पंचगव्य कैसे बनाते है ?
पंचगव्य का वैदिक पद्धति में बहुत ही महत्व है साथ ही साथ वैज्ञानिक दृष्टि कोण से भी इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है |
पंचगव्य देहशुद्धि के लिये और स्थल यानी जगह को पवित्र बनाने के लिये उपयोग किया जाता है |
इसके अलावा आयुर्वेद चिकत्सा में फाई इसका बहुत प्रयोग किया जाता है |
पंचगव्य |
पंचगव्य क्या है ?
गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधिः सर्पि कुशोदकं |
निर्दिष्टं पंचगव्यातु पवित्रं मुनि पुंगवैः ||
गोमूत्र-गोबर-दूध-दही-कुशोदक ( कुशा का पानी या कुशा से अभी मन्त्रित किया हुआ जल )
यह पंचगव्य वशिष्ठमुनि ने मतानुसार श्रेष्ठ माना गया है |
अग्निपुराण के अनुसार पंचगव्य बनाया जाता है ?
कपिलायाः पलं मूत्रं मर्धगुष्ठश्च गोमयं |
क्षीरं सप्तमूलं दद्यात दध्नश्चैव पलद्वयं |
घृतमेक पलं दद्यात पलमेकं कुशोदकं ||
पंचगव्य में कपिला गाय का मूत्र एकपल-अंगूठे के आधे हिस्से बराबर गोबर गोबर
सातपल दूध,दो पल दही,एक पल घी, कुशा का जल एकपल,इनका मिश्रण करे |
मिश्रण करते समय गायत्री मंत्र पढ़े | वैसे ही द्रव्य मिलाते समय भिन्न भिन्न मंत्र पढ़े |
या सभी द्रव्यों को मिश्रित करते समय गायत्री मंत्र पढ़े |
पलमात्रांतू गोमूत्र मांगुष्ठार्धन्तु गोमयं |
क्षीरं सप्तपलं ग्राह्यं दधि त्रिपलमिरितम |
सर्पिस्त्वेकपलं देयमुदकम पलमात्रकम ||
यह भी एक प्रमाण मिलता है |
पंचगव्य देवता कौन है ?
गौमूत्र के देवता वरुण भगवान् है |
दूध के देवता चंद्र है |
गोबर के देवता अग्निनारायण भगवान् है |
घी के देवता सूर्य है |
जल के देवता साक्षात नारायण भगवान् है |
कुशा के देवता ब्रह्मा है |
इस प्रकार से पंचगव्य बनाकर इसका प्रयोग करने से सभी
प्रकार से शुद्धि हो जाती है |
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