शिव के पूजन में बिल्वपत्र चढाने का विशेष महत्व है |
"महादेवस्य च प्रियं"
सिर्फ एक बिल्वपत्र अर्पण करने मात्र से ही तीन जन्मो के
पापोंका विएंश हो जाता है |
"त्रिजन्मपाप संहारं एक बिल्वाशिवार्पणं"
इतना अद्भुत बिल्वपत्र का माहात्म्य है |
बिल्वपत्र के प्रकार
चारप्रकर के बिल्वपत्र मुख्यरूप से दार्शनिक है |
एकप्रकार है - अखण्डबिल्वपत्र है |
"अखण्डबिल्वपत्र"जितना एकमुखी रुद्राक्ष का महत्व है उतनाही चमत्कारिक अखंड बिल्वपत्र का महत्व है |
क्युकी यह स्वयं अपने आप में लक्ष्मी का रूप माना गया है |
भी बासी नहीं होता |
गंगाजल से धोने के बाद वापिस शिव को अर्पण किया जाता है |
इसमें स्वयं लक्ष्मीजी निवास करते है |
दूसरा प्रकार - त्रिपत्र यानी तीनपत्तोंवाला बिल्वपत्र है
जैसे बिल्वाष्टक में लिखा है "त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधं"ये बिल्वपत्र तीन जन्मो के पापो के विनाश करते है |
तीसरा प्रकार है - छह से लेकर इक्कीस पत्तो वाला बिल्वपत्र है |
जिस तरह से अनेक मुखवाले रुद्राक्ष होते है वैसे ही उसी तरह अनेक पत्तोंवाले बिल्वपत्र भी होते है |
किन्तु ये माना जाता है यह नेपाल के नजदीकी विस्तारो में ही प्राप्त होते है
यह दुर्लभ है |
दुर्भाग्य को दूर करने वाले है |
चौथा प्रकार - श्वेत बिल्वपत्र है |
यह इतना दुर्लभ है की करोडो जन्मो के पुण्य एकत्रित हो
तभी ही यह प्राप्त हो सकता है |
जिस तरह से गणेशजी को श्वेत दूर्वा प्रिय है किन्तु दुर्लभ है वैसे ही महादेव प्रिय यह श्वेत बिल्वपत्र है |
|| बिल्वपत्र महिमा समाप्तः ||
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