सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती न्यास | एकादश न्यास विधि | Durga saptshati nyaas | Ekadash nyaas vidhi |


सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती न्यास

नमस्ते मित्रो इस ब्लॉग में आपको दुर्गा सप्तशती के सम्पूर्ण न्यास 
मंत्र और विधान दे रहा हु |
 मित्रो दुर्गा सप्तशती का पाठ एकादश न्यास किये बिना अपूर्ण होता है 
वो कभी भी सम्पूर्ण नहीं होता,
नाही उसका फल प्राप्त होता है | 
तो इस मंत्रो को एकादश न्यास के रूप में में यहाँ 
प्रस्तुत कर रहा हु जिसका लाभ आप भी ले सकते है | 
एकादश न्यास विधि | Durga saptshati nyaas | Ekadash nyaas vidhi |
दुर्गा सप्तशती न्यास 

सर्वप्रथम नवार्ण विधि करनी है | 

दाए हाथ में या आचमन में या फिर एक चमच में जल ग्रहण करे | उसके बाद निम्न विनियोग पढ़कर वो जल किसी पात्र में रख दे | ( वो जल पाठ के पश्चात किसी पौधे या पेड़ के आगे सींच दे-छोड दे)
श्री गणपतिर्जयति | "ॐ अस्य श्री नवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दांसि,श्री महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,ऐं बीजं,ह्रीं शक्तिः,क्लीं कीलकं,श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीप्रीत्यर्थे न्यासे विनियोगः" | 
करन्यास | 
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः | ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः | ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः | ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | 
नवार्णमन्त्र न्यास विधि 
ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः | गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्दांसि,श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः,नंदाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः | रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो बीजानि | अग्नि वायु सूर्यास्तत्वानि | श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः || 

ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि | गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्देभ्यो नमः मुखे | महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि | नंदाशाकम्भरी भीमाः शक्तिभ्यो नमो दक्षिण स्तने | रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामरी बीजेभ्यो नमः वामस्तने | अग्नि वायुः सूर्यस्तत्त्वेभ्यो नमो नाभौ | 
मूले न करौ संसोधयेत | नवार्णमन्त्र बोलकर हाथ धोये | 

 ऋष्यादिन्यास 
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि | गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्देभ्यो नमःमुखे | महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि | 
ऐं बीजाय नमः गुह्ये | ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | क्लीं कीलकाय नमः नाभौ | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो गुह्ये || 

यहाँ से क्रमश एकादश न्यास का आरम्भ हो रहा है | 
प्रथम न्यास मातृका न्यास | 
सर्वत्रादौ प्रणवोच्चार | ( सबसे पहले 'ॐ' का उच्चारण करे ) 
ॐ अं नमो ललाटे | ॐ आं नमो मुखवृत्ते | इं नमो दक्षिण नेत्रे | ईं नमो वामनेत्रे | 
ॐ उं नमो दक्षिण कर्णे | ॐ ऊं नमो वामकर्णे |
ॐ ऋं नमो वामनसि | ॐ ऋं नमो दक्षिण नसि | ॐ लृं नमो दक्षिण गंडे | 
ॐ लृं नमो वामगण्डे | ॐ एं नमो उर्ध्वोष्ठे | ॐ ऐं नमो अधरोष्ठे | 
ॐ ओं नमो ऊर्ध्वदन्तपंक्तौ | ॐ औं नमो अधोदंतपंक्तौ | ॐ अं नमो शिरसि | 
ॐ अः नमो मुखे | ॐ कं नमो दक्षबाहुमूले | ॐ खं नमो दक्षकूर्परे | 
ॐ गं नमो दक्षमणिबन्धे | ॐ घं नमो दक्षांगूलीमुळे | ॐ ङं नमो दक्षांगुल्यग्रे | 
ॐ चं नमो वामबाहुमूले | ॐ छं नमो कूपॅरे | ॐ जं नमो वाममणिबन्धे | 
ॐ झं नमो वामांगुलीमुळे | ॐ ञं नमो वामांगुल्यग्रे | ॐ टं नमो दक्षपादमूले | 
ॐ ठं नमो दक्षजानुनी | ॐ डं नमो दक्षगुल्फे | ॐ ढं नमो दक्षपादांगुली मुले | 
ॐ णं नमो दक्षपादांगुल्यग्रे | ॐ तं नमो वामपादमूले | ॐ थं नमो वामजानूनी | 
ॐ दं नमो वामगुल्फे | ॐ धं नमो वामपादांगुलीमुळे | ॐ नं नमो वामपादांगुल्यग्रे | 
ॐ पं नमो दक्षपार्श्वे | ॐ फं नमो वामपार्श्वे | ॐ बं नमो पृष्ठे | ॐ भं नमो नाभौ | 
ॐ मं नमो जठरे | ॐ यं नमो हृदि | ॐ रं नमो दक्षांशे | ॐ लं नमः ककुदि | 
ॐ वं नमो वामांसे | ॐ शं नमो ह्रदयादिदक्षहस्तांते | 
ॐ षं नमो हृदयादिवामहस्तांते | ॐ सं नमो हृदयादि दक्षपादांते | 
ॐ हं नमो हृदयादिवामपादांते | ॐ लं नमो जठरे | ॐ क्षं नमो मुखे |
|| इति मातृकान्यासः देवसारूप्य प्रदः प्रथमः ||  

