नवधा भक्ति
हर एक मनुष्य का भगवान् को मानने का और भगवान् पर विश्वाश करने का अलग अलग झरिया होता है |
जैसे कोई धर्म में विश्वाश रखता है तो कोई कर्म में |
कोई सुनने में यानी धार्मिक प्रवचनों को श्रवण करने में तो कोई धार्मिक ग्रंथो को पढ़ने में तो,कोई गरीबो की सेवा करने में विश्वास रखते है आइये आज जानते है भागवत अनुसार नवधा भक्ति क्या है |
नवधाभक्ति |
नवधा भक्ति के नाम
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पाद सेवनं |
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्म निवेदनं ||
श्लोकार्थ
श्रवण भक्ति - भगवान् की कथाओ को सुन ना | मंत्र-धुन आदि को सुनना |
भगवान् के चरित्रों को सुनना | ऐसे कई प्रमाण है की कथा श्रवण से भी भगवान् को प्राप्त कर सकते है |
कीर्तन भक्ति - यानी भगवान् के आगे नृत्य करना,अगर कोई मंत्र,जाप,पूजा,अर्चना, भले ही कुछ ना आये किन्तु
भगवान् की धुनों का संगीत के साथ माने किर्तार आदि वाद्यों के साथ स्मरण करना कीर्तन भक्ति है |
स्मरण भक्ति - अपने इष्टदेवता का,कुलदेवता का,भगवान् का ह्रदय से आभार व्यक्त करना,प्रार्थना करना |
और निरंतर भगवान् भक्ति में तत्पर रहना | उठते-बैठते भगवान् का स्मरण करना |
पादसेवन भक्ति - यानी भगवान् के चरणों की सेवा करना,पादुका पूजन करना |
अपने आपको भगवान के चरणों में ही समर्पित कर देना |
भगवान् की चरणसेवा करना |
अर्चन भक्ति - यानी सभी देवती या देवता को भगवान् के प्रिय द्रव्यों से सहस्त्र नामो के द्वारा अर्चना करना |
भगवान् को तिलक आदि करना,अक्षत-तिल-पुष्प आदि अर्पण करना |
वंदन भक्ति - भगवान् को वाणी सहित ह्रदय से याद करना |
साष्टांग नमस्कार करना | प्रणाम करना |
भगवान् को दोनों हाथो से झुककर प्रणाम करना |
दास्य भाव भक्ति - भगवान् का दास बनकर भक्ति करना |
भक्ति में भगवान् ही हमारे है,
हम भगवान् के है इस भाव को रखकर भगवान का दास बनकर भक्ति करना |
सख्य आत्म भक्ति - भगवान् को अपना सखा बनाकर भक्ति करना या यह भी कहा जाता है
खुद भगवान् का सखा बनकर भक्ति करना आत्मीय भाव से |
|| नवधा भक्ति ||
|| अस्तु ||
|| जय श्री कृष्ण ||
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