सूर्य अर्घ्य विधी
सूर्य अर्घ्य एक ऐसा विधान जो करने से मनुष्य भी सूर्य के जैसा ही समाज में चमकता रहता है अर्थात सूर्य को अर्घ्य देने वाले मनुष्य के जीवन में कभी भी कोई संकट नहीं आता, भगवान् सूर्य की उसे पूर्ण कृपा प्राप्त होती है |
सूर्यनारायण को अर्घ्य देने के बाद उनका चरणोदक भी ग्रहण करना चाहिए |
सूर्य अर्घ्य देने के लाभ
भगवान् सूर्य को नियमित रूपसे नित्य अर्घ्य देने से सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है |
सरकारी कामो में शीघ्र ही सफलता मिलती है |
पितृदोष का निवारण हो जाता है |
आँखों की समस्या दूर होती है |
आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है |
कभी भी ह्रदय रोग नहीं होता अगर ह्रदय रोग की समस्या है तो दूर हो जाती है |
नवग्रहबाधा भी शांत हो जाती है |
पिता की पूर्णकृपा प्राप्त होती है |
धन-संपत्ति प्राप्ति के द्वार खुल जाते है |
सूर्य अर्घ्य विधि |
सूर्य अर्घ्य देने में आवश्यक नियम
सूर्योदय के समय ही अर्घ्य देने चाहिए जब सूर्य उदय हो रहा हो उनका रंग जैसे ऑरेंज के समान दीखता हो तभी अर्घ्य देना चाहिए किन्तु अगर सूर्य उदय हो जाने के बाद अर्घ्य देना हो तो दो अर्घ्य देने चाहिए | एक अर्घ्य प्रायश्चित्त का उसमे कहा गया है | यह बात सदैव याद रखे |
सूर्य को अर्घ्य कैसे देना चाहिए ?
पूर्वदिशा की और अपना मुँह रखकर अपने सर को थोड़ा सा झुकाकर मंत्र बोलते हुए अर्घ्य देना चाहिए |
अर्घ्य किसी पवित्र जगह दे या किसी ताम्रा के पात्र में दे अर्घ्य देने के बाद उस पात्र में से अर्घ्य दिया हुआ जल लेकर अपनी दौड़ने आँखों और कानो को स्पर्श करे | और थोड़ा जल ग्रहण करे |
अर्घ्य के जल में क्या मिलाना चाहिये ?
नारद पुराण के अनुसार एक ताम्र कलश में अष्टवस्तु लेकर अर्घ्य दे | एक ताम्रकलश में जल-दूध-दर्भ(कुशा)-घी-मधु(शहद)-रक्तचंदन-लालकनेर के पुष्प-गुल्म यह अष्टद्रव्यों को जल में मिलकर पूर्व दिशा में अपना मुँह रखकर अर्घ्य दे |
अर्घ्य मंत्र
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे जगत्पते |
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते ||
इस मंत्र से अर्घ्य समर्पित करे |
अर्घ्य के जल को ग्रहण करने का मंत्र
अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनं |
सूर्य पादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम ||
सूर्य के अर्घ्य दिये हुए जल को क्यों ग्रहण करना चाहिए तो उसका कारण है की अगर हम सूर्य अर्घ्य जल को ग्रहण कर बाहर जाते है या दिन की शुरुआत करते है तो हमारी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती | तो सदैव यह शास्त्रोक्त विधि को अनुसरण करके ही अर्घ्य दे |
|| अस्तु ||
|| जय श्री कृष्ण ||
Surya Arghya Vidhi
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