गुरूवार व्रत कथा | Guruwar Vrat Katha | बृहस्पति वार व्रत कथा |


गुरूवार व्रत कथा 


गुरूवार यानी बृहस्पतिवार के दिन भगवान् नारायण की कृपा प्राप्त करने का यह उत्तम विधान है | इस दिन भगवान् विष्णु की पूजा होती है | यह व्रत करने से कुंडली में स्थित बृहस्पति ग्रह प्रसन्न होते ही है लेकिन भगवान् विष्णु भी प्रसन्न होते है | यह व्रत सभी के लिये फलदायी है किन्तु विशेषकर स्त्रीयो के लिये यह व्रत अधिक फलदायी है | अग्निपुराण में वर्णन है की अनुराधा नक्षत्रयुक्त गुरुवार से आरम्भ करे या किसी भी गुरुवार से आरम्भ कर सकते है | 

कितने दिनों का व्रत करना चाहिए ?
यह व्रत सात गुरुवार तक करना चाहिये | सात गुरुवार तक शास्त्रोक्त विधान से यह व्रत करने से बृहस्पति गृह से युक्त कुंडली के सभी दोष समाप्त हो जाते है और पीडा से मुक्ति मिलती है |

Guruwar Vrat Katha | बृहस्पति वार व्रत कथा |
गुरुवार व्रत कथा

गुरुवार व्रत कथा 
प्राचीन समय में एक नगर में एक बड़ा व्यापारी था | वो जहाजों में व्यापार के लिये माल लदवाकर दूसरे देशो में बेचकर बहुत धन कमाता था | 
वो जैसे धन कमाता था वैसे ही दिल खोलकर दान दक्षिणा भी देता था | 
किन्तु उसकी पत्नी उतनी ही कंजूस थी | वह कभी किसी को कुछ भी नहीं देती थी |

एक बार जब व्यापारी व्यापर के लिए विदेश गया तब बृहस्पति देव एक साधु के वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी | 
व्यापारी की पत्नी बोली हे साधु महाराज में इस दान-पुण्य से कंटाल चुकती हु तंग आ गई हु | 
आप कोई ऐसा उपाय बताये की सारा धन का विनाश हो जाए और में दान पुण्यसे बच सकू और शांति से रह सकू | 
में यह धन संपत्ति लुटती हुई नहीं देख सकती |
बृहस्पति ने कहा तुम बड़ी विचित्र हो, क्या कभी दुनिया में कोई धन और संतान से दुखी हो सकता है भला ? 
अधिक धन है तो शुभ कर्मो में लगाओ | कुमारी कन्याओ का विवाह करवाओ, विद्यालयों, बाग़ बगीचों के निर्माण में लगाओ, यज्ञ यागादि कर्म कराओ | 
यह सब करने से तुम्हारा यह लोक और परलोक सार्थक हो जाएगा |
 परन्तु साधु की इन बातो से भी वो खुश नहीं हुई | 
बोली की मुझे ऐसा धन नहीं चाहिए जो दान देना पड़े |

तब बृहस्पति देव बोले यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम मेरा बताया उपाय करो | सात बृहस्पति वार घर को गोबर से लीपना, 
अपने केशो को पिली मिट्टी से धोना, केशो को धोते समय स्नान करना | 
व्यापारी से हजामत बनाने को कहना | भोजन में मांस मदिरा खाना, कपडे अपने घर धोना | ऐसा करने से तुम्हारा सब धन नष्ट हो जाएगा | 
यह कहकर बृहस्पति अंतर्ध्यान हो गए |

व्यापारी की पत्नीने बृहस्पति के कहे अनुसार सात बृहस्पति वार का व्रत करने का निश्चय किया | 
अभी तो सिर्फ तीन बृहस्पति वार बीते थे की उसकी धन संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई | 
जब व्यापारी वापिस आया तो उसने देखा सब कुछ नष्ट हो चुका है | उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया | 
वहा वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता था | इस तरह वह अपने जीवन का निर्वाह करने लगा |

एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे | 
वो अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया | वहां एक वृक्ष के निचे बैठकर अपनी पूर्व दशा पर विचार करने लगा | और बहुत रोया | उस दिन बृहस्पति वार था | तभी वहा बृहस्पति देव साधु के रूप में शेठ के पास आये |
 बोले "हे मनुष्य तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है ? 
तब व्यापारी बोला "महाराज आप सब कुछ जानते हो"|
इतना बोलते ही व्यापारी रो पड़ा | बृहस्पति बोले बेटे तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारणवश तुम्हारा यह हाल हुआ | 
लेकिन तुम चिंता मत करो | तुम प्रति गुरुवार के दिन बृहस्पति स्तोत्र का पाठ करो | थोड़े चने और गुड़ को लेकर जल से भरे लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवारों के सदस्यों और कथा सुनने वालो को बाँट दो | 
स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत ग्रहण करो | भगवान् तुम्हारा कल्याण करेंगे | तुम चिंता मुक्त हो जाओगे |

साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला "महाराज | मेरे पास तो इतने भी पैसे भी नहीं है की अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकू | 
तब साधु रूप में बृहस्पति बोले तुम लकडिया शहर में बेचने जाना | तुम्हे लकड़ियों को बेचने से चौगुनी कीमत मिलेगी | लेकिन याद रखो अगले बृहस्पति वार कथा करना मत भूलना | तुम्हारे सभी कार्य सिद्ध हो जायेगे |

उसने लकडिया काटकर शहर में बेचीं उसकी उसे अच्छी कीमत मिली | अपनी पुत्री के लिये दही लिया गुरुवार की कथा हेतु भी चना,गुड़, लेकर कथा की प्रसाद बांटकर स्वयं भी ग्रहण किया | 
उसी दिन से उस व्रत का उसे फल मिलने लगा | किन्तु वो अगले बृहस्पति वार कथा करना भूल गया |

अगले दिन वहा के राजा ने यज्ञ का आयोजन किया और नगर के लोगो को भोजन के लिए आमंत्रित किया | पूरा नगर भोजन करने के लिए राजा के महल में गए | लेकिन व्यापारी और उसकी पुत्री वहा विलम्ब से पहोचे | 
अतः उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर भोजन कराया | जब वो वापिस जाने लगे तब रानी ने देखा की अपना सोने का हार गायब है | रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ की उसका हार इन दोनों ने ही चुराया है | राजा की आज्ञा से दोनों को कारागृह में डाल दिया | दोनों अत्यंत दुखी हुये | 
वहा उन्होंने बृहस्पति देव का स्मरण किया | बृहस्पति ने प्रकट होकर व्यापारी को अपनी गलती का एहसास दिलाया | उन्हें सलाह दी हुरूवर के दिन कैदखाने के दरवाजे पर कुछ पैसे तुम्हे मिलेंगे उनसे तुम चना-मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति का पूजन करना | तुम्हारे सब कष्ट मिट जाएंगे |

बृहस्पति वार को कैदखाने के द्वार पर उन्हें कुछ पैसे मिले | बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी उसे बुलाकर व्यापारी ने गुड़-चने लाने को कहा | 
वो स्त्री बोली मेरे पास अभी समय नहीं है | 
तब वहा से अन्य एक और स्त्री निकली व्यापारी ने उसे भी कहा यह लाने को कहा | मुझे बृहस्पति वार का व्रत करना है |

बृहस्पति का नाम सुनकर वो स्त्री बोली में अभी तुम्हे गुड़-चना लाकर देती हु | 
मेरा एकलौता बीटा मर गया है में उसका कफ़न लेने जा रही थी लेकिन में तुम्हारा सामान पहले लाऊंगी उसके बाद कफ़न लेने जाउंगी |

वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिये गुड़-चना लेकर आई और स्वयं भी कथा सुनने बेथ गई | कथा के समाप्त होने पर वो कफ़न लेकर अपने घर गई | 
घर पर उसके पुत्र की लाश को "रामनाम सत्य है" कहकर श्मशान ले जानि की तयारी कर रहे थे | "वो स्त्री बोली मुझे अपने पुत्र का मुख देख लेने दो" | अपने पुत्र का मुख देखकर उसने कथा का प्रसाद और चरणामृत उसके मुख में डाला | प्रसाद-चरणामृत के प्रभाव से वह पुनःजीवित हो गया |
पहली स्त्री जिसने बृहस्पति का अनादर किया था वो जब अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्रवधू के लिये गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने उछाल मारी की वह पटककर मर गया | 
यह देखकर वो रोने लगी और बृहस्पति से क्षमा याचना करने लगी |

उस स्त्री की याचना से बृहस्पति देव साधु वेश में वहा पहुंचकर कहने लगे देवी तुम्हे विलाप करने की जरुरत नहीं है | 
यह बृहस्पति का अनादर करने की वजह से हुआ है | 
तुम वापस जाकर मेरे भक्त से क्षमा मांगकर कर कथा सुनो | तब ही तुम्हारी कामना सिद्ध होगी |

जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से क्षमा मांगी | और कथा सुनी | कथा के पश्चात उसने प्रसाद और चरणामृत ग्रहण किया |
घर जाकर वो प्रसाद और चरणामृत अपने मृत पुत्र के मुख में डाला | चरणामृत के प्रभाव से पुत्र जीवित हो उठा | उसी रात बृहस्पति देव राजा के स्वप्न में आकर बोले हे राज तूने जिस व्यापारी को अपना बंदी बने हुआ है वो निर्दोष है तुम्हारी रानी का हार वही खूंटी पर लटका टंगा हुआ है |

प्रातःकाल राजा-रानी ने उस हार को उसी खूटी पर टंगा हुआ देखा | राजा ने उस व्यापारी को उसकी पुत्री सहित मुक्त किया | उन्हें आधा राज्य देकर उसकी पुत्री का विबाह उच्च कुल में करवाकर और हीरे जवाहरात देकर बिदा किया ||

इस बृहस्पति वार की व्रत कथा सुनने वालो की कामना बृहस्पति देव पूर्ण करते है ||

|| अस्तु || 
|| जय श्री कृष्ण || 





karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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