श्री कृष्ण की 64 कला
जब भगवान श्री कृष्ण शिक्षा ग्रहण कर अपने गुरु सांदीपनि के आश्रम में अवन्तिपुर गये थे | जब भगवान् कृष्ण वहा 64 दिन रुके थे |
और अपने गुरु से उन्होंने प्रतिदिन एक विद्या प्राप्त की थी उस तरह 64 दिन तक 64 विद्याये प्राप्त की थी | इसे ही 64 कला के नाम से जाना जाता है |
१ - नृत्य | २ - वाद्य | ३ - गायनविद्या | ४ - नाट्य | ५ - इंद्रजाल | ६ - नाटक | ७ - सुगन्धित वास्तु बनाना | ८ - पुष्प श्रृंगार
९ - वैताल आदि वशीकरण | १० - बच्चो के खेल | ११ - विजय विद्या | १२ - मंत्र विद्या | १३ - शकुन-अपशकुन |
१४ - रत्नो को आकार देना | १५ - मातृका यंत्र | १६ - सांकेतिक भाषा बनाना | १७ - पानी को बांधना | १८ - बेल बूते बनाना |
१९ - धान्य और पुष्पों से सजावट करना | २० - फूलो की सेज बनाना |
२१ - तोता-मैना की भाषा बोलना | २२ - वृक्ष चिकित्सा | २३ - भेद-बकरो-मुर्गो को लड़ाना | २४ - उच्चाटन विद्या | २५ - घर बनाना | २६ - गलीचा बनाना | २७ - बाण-आसन आदि बनाना | २८ - पकवान बनाना | २९ - इच्छाधारी वेश बनाना | ३० - पेय पदार्थ बनाना ( पिने के पदार्थ ) | ३१ - क्रीड़ा करना | ३२ - छंद ज्ञान | ३३ - वस्त्रो की छिपाने बदलने की विद्या | ३४ - व्यक्ति या वास्तु का आकर्षण | ३५ - कपडे या गहने बनाना | ३६ - माला बनाना | ३७ - शत्रु को कमज़ोर बनाने की विद्या | ३८ - चोटी के बालो को सजाना ( फूलो से ) | ३९ - कटपुतली बनाना | ४० - मुर्तिया-प्रतिमा आदि बनाना |
४१ - पेहलिया बुझाना | ४२ - सिलाई काम करना | ४३ - बालो की सफाई रखना | ४४ - मन की बात बता देना | ४५ - कई भाषाओ का ज्ञान रखना | ४६ - काव्य ज्ञान-म्लेच्छ सांकेतिक भाषा का ज्ञान रखना | ४७ - सोने-चांदी रत्नो को पहचानना | ४८ - स्वयं सोना चांदी बनाना | ४९ - मणियों के रंगो को पहचानना | ५० - खानो की पहचानना | ५१ - चित्रकृति बनाना बनाना | ५२ - दांत-वस्त्र अंगो को रंगना | ५३ - शय्या रचना | ५४ -घर के फर्श को हीरे-मोती से सजाना | ५५ - कूटनीति | ५६ - ग्रंथो को पढ़ने की चतुराई | ५७ - नई बाते निकालना | ५८ - समस्यापूर्ति करना | ५९ - समस्त कोशो का ज्ञान | ६० - मन में कटक रखना |
६१ - छल से काम निकालना | ६१ - शंख या हाथी दांतो से गहने बनाना | ६२ - चित्रकारी |
६३ - पट्टी-बेंत-चटाई आदि बनाना | ६४ - विद्या प्रदान करना या ग्रंथो को पढ़ाने की चतुराई करना ||
|| 64 कला समाप्तः ||
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