द्वितीय न्यास सारस्वत न्यास 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कनिष्ठयोः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं अनामिकयोः | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमो मध्यमयोः | ऐं ह्रीं क्लीं नमस्तर्जन्योः | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमोअङ्गुष्ठयोः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं करमध्ये | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः करपृष्ठे | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमो मणिबन्धयोः | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कुर्परयोः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिखायै वौषट | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कवचाय हुम् | 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमो नेत्रत्रयाय वौषट | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमोअस्त्राय फट | 
|| इति सारस्वतो जाड्य विनाशको द्वितीयः || 

तृतीय न्यास मातृगण न्यास 
ॐ ह्रीं ब्राह्मी पूर्वस्यां मां पातु | ॐ ह्रीं माहेश्वरी आग्नेयां मां पातु | ॐ ह्रीं कौमारी दक्षिणस्यां मां पातु | ॐ ह्रीं वैष्णवीं नैऋत्यां मां पातु | ॐ ह्रीं वाराही पश्चिमायां मां पातु | ॐ ह्रीं इन्द्राणी वायव्यां मां पातु | ॐ ह्रीं चामुंडा उत्तरस्यां मां पातु | ॐ ह्रीं महालक्ष्मीरैशान्यां मां पातु |
|| इति मातृगण न्यासस्त्रैलोक्यविजयप्रदस्त्रुतीय || 

चतुर्थ न्यास नंदजादि न्यास 
कमलाङ्कुशमंडिता नंदजा पूर्वाङ्गं में पातु | खड्गपात्रधरा रक्तदन्तिका दक्षिणाङ्गं में पातु | पुष्पपल्लवसंयुता शाकम्भरी पश्चिमांगं में पातु | धनुर्बाणकरा दुर्गा वामांगं में पातु | शिरःपात्रकरा भीमा मस्तकाच्च्चरणावधि मां पातु | चित्रकांतिभृदभ्रामरीपादादिमस्ताकान्तं  में पातु |
|| इति जरामृत्युहरो नंदनादि न्यासचतुर्थः || 

पञ्चम न्यास ब्रह्मादिन्यास 
ॐ पादादि नाभि पर्यन्तं ब्रह्मा मां पातु | नाभेर्विशुद्धिपर्यन्तं जनार्दनो मां पातु | विशुद्धेर्ब्रह्मरन्ध्रातं रुद्रो मां पातु | हंसो में पदद्वयं पातु | वैनतेयः करद्वयं में पातु | वृषभचक्षुसी में पातु | गजाननः सर्वाङ्गं में पातु | 
आनंदमयोहरिः परापरौ देहभागौ में पातु |
|| सर्वकामप्रद ब्रह्मादि न्यासः पञ्चमः || 

षष्ठो न्यास महालक्ष्म्यादि न्यास 
अष्टादशभुजा महालक्ष्मीर्मध्यभागं में पातु | अष्टभुजा महासरस्वती ऊर्ध्वभागं में पातु | दशभुजा महाकाली अधोभागं में पातु | सिंहोहस्तद्वयं में पातु | परहंसः अक्षियुगं में पातु | महिषारूढ़ो यमः पदद्वयं में पातु | महेशः चंडिका युक्तः सर्वांगं में पातु |
|| इति महालक्ष्म्यादि न्यासः सद्गतिप्रदः षष्ठः || 

सप्तमो न्यास मूलाक्षरन्यास 
ॐ ऐं नमो ब्रह्मरंध्रे | ॐ ऐं नमः | ॐ ह्रीं नमो दक्षिण नेत्रे | ॐ ह्रीं नमो | ॐ क्लीं नमो वामनेत्रे | ॐ क्लीं नमः | ॐ चां नमो दक्षिणकर्णे | ॐ चां नमः | ॐ मुं नमो वामकर्णे | ॐ मुं नमः | ॐ डां नमः दक्षिणनासापुटे | ॐ डां नमः | ॐ ऐं नमो वामनासा पुटे | ॐ यैं नमः | ॐ विं नमो मुखे | ॐ विं नमः | ॐ चैं नमो गुह्ये | ॐ चैं नमः |
|| इति मूलाक्षर न्यासः रोगक्षयकरः सप्तमः || 

अष्टमो न्यासः विलोमाक्षर न्यासः 
ॐ चैं नमो गुह्ये | ॐ चैं नमः | ॐ विं नमो मुखे | ॐ विं नमः | ॐ यैं नमो वामनासापुटे | ॐ यैं नमः | ॐ डां नमः दक्षिण नासापुटे | ॐ डां नमः | ॐ मुं नमो वामकर्णे | ॐ मुं नमः | ॐ चां नमो दक्षिणकर्णे | ॐ चां नमः | ॐ क्लीं नमो वामनेत्रे | ॐ क्लीं नमः | ॐ ह्रीं नमो दक्षिणनेत्रे | ॐ ह्रीं नमः | ॐ ऐं नमो ब्रह्मरंध्रे | ॐ ऐं नमः |
|| इति विलोमाक्षरन्यासः सर्वदुःखनाशकोअष्टमः || 

नवमो न्यासः मूलव्यापाक न्यास 
मूलंच्चार्य | मस्तकाच्चरणान्तं चरणान्मस्तकान्तंअष्टवारं व्यापकं कुर्यात | स यथा - प्रथमं पुरतो मूलेन मस्तकाचरणावधि | १ |
ततश्चरणानमस्तकावधि मूलोच्चारेण व्यापकं कुर्यात | २ |
एवं दक्षिणतः | पश्चाद्वामभागे चेति प्रतिदिग्गभागे अनुलोमविलोमतया द्विर्द्विरीति अष्टवारं व्यापकं भवति |
|| इति देवताप्राप्तिकारो मूलव्यापको नवमः || 

दशमो न्यास मूल षडङ्गन्यास 
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे  मंत्र के द्वारा करन्यास-हृदयादि 
न्यास करे यह एक सामान्य न्यास है |
|| इति मूल षडङ्गन्यास स्त्रैलोक्यवशकरो दशमः || 

एकादशन्यास सुक्तादिबीजत्रय न्यास 
खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा | 
शंखिनी चापिनी बाणभुशुण्डिपरिघायुधा ||
सौम्यासौम्यतराःशेषः सौम्येभ्यस्त्वति सुंदरी | 
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी ||
यच्च किञ्चित्वचिद्वस्तु सद्सद्वाखिलात्मके | 
तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे मया ||
यया त्वया जगस्त्रष्टा जगतपात्यति यो जगत | 
सोपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः ||
विष्णुः शरीरग्रहणमहमीशान मेव च | कारितास्ते यतोस्तत्वां कः स्तोतुं शक्तिमान भवेत् ||
आद्यं वाग्बीजं कृष्णतरं ध्यात्वा सर्वांगे विन्यसामि |
इति सर्वांगे विन्यसामि |

ह्रीं बीज न्यास 
शूलेन पाहि नो देवी पाहिखड्गेन चाम्बिके | 
घंटा स्वनेन नः पाहि चापज्यानिः स्वनेन च ||
प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे | भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरी ||
सौम्यानि यानी रुपाणी त्रैलोक्ये विचरन्ति ते | 
यानि चात्यंधघोराणी तै रक्षास्मांस्तथा भूवम ||
खड्गशूलगदादिनी यानि चास्त्राणि तेम्बिके | करपल्लवसंगिनी तैरस्मान्रक्ष सर्वतः ||
||  द्वितीय माया बीजं सूर्यसदृशं ध्यात्वा सर्वांगे विन्यसेत || 

क्लीं बीजन्यास 
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते | भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवि नमोस्तुते ||
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितं | 
पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि नमोस्तुते ||
ज्वाला कराल मत्युग्रमशेषा सूरसूदनम | त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोस्तुते ||
हिनस्ति दैत्यतेजांसी स्वनेनापूर्य या जगत | 
सा घंटा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानीव ||
असुरासृग्वसापंकचर्चितस्ते करोज्ज्वलः | शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयं ||
तृतीयकामबीजं स्फटिकाभं ध्यात्वा सर्वांगे विन्यसामि |
इति सर्वांगे विन्यसामि | 
|| सर्वानिष्टहरः सर्वाभीष्टदः सर्वरक्षाकर एकादशः ||  

अथ मूल षडङ्गन्यास 
ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः | ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः | ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | ॐ ऐं हृदयाय नमः | ॐ ह्रीं शिरसे नमः | ॐ क्लीं शिखायै वौषट | ॐ ऐं चामुडायै कवचाय हुम् | ॐ यैं नेत्रत्रयाय वौषट | ॐ विच्चे अस्त्राय फट |

अक्षरन्यास 
ॐ ऐं नमः शिखायां | ॐ ह्रीं नमो दक्षिण नेत्रे | ॐ क्लीं नमो वामनेत्रे | ॐ चां नमः दक्षिणकर्णे | ॐ मुं नमो वामकर्णे | ॐ डां नमो दक्षिण नासायाम | ॐ यैं नमः वाम नासायाम | ॐ विं नमो मुखे | ॐ चैं नमः गुह्ये |

अष्टवारंव्यापकं कुर्यात | 

अङ्गन्यास 
ॐ ऐं प्राच्यै नमः | ॐ ऐं आग्नयै नमः | ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः | ॐ ह्रीं नैऋत्यै नमः | ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः | ॐ क्लीं वायव्ये नमः | ॐ चामुण्डयै उदीच्यै नमः | ॐ विच्चे ईशान्यै नमः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै उर्ध्वायै नमः | ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ||

|| अस्तु || 

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

2 Comments

  1. ओम जय श्री गणेश जय सियाराम आचार्यवर कृपया चक्र न्यास को लेखित करने का कष्ट करें आपका हार्दिक धन्यवाद

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